प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से नीली अर्थव्यवस्था हुई मजबूत, बढ़े रोजगार के अवसर
मत्स्य संपदा योजना से मछली पालन उद्योग में आई तेजी
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से देश के मछली उत्पादन क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है। ये क्रांतिकारी बदलाव भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ में कई समय से बंद खदानों को केज कल्चर तकनीक से मछली पालन का केंद्र बनाया गया है, जहां पंगेसियस और तिलापिया जैसी मछलियों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। यह पहल ग्रामीण रोजगार औऱ महिला सशक्तिकरण के लिए नए अवसर प्रदान कर रही है। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की बंद खदानें अब रोजगार और मछली उत्पादन का केंद्र बन गई हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत इन खदानों में केज कल्चर तकनीक से मछली पालन किया जा रहा है। इस पहल से ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए है।
पिंजरों में तेजी से बढ़ने वाली मछलियां पाली जा रही है। जो पांच महीने में बाजार भेजने के लिए तैयार हो जाती हैं। एक पिंजरे में लगभग 2.5 से 3 टन मछली का उत्पादन हो रहा है। इस प्रयास से 150 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है और महिलाएं हर महीने 6 से 8 हजार रुपये की कमाई कर रही हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालने वालों को 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी गई है। इस महत्वपूर्ण योजना के जरिए स्थानीय युवाओं और महिलाओं को सशक्त बनाया जा रहा है।
कैसे किया जाता है मछलियों का उत्पादन ?
केज कल्चर तकनीक से मछलियों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में पाला जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा कम होता है। राज्य सरकार के मार्गदर्शन में, पंगेसियस और तिलापिया जैसी मछलियाँ, जो अपनी तेज विकास दर के लिए जानी जाती हैं। इन मछलियों का पालन खदानों में किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जोरातराई स्थित खदान में 486 लाख रुपए की लागत से 162 यूनिट केज लगाए गए हैं। जिसमें सरकार हितग्राहियों को 40 से 60 प्रतिशत की छूट दे रही है।
खदानों में पाली जा रही मछलियों को स्थानीय और राष्ट्रीय बाजार में भेजा जा रहा है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है और लोगों को खाने के लिए ताजी मछलियां मिल रही हैं। इस परियोजना में महिला स्व-सहायता समूहों ने सक्रिय भूमिका निभाई है। ये महिलाएं आधुनिक तकनीक से मछली पालन कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं। छत्तीसगढ़ का यह अनूठा प्रयास पूरे देश में मिसाल बन रहा है। बंद खदानों को रोजगार और उत्पादन का केंद्र बनाया जा रहा है। इससे न सिर्फ जल संसाधनों का समुचित उपयोग हो रहा है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि भी बढ़ रही है।