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व्यापार युद्ध से 455 अरब डॉलर का होगा नुकसान

क्रिस्टन लगार्ड ने व्यापार युद्ध को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बताते हुये शनिवार को कहा कि इससे वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 455 अरब डॉलर का नुकसान होगा।

07:12 AM Jun 10, 2019 IST | Desk Team

क्रिस्टन लगार्ड ने व्यापार युद्ध को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बताते हुये शनिवार को कहा कि इससे वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 455 अरब डॉलर का नुकसान होगा।

फुकूका : अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टन लगार्ड ने व्यापार युद्ध को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बताते हुये शनिवार को कहा कि इससे वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 455 अरब डॉलर का नुकसान होगा। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंकों के प्रमुखों की बैठक के समापन पर अपने बयान में सुश्री लगार्ड ने कहा कि यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता और विकास के मजबूत होने संकेत मिल रहे हैं। यह अच्छी खबर है, लेकिन अब भी आगे की राह अनिश्चित और कई नकारात्मक जोखिमों से भरी हुई है। सबसे बड़ा खतरा मौजूदा व्यापार युद्ध को लेकर है। 
आईएमएफ का अनुमान है कि अमेरिका और चीन द्वारा एक दूसरे के उत्पादों पर पिछले साल और इस वर्ष लगाये गये करों से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 2020 में 0.5 प्रतिशत या तकरीबन 455 अरब डॉलर की कमी आ सकती है जो आर्थिक गतिविधियों में बड़ी कमी का कारण बन सकता है। आईएमएफ प्रबंध निदेशक ने कहा कि ब्याज दर काफी कम है और कई विकसित देशों में ऋण का स्तर बढ़ रहा है। उभरते हुए बाजार वित्तीय परिस्थितियों में अचानक बदलाव के प्रति संवेदनशील हैं। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दूसरा बड़ा खतरा है।

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सुश्री लगार्ड ने और नये कर लगाने के खिलाफ भी चेताया तथा मौजूदा व्यापार युद्ध का समाधान ढूँढ़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि मेरी समझ से इन जोखिमों को कम करने के लिए पहली प्राथमिकता मौजूदा व्यापार युद्ध को हल करना होना चाहिये। इसके लिए मौजूदा करों को समाप्त करने तथा नये कर न लगाने की जरूरत है। साथ ही साथ हमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तंत्र के आधुनिकीकरण की दिशा में भी काम जारी रखने की आवश्यकता है। 
ऐसा करके नीति निर्माता अपनी अर्थव्यवस्था में जहाँ निश्चितता और विश्वास पैदा करेंगे वहीं वे वैश्विक विकास में भी सहयोग दे सकेंगे। आईएमएफ प्रबंध निदेशक ने कहा कि अधिकतर देशों में मौद्रिक नीति आँकड़े पर आधारित रहनी चाहिये तथा इसमें ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश छोड़ जानी चाहिये। वित्तीय नीतियों में विकास, ऋण और सामाजिक उद्देश्यों का संतुलन हो। 
तेज एवं अधिक समावेशी विकास की नींव रखने के लिए बाजार के उदारीकरण से लेकर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने जैसे ढाँचागत सुधार किये जाने चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि इस प्रकार के उपाय किये जाते हैं तो जी-20 देशों के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर लंबी अवधि में चार प्रतिशत बढ़ सकती है।
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