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महाराष्ट्र में ‘अगाड़ी-पिछाड़ी’

महाराष्ट्र के विपक्षी गठबन्धन ‘महाविकास अघाड़ी’ से सपा पार्टी ने जो नाता तोड़ने…

09:57 AM Dec 08, 2024 IST | Aditya Chopra

महाराष्ट्र के विपक्षी गठबन्धन ‘महाविकास अघाड़ी’ से सपा पार्टी ने जो नाता तोड़ने…

महाराष्ट्र के विपक्षी गठबन्धन ‘महाविकास अघाड़ी’ से समाजवादी पार्टी ने जो नाता तोड़ने की घोषणा की है उसके पीछे राज्य की राजनीति में हाल में हुए चुनावों के परिणामों की हताशा झलकती है। श्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को राज्य में हुए इन विधानसभा चुनावों में केवल दो सीटें प्राप्त हुई हैं जबकि 288 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 16 व श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी को दस सीटें ही मिली हैं। इस गठबन्धन के तीसरे सदस्य शिवसेना (उद्धव ठाकरे) को भी केवल 20 सीटें ही मिलीं जबकि सत्तारूढ़ गठबन्धन महायुति को कुल 230 सीटें प्राप्त हुई हैं। बेशक इन परिणामों से महाविकास अघाड़ी के सभी घटक दल सकते में हैं और सोच रहे हैं कि लोकसभा चुनावों के बाद एेसा क्या हुआ जो उनकी इतनी दयनीय हालत हुई। इन चुनावों में महाविकास अघाड़ी को शानदार सफलता मिली थी लेकिन महाविकास अघाड़ी में शामिल समाजवादी पार्टी के लिए यह स्थिति इसलिए पीड़ादायक है क्योंकि अघाड़ी में शामिल शिवसेना (उद्धव ठाकरे) हिन्दुत्व के अपने पुराने रुख पर लौटने की कोशिश कर रही है।

शिवसेना केवल महाराष्ट्र में ही है और इसके संस्थापक स्व. बाल ठाकरे हिन्दुत्व व मराठी मानुष के सबसे बड़े अलम्बरदार माने जाते थे। मगर उनकी शिवसेना अब दो पार्टियों में विभक्त हो चुकी है। एक की बागडोर उद्धव ठाकरे के हाथ में है और दूसरे की उपमुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे के हाथ में, जो कि भाजपा के साथ है। इसी प्रकार श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस भी दो हिस्सों में बंट चुकी है। दूसरे हिस्से का नेतृत्व उपमुख्यमन्त्री अजित पवार के पास है। विधानसभा चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि मतदाताओं ने शिन्दे की शिवसेना और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस को ही असल पार्टियां माना है। क्योंकि शिन्दे की शिवसेना को 57 व अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस को 41 सीटें मिली हैं। अब सवाल यह है कि समाजवादी पार्टी महाविकास अघाड़ी से क्यों अलग हुई जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह पार्टी कांग्रेस समाहित विपक्षी ‘इंडिया गठबन्धन’ की सदस्य है। महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री अबू आजमी इस बात से बहुत दुखी हैं कि अघाड़ी में शामिल उद्धव शिवसेना ने अयोध्या में छह दिसम्बर, 1992 को स्थित बाबरी मस्जिद के विध्वंस का समर्थन अघाड़ी की सदस्य होने के बावजूद किया। उद्धव ठाकरे के निकट समझे जाने वाले विधान परिषद सदस्य मिलिन्द नार्वेकर ने ट्वीट करके लिखा कि उनकी पार्टी मस्जिद के विध्वंस से इतनी ज्यादा खुश थी कि उसने मस्जिद के ढहाये जाने पर न केवल खुशी जाहिर की थी बल्कि विध्वंस को अंजाम देने वाले लोगों पर गर्व की अनुभूति भी की थी।

