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जी-20 : भारत से यूरोप तक

जी-20 देशों की मेजबानी करके भारत का सम्मान निश्चित रूप से बढ़ा है क्योंकि इस संगठन की अध्यक्षता में इसके सदस्य देशों ने कई ऐसे फैसले किये हैं जिनका असर दुनिया के गरीब व विकासशील देशों पर सकारात्मक रूप से पड़ेगा।

01:44 AM Sep 11, 2023 IST | Aditya Chopra

जी-20 देशों की मेजबानी करके भारत का सम्मान निश्चित रूप से बढ़ा है क्योंकि इस संगठन की अध्यक्षता में इसके सदस्य देशों ने कई ऐसे फैसले किये हैं जिनका असर दुनिया के गरीब व विकासशील देशों पर सकारात्मक रूप से पड़ेगा।

जी 20   भारत से यूरोप तक
जी-20 देशों की मेजबानी करके भारत का सम्मान निश्चित रूप से बढ़ा है क्योंकि इस संगठन की अध्यक्षता में इसके सदस्य देशों ने कई एेसे फैसले किये हैं जिनका असर दुनिया के गरीब व विकासशील देशों पर सकारात्मक रूप से पड़ेगा। अब नई दिल्ली में चले सम्मेलन में अफ्रीकी देशों के संघ “अफ्रीकी  यूनियन” के भी सदस्य बन जाने के बाद इसका प्रभाव बहुत व्यापक हो जायेगा क्योंकि यूनियन में कुल 55 देश हैं। जी-20 देशों में  दुनिया के पांच परमाणु शक्ति से लैस देश, जिन्हें पी-5 भी कहा जाता है, शामिल हैं। ये देश हैं चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस औऱ अमेरिका। ये सभी देश राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य भी हैं। इसके साथ ही दुनिया के सर्वाधिक विकसित सात राष्ट्र (जी-7) भी इसमें शामिल हैं। ये देश हैं अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली जर्मनी, कनाडा औऱ जापान। अतः इसी से स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जी-20 संगठन पूरी दुनिया के आर्थिक विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण है। नई दिल्ली में हुए सम्मेलन में हालांकि चीन व रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग नहीं लिया औऱ अपने दूसरे प्रतिनि​िध भेजे। इसका सीधा सम्बन्ध वर्तमान की अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक परिस्थियों से जाकर जुड़ता है क्योंकि रूस अपने पड़ोस के मुल्क यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है और चीन उसकी मदद कर रहा है जबकि जी-7 के देश यूक्रेन की सहायता कर रहे हैं। इससे युद्ध के औऱ खिंचने की संभावनाएं अभी भी बनी हुई हैं।
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इस युद्ध  को चलते हुए साल भर से ऊपर का समय हो गया है मगर अभी तक दोनों के बीच बातचीत से समस्या का हल निकालने की सूरत नहीं बनी है। यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करें तो ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचेंगे  कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीब व विकाशील देशों काे कुप्रभावित किया है। दुनिया के पांच परमाणु सम्पन्न देशों में से तीन अमेरिका, फ्रांस व ब्रिटेन यूक्रेन के साथ हैं और दो रूस व चीन एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इसे लेकर यह भी नतीजा निकाला जा सकता है कि आज की दुनिया दो गुटों में विभिन्न साझा हिस्सेदारी के मंचों के बावजूद बंटी हुई है। इसमें भारत पूर्णतः तटस्थ बने रह कर अपने राष्ट्रीय हितों को साधता लगता है। हाल ही में इस मुद्दे पर भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने भी  केन्द्र सरकार के रुख की प्रशंसा की है औऱ उनसे पहले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान केन्द्रीय सरकार के रुख का समर्थन किया था। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की रूस नीति पर भारत के किसी भी राजनैतिक दल को ऐतराज नहीं है।
