डर से आजादी तक : यूपी में महिलाओं का बदलता सफर
उत्तर प्रदेश लंबे समय से विरोधाभासों की धरती रहा है, एक ओर यहीं से देश के सबसे बड़े सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों और सुधारों ने जन्म लिया, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम और पितृसत्ता तथा स्त्री विरोधी मानसिकता के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी महिलाओं को जन्म दिया लेकिन दूसरी ओर यूपी की अपनी महिलाएं लंबे समय तक एक ऐसी व्यवस्था की शिकार रहीं जो वोट बैंक के आगे घुटने टेकने वाली राजनीति के कारण उन्हें दोयम दर्जे पर रखती थी। इन सबके बीच एक कठोर सच्चाई यह थी कि यूपी में महिलाओं पर रात की शिफ्ट में काम करने पर लगभग पूर्ण प्रतिबंध था-एक ऐसा निषेध जो केवल कानूनी दीवार नहीं था, बल्कि समाज की एक गहरी मानसिक कैद का प्रतीक था। 2017 से पहले, फैक्ट्री एक्ट 1948 की धारा 66(1)(b) के तहत, शाम 7 बजे के बाद किसी भी महिला का फैक्ट्री में प्रवेश वर्जित था, चाहे उसकी इच्छा हो या सुरक्षा के उपाय मौजूद हों।
स्वतंत्रता के बाद “संरक्षण” के नाम पर बना यह कानून धीरे-धीरे महिलाओं की आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन गया, विशेषकर एक ऐसे राज्य में जहां नोएडा, कानपुर और लखनऊ की उद्योग इकाइयां रातभर चलती थीं। बेहतर वेतन और लचीले समय की चाह रखने वाली महिलाएं सूर्यास्त के साथ अपने सपनों को भी ढकती हुई पातीं। यह वह उत्तर प्रदेश था जब तक योगी आदित्यनाथ 2017 में मुख्यमंत्री नहीं बने। एक ऐसा यूपी जहां महिलाओं की श्रम भागीदारी 2011-12 में मात्र 14.7% थी, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम थी। उस समय कथा यह थी कि महिलाएं शाम 5 बजे के बाद बाहर निकल ही नहीं सकतीं। 12 नवंबर 2025 तक यह परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। योगी सरकार द्वारा लाया गया उत्तर प्रदेश फैक्ट्रियां संशोधन अधिनियम इस प्रतिबंध को इतिहास बना चुका है।
अब महिलाएं 7 बजे शाम से 6 बजे सुबह तक रात की शिफ्ट में काम कर सकती हैं, उन सभी 29 श्रेणियों में भी जो पूर्व में पूर्णतः प्रतिबंधित थीं लेकिन यह कोई जल्दबाजी में उठाया कदम नहीं, यह सुविचारित सशक्तिकरण है, जिसका आधार है सहमति, दोगुना वेतन और अभेद्य सुरक्षा। महिलाओं की लिखित सहमति अनिवार्य है, जिसे श्रम विभाग में पंजीकृत किया जाता है ताकि किसी प्रकार का दबाव न बने।
इसके केंद्र में है “कवच प्रोटोकॉल”—सुरक्षा का किला। हर फैक्ट्री में 24/7 सीसीटीवी निगरानी, प्रशिक्षित सुरक्षा गार्ड, जीपीएस-ट्रैक्ड डोर-टू-डोर परिवहन अनिवार्य है। शौचालयों और मार्गों पर निगरानी, भोजन-पानी-चिकित्सा जैसी सुविधाएं सुनिश्चित और किसी भी शिफ्ट में एक साथ चार से कम महिलाएं नहीं, ताकि सामूहिक सुरक्षा बनी रहे। उल्लंघन की सजा भारी जुर्माने से लेकर बंदी तक। यह केवल नीति नहीं, यह क्रांति है-यूपी को प्रतिबंधों वाले राज्य से संभावनाओं वाले राज्य में बदलने वाली। एक नोएडा फैक्ट्री मालिक के शब्दों में, “महिलाएं लाइन में खड़ी हैं-यह सिर्फ नौकरी नहीं, सम्मान के साथ कमाई है।” यह बदलाव योगी शासन के उस व्यापक रूपांतरण की गूंज है जिसमें रात का काम महिलाओं के लिए जोखिम नहीं, विजय का प्रतीक बन गया है।