राजनीति में इसका मतलब यह है कि उद्धव ठाकरे महाविकास अघाड़ी में रहने या न रहने पर पुनर्विचार कर रहे हैं। चुनाव परिणामों का अर्थ पार्टी यह निकाल रही है कि लोगों ने उनके कट्टर हिन्दुत्व के मुद्दे को छोड़ना ठीक नहीं समझा और वोट शिन्दे की सेना को डाल दिया । इसका कारण यह भी हो सकता है कि जब-जब भी एकल शिवसेना व भाजपा ने इकट्ठे होकर चुनाव लड़ा तो उन्हें अच्छी सफलता मिली। इसे अन्तिम निष्कर्ष इसलिए माना जा सकता है क्योंकि लोकसभा चुनावों में उद्धव की शिवसेना को खास सफलता नहीं मिली थी और शिन्दे की शिवसेना को उद्धव सेना से कुछ ही कम सात सीटें मिली थीं। इसका मतलब यह भी निकलता है कि शिन्दे की सेना ने एकल शिवसेना के बहुत बड़े वोट बैंक को अपने कब्जे में कर लिया है। यह तो निश्चित रूप से कहा ही जा सकता है कि उद्धव सेना परिवारवादी पार्टी है जबकि शिन्दे की शिवसेना एेसे आदमी एकनाथ शिन्दे की है जिसने अपना जीवन मुम्बई में आटो रिक्शा चला कर शुरू किया। इसीलिए शिवसेना की इस लड़ाई को पुत्र व शागिर्द की लड़ाई समझा गया।

पिछले दिनों यह भी खबर उड़ी थी कि दोनों शिवसेना एक हो सकती हैं और उद्धव ठाकरे अपना मिजाज नरम करके शिन्दे से हाथ मिला सकते हैं। राजनीति में यदि एेसा हो जाता है तो इसे अनहोनी नहीं समझा जा सकता। मगर समाजवादी पार्टी के सन्दर्भ में महाराष्ट्र का असर राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबन्धन पर पड़ने की संभावना बहुत कम है। अखिलेश यादव यह भलीभांति जानते हैं कि लोकसभा चुनावों में उन्हें उत्तर प्रदेश में जो शानदार सफलता मिली है उसमें कांग्रेस के प्रति मतदाताओं का झुकाव बहुत बड़ा उत्प्रेरक था। राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश में भाजपा का मुकाबला यदि कोई पार्टी कर सकती है तो वह एकमात्र कांग्रेस पार्टी ही है।

क्षेत्रीय दलों ने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबन्धन करके विजय का फल भी चखा है। एेसा परिणाम क्षेत्रीय दल केवल अपनी ताकत के भरोसे नहीं ला सकते थे। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर केवल कांग्रेस पार्टी ही भाजपा के मुकाबले लड़ती हुई नजर आती है और इसके नेता श्री राहुल गांधी अब लोगों की नजरों में विकल्प बनते जा रहे हैं। लोकतन्त्र में मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि मजबूत विपक्ष सत्ता में बैठी पार्टी की सरकार की लोगों के प्रति जवाबदेही तय करता है। अतः अखिलेश यादव राष्टीय स्तर की राजनीति में कांग्रेस का साथ रखना जरूरी समझेंगे। जहां तक शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का सवाल है तो वह महाराष्ट्र के आइने में ही महाविकास अघाड़ी गठबन्धन को देखेगी। वैसे यदि गौर से देखा जाये तो यह गठबन्धन विचार धारा के आधार पर नहीं बल्कि सत्ता पाने या शासन करने के लिए 2019 में ही तब बना था जब भाजपा व एकल शिवसेना ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े थे और संयुक्त रूप से बहुमत प्राप्त किया था। मगर मुख्यमन्त्री पद को लेकर शिवसेना व भाजपा में विवाद पैदा हो गया था। इसके बाद ही शिवसेना महाविकास अघाड़ी में शामिल हुई। सैद्धान्तिक रूप से शिवसेना भाजपा के इतने करीब है कि इसी ने भाजपा को अपने साथ लेकर महाराष्ट्र में पैर पसारने का अवसर तब दिया था जब उद्धव के पिताश्री बाल ठाकरे जीवित थे।

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