मित्रता वरिष्ठजन की सबसे बड़ी पूंजी
पिछले दो वर्षों में मैंने मित्रता और वृद्धावस्था में उसकी अनिवार्यता पर दो लेख लिखे हैं। आज एक बार फिर उसी विषय पर लिखने की प्रेरणा मिली। इस बार कारण बनी एक खबर, जिसे मैंने एक व्हाट्सएप ग्रुप में पढ़ा। एक प्रतिष्ठित अमेरिकी बिजनेस पत्रिका ने बताया कि 1990 की तुलना में आज चार गुना अधिक अमेरिकी वयस्क ऐसे हैं, जो कहते हैं कि उनके कोई घनिष्ठ मित्र नहीं हैं। वहीं, जिन लोगों के दस से अधिक मित्र थे, उनकी संख्या भी तेजी से घट रही है। ये आंकड़े भले अमेरिका के हों, लेकिन सच्चाई भारत में भी अलग नहीं है। अगर हम अपने आसपास नजर डालें तो यही तस्वीर धीरे-धीरे हमारे समाज में भी दिखने लगेगी। कभी जीवनभर साथ निभाने वाली दोस्ती जो विश्वास, अनुभव और सहयोग पर टिकी होती थी, अब अक्सर केवल सुविधा और लाभ का साधन बनती जा रही है।
आधुनिक समय की दोस्ती
आज की युवा पीढ़ी में कई रिश्ते अक्सर किसी न किसी लेन-देन पर आधारित दिखते हैं। कोई पार्टी में साथ देने वाला है, कोई व्यापार में सहायक, तो कोई नौकरी से जुड़े फायदे का कारण। ये रिश्ते थोड़े समय तक साथ देते हैं, लेकिन जीवन की लंबी यात्रा में टिके रहना कठिन होता है। सोशल मीडिया ने नए दोस्त बनाने को आसान जरूर कर दिया है, परंतु यह आसान तरीका गहराई से रहित भी है। हर दिन नए फ्रेंड बन सकते हैं, लेकिन जरूरी यह है कि कितने लोग कठिन समय में कंधा देने को तैयार होंगे? सूची में दर्ज सैकड़ों नामों से कहीं अधिक मायने उस एक पुराने मित्र के हैं जो बरसों से हमारे सुख-दु:ख में साथ रहा हो। यह सवाल हम सभी से है: आज भी कितने लोग अपने बचपन या कॉलेज के दोस्तों से जुड़े हुए हैं? क्या हम समय-समय पर उनका हालचाल लेते हैं, या धीरे-धीरे इन पुराने रिश्तों को भूल चुके हैं?
पुरानी दोस्ती की खूबसूरती
वरिष्ठ पीढ़ी की दोस्ती आज भी अलग ही नजर आती है। कितने ही लोग ऐसे मिल जाते हैं जिनकी मित्रता बचपन से लेकर सात-आठ दशक तक निभी आ रही है। यह रिश्ता समय के साथ परिपक्व होता है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव में स्थिर रहता है। कभी मतभेद हुए होंगे, कोई दूर भी चला गया होगा लेकिन धैर्य, क्षमा और जुड़ाव की इच्छा ने इस बंधन को जीवित रखा। ऐसे रिश्ते केवल तब टूटते हैं जब कोई मित्र इस दुनिया को छोड़कर चला जाए। बुजुर्गों के लिए यही मित्र जीवन का सहारा बनते हैं। परिवार छोटा हो रहा है, बच्चे दूर रहते हैं, तब यही पुराने साथी हंसी के पल बांटते हैं, दुख के समय दिलासा देते हैं और जीवन की लंबी कहानियों को फिर से जीवंत करते हैं।
सिमटता परिवार, बढ़ती जरूरत
आज परिवार का ढांचा बदल रहा है। संयुक्त परिवार अब दुर्लभ हैं। ऐसे में बुढ़ापे के दिन अक्सर एकाकीपन से भर जाते हैं। यहीं मित्रता की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है। मित्र परिवार का विकल्प नहीं, लेकिन सहारा जरूर बनते हैं। वे बिना किसी अपेक्षा के साथ खड़े रहते हैं, बिना किसी दबाव के सुनते हैं और बिना किसी शर्त के हंसाते हैं।
युवाओं के लिए संदेश
यह समझना बेहद जरूरी है कि सच्ची मित्रता एक दिन में नहीं बनती, न ही अचानक गहरी हो जाती है। इसे सींचना पड़ता है-धैर्य से, सहानुभूति से, क्षमा और अपनत्व से। जब कोई वृद्धावस्था में पहुंचता है, तब नई गहरी मित्रता बनाना लगभग असंभव हो जाता है। हर व्यक्ति अपनी आदतों और जीवन-शैली में ढल चुका होता है, नए रिश्तों में सामंजस्य बैठाना कठिन हो जाता है। इसलिए युवाओं से मेरा आग्रह है: अच्छे मित्र आज ही बनाइए। उन्हें समय दीजिए। व्यस्तताओं के बावजूद संपर्क बनाए रखिए। केवल उत्सव ही नहीं, कठिनाई में भी साथ खड़े रहिए। नए मित्र बनाइए, परंतु पुराने मित्रों को संजोकर रखिए। यही दोस्त आपके सुनहरे वर्षों की असली पूंजी होंगे। शायद इसी सत्य को ध्याम में रखकर कहा गया हैं कि 'हमें बूढ़े होने में सहायता के लिए पुराने मित्रों की आवश्यकता होती है और जवान बने रहने में सहायता के लिए नए मित्रों की।