यह परिवर्तन संयोग नहीं, यह उस जीरो-टॉलरेंस कानून-व्यवस्था सुधार का परिणाम है जिसने ऐसे साहसिक निर्णयों को संभव बनाया। जब सीएम योगी ने कार्यभार संभाला तब यूपी अराजकता का पर्याय था। अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे माफिया राजनीति, अपराध और महिलाओं के दमन पर राज करते थे। महिलाओं पर अपराध चरम पर थे। 2016 में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान एनसीआरबी के अनुसार 4,161 बलात्कार और 16,199 छेड़छाड़ के मामले दर्ज हुए और दोषसिद्धि महज 2-3%। एसपी शासन में अपराधियों को वोटबैंक की ढाल मिली हुई थी।
इसके मुकाबले सीएम योगी की सख्ती बिल्कुल अलग है। 200 से अधिक एनकाउंटर, हजारों माफियाओं की गिरफ्तारी और अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर, जिसने यूपी की सड़कों को वापस आम नागरिकों के लिए सुरक्षित बनाया। महिलाओं की सुरक्षा के आंकड़े स्वयं बोलते हैं: 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में यूपी का दोषसिद्धि दर 71% रहा, राष्ट्रीय औसत 18% से चार गुना अधिक और लगातार चार वर्षों से देश में नंबर 1। सिर्फ 2022 में 37,551 मामलों में 13,099 दोषसिद्धियां, देशभर में दर्ज कुल मामलों का एक-तिहाई। मिशन शक्ति के तहत 1,694 एंटी-रोमियो स्क्वॉड, 9,000 महिला पुलिस बीट्स और हेल्पलाइनों ने रिपोर्टिंग से सजा तक की दूरी कम कर दी है। 2019-20 से रेप के मामलों में 11.6% की कमी और छेड़छाड़ में 9% की गिरावट दर्ज हुई है। योगी की “जीरो टॉलरेंस” नीति सिर्फ नारा नहीं, उसके परिणाम महिलाओं को आधी रात को भी सुरक्षित काम करने का आत्मविश्वास देते हैं।
यह सुरक्षा आधार अब लैंगिक न्याय को नई दिशा दे रहा है जो सीएम योगी की दृष्टि का मूल है। नाइट शिफ्ट नीति कोई अलग कदम नहीं-it is part of a larger tapestry. Periodic Labour Force Survey के अनुसार, 2022-23 में महिलाओं की श्रम भागीदारी बढ़कर 21.7% हो चुकी है-कौशल कार्यक्रमों और प्रोत्साहनों से प्रेरित। यह बड़ा बदलाव है, एसपी शासन के उस दौर से जब अखिलेश यादव महिला पत्रकारों की सुरक्षा की चिंता पर यह कहकर टालते थे-“आप सुरक्षित हैं, चिंता क्यों?”-एक ऐसे समय तक जब यूपी में रात का काम ‘कृपा’ नहीं, ‘स्वतंत्रता’ का चुनाव है।
यह प्रथम दृष्टिकोण भाजपा की राष्ट्रीय नीति का भी विस्तार है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में “नारी शक्ति” को केंद्र में रखती है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ने देशभर में लिंगानुपात में सुधार किया। उज्ज्वला योजना ने 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को धुएं से मुक्ति दी। स्वच्छ भारत के 11 करोड़ शौचालयों ने महिलाओं की गरिमा सुरक्षित की। ‘जल जीवन मिशन’ ने 13 करोड़ घरों तक पाइप जल पहुंचाया जिससे महिलाएं पानी ढोने के बोझ से मुक्त हुईं। आज जब यूपी की फैक्ट्रियां रात भर जगमगा रही हैं तो वहां काम करती महिलाएं केवल मशीनें नहीं चला रहीं, वे नियमों को फिर से लिख रही हैं। यह वही परिवर्तन है जो सीएम योगी के नए यूपी को परिभाषित करता है।