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‘नचिकेता’ से ‘अभिनन्दन’ तक

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10:29 AM Mar 01, 2019 IST | Desk Team

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भारत और पाकिस्तान के बीच काफी तनाव है। भारत ने पुलवामा में भारतीय सेना के जवानों के बलिदान का बदला तो ले लिया लेकिन पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए यह सैन्य आक्रमण पर्याप्त नहीं है। पाकिस्तान ने हमें देश विभाजन से लेकर आज तक हजारों जख्म दिए हैं, इसलिए एयर स्ट्राइक को ही प्रतिशोध का समापन नहीं समझा जाए। इसे तो एक शुरूआत ही माना जाना चाहिए। जैसे कि आशंकाएं थीं कि धूर्त पाकिस्तान एयर स्ट्राइक के बाद कुछ न कुछ करेगा लेकिन चौकस भारतीय सेना ने उसका लड़ाकू विमान मार गिराकर उसके हमले को विफल बना दिया। दुर्भाग्य से हमारा मिग-21 विमान भी शिकार हुआ और भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनन्दन पाक के कब्जे में हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तान से विंग कमांडर अभिनन्दन की सुरक्षित वापसी की मांग की है और चेताया भी है कि उन्हें एक खरोंच भी नहीं आनी चाहिए। भारत की धमकी के बाद पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनन्दन को रिहा करने का फैसला किया। इसे मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत माना जाएगा।

पाकिस्तान पहले भी कई बार युद्ध के सिद्धांत तोड़कर मानवीयता की सारी हदें पार कर चुका है। भारतीयों ने अनेक मोर्चों पर जंग भी देखी है, युद्धबंदी भी देखे हैं, शहादतें भी देखी हैं लेकिन भारत ने कभी युद्ध के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं किया है। 1971 की जंग में पाकिस्तान के 90 हजार सैनिक हमारे युद्धबंदी रहे लेकिन उनके साथ अमानवीय व्यवहार कभी नहीं किया। उनके लिए विशेष शिविर बनाए गए और समय पर खाना भी दिया गया और शिमला समझौते के बाद उन्हें पाकिस्तान भेज दिया गया था। पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम मेंढर इलाके में भारतीय गश्ती दल पर हमला कर लांस नायक हेमराज सिंह का सिर काटकर ले गई थी और सुधाकर सिंह को मार डाला था तब भी देशभर में एक भारतीय सैनिक के सिर के बदले 10 सिर काटकर लाने की मांग उठी थी।

वर्ष 1999 में हुआ कारगिल युद्ध न सिर्फ पाकिस्तान पर भारत की विजय गाथा का उदाहरण है बल्कि इसके साथ ही उन तमाम देश के वीर सपूतों का बलिदान स्तम्भ भी है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करके शहादत को गले लगाया। वैसे तो ज्यादातर जवान युद्ध में शहीद हुए थे, लेकिन भारत के लाल ऐसे भी थे जिनकी कुर्बानी को कारगिल युद्ध की पहली शहादत माना गया। एक ऐसी शहादत जिसने पूरे राष्ट्र को आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया था। कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम ने युद्ध से पहले ही शहादत दे दी थी। पाकिस्तान ने इन्हें पकड़कर बन्धक बनाकर 22 दिन तक टॉर्चर किया। तीन हफ्ते बाद उनके क्षत-विक्षत शव भारतीय सेना को मिले थे।

कैप्टन सौरभ कालिया तो अपनी पहली सेलरी भी नहीं ले पाया था। पाकिस्तान ने सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा, उनकी आंखें निकाल ली गईं, हड्डियां तोड़ दी गईं और यहां तक कि उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे। 22 वर्ष के बेटे को देश के लिए कुर्बान करने वाले माता-पिता आज भी इन्साफ की आस में जीवन काट रहे हैं। कारगिल युद्ध के दौरान भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति बन गई थी। 26 वर्षीय फ्लाइट लैफ्टिनेंट कमबमपति नचिकेता पाकिस्तान के कब्जे में थे। वे अपने मिग-21 विमान में नियंत्रण रेखा के पास थे। इसी दौरान एक पाकिस्तानी रॉकेट उनके विमान से टकराया। गिरते विमान से नचिकेता को आखिरी विकल्प के रूप में पैराशूट लेकर कूदना पड़ा। पैराशूट उन्हें पाकिस्तान सीमा में ले गया, बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नचिकेता को रिहा करने का आदेश दिया था।

उस समय पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी थे। वही नचिकेता को गाड़ी के जरिये वाघा बॉर्डर से भारत लाए थे। पाकिस्तान के कब्जे में आने के बाद अभिनन्दन से दुर्व्यवहार की वीडियो वायरल हुई तो यह भी अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। वीडियो में उनके हाथ बंधे हुए हैं और मारपीट की जा रही है। वीडियो जारी करना भी युद्ध की नीतियों के खिलाफ है। युद्धबंदियों पर जेनेवा कन्वेंशन लागू होता है। जेनेवा कन्वेंशन के हिसाब से पाकिस्तान को उसके साथ मानवीय व्यवहार करना होगा। अपनी गद्दी बचाने के लिए पाक प्रधानमंत्री इमरान खान का भारत को जवाब देना मजबूरी था।

इमरान खान ने मजबूरी में सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया है। अब वह भारत से बातचीत की पेशकश कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान ने भारत के कड़े रुख के सामने झुकते हुए विंग कमांडर को छोड़ने का निर्णय लेते हुए तनाव को कम करने वाले कदम उठाए हैं। पाकिस्तान को अब चाहिए कि वह आतंकी आकाओं को भारत के हवाले करे और आतंकी ढांचे को खत्म करने का काम करे। इससे दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधर सकते हैं।

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