श्री मोदी यह कह चुके हैं कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध रुकना चाहिए औऱ वार्ता द्वारा समाधान ढूंढा जाना चाहिए क्योंकि आज का दौर सामरिक युद्धों का दौर नहीं है बल्कि ‘शान्ति-समझौतों’ का दौर है। जी-20 सम्मेलन के साझा घोषणापत्र में श्री मोदी के इसी रुख का समर्थन किया गया है क्योंकि साझा वक्तव्य या घोषणा में रूस का नाम लिये बगैर कहा गया है कि किसी भी देश को दूसरे देश के खिलाफ युद्धास्त्रों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। राष्ट्रसंघ के नियमों में भी यही कहा गया है। इसका समर्थन उन जी-7 देशों ने किया जो रूस के खिलाफ यूक्रेन की सब तरह से मदद कर रहे हैं। निश्चित रूप से श्री मोदी की सदारत में जी-20 सम्मेलन की यह उपलब्धि मानी जायेगी क्योंकि वह रूस के साथ अपने मधुर सम्बन्धों को जीवन्त रखने में कामयाब हो गये हैं। भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि रूस के साथ हमारे रिश्ते बहुत मधुर रहे हैं और रूस ने हर आड़े वक्त में भारत का आंखें मीच कर समर्थन किया है।
अमेरिका के साथ हमारे सम्बन्धों में तभी खुशनुमा माहौल देखने को मिला जब 2008 में भारत का अमेरिका से परमाणु करार हो गया था। इसके बाद ही भारत के अमेरिका से सम्बन्धों में ‘ताजगी और तरावट’ आयी और अमेरिकी टैक्नोलॉजी के आयात करने के रास्ते खुले। जी-20 के दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है कि भारत से यूरोप को सीधे जोड़ने के लिए एक भू-जल सम्पर्क परियोजना बनाई जायेगी। यह ट्रेन एवं जल मार्ग का उपयोग करते हुए बनेगी। भारत-यूरोप को बरास्ता पश्चिम एशियाई देशों के जोड़ा जायेगा। खाड़ी के देश भी इसके मार्ग में आयेंगे परन्तु पाकिस्तान एेसा ‘कमजर्फ’ मुल्क है कि उसने इस परियोजना के लिए अपनी भूमि का इस्तेमाल करने की इजाजत ही नहीं दी है। अतः भारत से यूरोप परियोजना को ईरान से होकर तैयार किया जायेगा। कूटनीति में यह ‘प्याज खिला कर मिर्चे दिखाने’ की नीति है। पाकिस्तान को  भारत का यह ‘तोहफा’ इस तरह का है कि भारत से जब यूरोप ट्रेन मार्ग से जुड़ेगा तो यह चीन द्वारा चलाई जा रही ‘वन बेल्ट वन रोड ‘(एक क्षेत्र एक सड़क) परियोजना का माकूल जवाब होगा।
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अफ्रीकी देशों के समूह को जी-20 देशों का सदस्य बना कर भारत ने साफ कर दिया है कि विश्व के आर्थिक स्रोतों पर उनकी भी बराबर की हिस्सेदारी है। हालांकि भारत शुरू से ही अफ्रीकी देशों को दुनियाभर में चमकाने का समर्थक रहा है। भारत ने 2008 तक ही ‘पैननेट अफ्रीका’ स्कीम को लागू कर दिया था और पूरे अफ्रीका में नेट को सुलभ करा डाला था। शिक्षा से लेकर प्रशासन जैसी विधा में भारत इन अफ्रीकी देशों की हर क्षेत्र में तरक्की के लिए अपनी दक्षता देता रहा है। अतः भारत से यूरोप तक जिस रेलमार्ग द्वारा रेलगाड़ियां चलेंगी उनके साथ बिजली का केबल (तार) भी बिछाया जायेगा और साथ ही हाइड्रोजन गैस की पाइपलाइन भी डाली जायेगी जो मार्ग में पड़ने वाले देशों को ऊर्जा या स्वच्छ ईंधन की जरूरत भी पूरी करेगी और यूरोपीय देशों की ऊर्जा समस्या भी आसान बनेगी। इस परियोजना के लिए सऊदी अरब के महाराज कुमार ‘मोहम्मद-बिन सलमान’ ने 20 अरब डालर की धनराशि मंजूर भी कर दी है। इन देशों तक बिछने वाले वाणिज्यिक मार्ग के लिए 20 अरब डालर की प्रारम्भिक धनराशि देने को मंजूरी भी दे दी है। जी-20 सम्मेलन को हम सफल कहेंगे औऱ विकासशील देशों के कल्याण के लिए कार्यरत संगठन मानेंगे।
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