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Imran Pratapgarhi पर FIR रद्द, गुजरात पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, एफआईआर रद्द

06:13 AM Mar 28, 2025 IST | Neha Singh

इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, एफआईआर रद्द

imran pratapgarhi पर fir रद्द  गुजरात पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में दर्ज एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। यह फैसला जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने सुनाया।

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने को लेकर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। कविता से जुड़े आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। पुलिस को बुनियादी सुरक्षा करनी चाहिए। यह फैसला जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने सुनाया।

कविता पोस्ट करने पर हुई थी एफआईआर

अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कविता, कला और व्यंग्य जीवन को सार्थक बनाते हैं। कला के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है। विचारों का सम्मान होना चाहिए। एफआईआर रद्द करने के लिए इमरान प्रतापगढ़ी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। गुजरात पुलिस ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी।

‘प्रतिबंध अधिकारों को कुचलने के लिए नहीं हैं’

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि संविधान के मुताबिक अभिव्यक्ति की आजादी पर वाजिब प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, लेकिन वाजिब प्रतिबंध नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए अनुचित और काल्पनिक नहीं होने चाहिए। कविता, नाटक, संगीत, व्यंग्य समेत कला के विभिन्न रूप मानव जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं और लोगों को इसके जरिए अभिव्यक्ति की आजादी दी जानी चाहिए।

‘अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालयों को आगे रहना चाहिए’

जस्टिस एएस ओका ने कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ। जब आरोप लिखित में हो तो पुलिस अधिकारी को उसे पढ़ना चाहिए, जब अपराध बोले गए या न बोले गए शब्दों का हो तो पुलिस को ध्यान रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की आजादी के बिना ऐसा करना असंभव है। भले ही बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करें। इसे संरक्षित करने की जरूरत है। न्यायाधीशों को बोले गए या लिखे गए शब्द पसंद नहीं आ सकते हैं, फिर भी हमें इसे संरक्षित करने और संवैधानिक सुरक्षा का सम्मान करने की जरूरत है। संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालयों को सबसे आगे रहना चाहिए।

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Neha Singh

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