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‘जी’ व ‘नीट’ परीक्षा-विवाद

जी और नीट की परीक्षाओं को लेकर जो कोहराम मचा हुआ है उसके दो पक्ष हैं और दोनों ही प्रबल हैं। केन्द्र सरकार चाहती है कि ये परीक्षाएं सितम्बर महीने में आयोजित की जायें जिससे छात्रों का एक वर्ष बच सके मगर छात्र कह रहे हैं

12:19 AM Aug 28, 2020 IST | Aditya Chopra

जी और नीट की परीक्षाओं को लेकर जो कोहराम मचा हुआ है उसके दो पक्ष हैं और दोनों ही प्रबल हैं। केन्द्र सरकार चाहती है कि ये परीक्षाएं सितम्बर महीने में आयोजित की जायें जिससे छात्रों का एक वर्ष बच सके मगर छात्र कह रहे हैं

जी और नीट की परीक्षाओं को लेकर जो कोहराम मचा हुआ है उसके दो पक्ष हैं और दोनों ही प्रबल हैं। केन्द्र सरकार चाहती है कि ये परीक्षाएं सितम्बर महीने में आयोजित की जायें जिससे छात्रों का एक वर्ष बच सके  मगर छात्र कह रहे हैं कि ये परीक्षाएं दीपावली के बाद तक स्थगित की जायें जिससे कोरोना का संकट टल जाने से उनके जीवन पर संभावित खतरा भी टल सके। इसके पक्ष में देश के विपक्षी राजनीतिक दल भी आवाज उठा रहे हैं  और कह रहे हैं कि छात्रों की राय को अहमियत दी जानी चाहिए। जबकि उच्च शिक्षा सचिव श्री अमित खरे का कहना है कि यदि परीक्षाएं अब भी टाली गईं तो इससे छात्रों को ही नुक्सान होगा और उनका शैक्षिक जीवन प्रभावित होगा क्योंकि पहले ये परीक्षाएं अप्रैल महीने में होनी थीं जिन्हें जुलाई तक टाल दिया गया था। इसकी वजह यही थी कि देश में कोरोना का संक्रमण फैला हुआ था।
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इस संक्रमण की विकरालता की वजह से ही इन्हें सितम्बर मास तक स्थगित किया गया  था। अब इनके आगे स्थगन का अर्थ होगा कि अगले सत्र की पढ़ाई एक वर्ष पीछे हो जायेगी और नये सत्र में प्रवेश एक साल पीछे हो जायेगा क्योंकि दीपावली के बाद पूर्वी भारत विशेषकर बिहार में छठ पूजा का उत्सव  शुरू हो जायेगा। इस बार छठ भी नवम्बर में ही पड़ रही है। श्री खरे के अनुसार इसे देखते हुए परीक्षाएं दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में आयोजित होंगी जिसका मतलब होगा कि परिणाम नये वर्ष 2021 में आयेंगे और छात्रों का पूरा एक वर्ष बेकार चला जायेगा। नये प्रवेश 2021 में ही होंगे और नई कक्षाएं तभी शुरू की जा सकेंगी।
 दूसरी तरफ इस तर्क के विरोध में भी सबल तर्क दिया जा रहा है। छात्र कह रहे हैं कि अभी कोरोना संक्रमण फैला हुआ है जिसे देखते हुए परीक्षाएं यदि सितम्बर महीने में होती हैं तो इसके संक्रमण का खतरा बना रहेगा और परीक्षाएं देने के बाद यदि कोई छात्र कोरोना संक्रमित निकलता है तो सैकड़ों दूसरे छात्रों के जीवन के लिए भी खतरा हो जायेगा। जी और नीट की परीक्षाओं में कुल 25 लाख छात्र बैठेंगे। इतनी बड़ी संख्या में परीक्षार्थियों के लिए कोरोना संक्रमण से बचाव के इन्तजाम करना बहुत टेढ़ा कार्य होगा जिसे सरकार चाहे भी तो नहीं कर पायेगी। इसके साथ ही असम व बिहार जैसे राज्यों में बाढ़ का प्रकोप चल रहा है। इन राज्यों के छात्रों के लिए परीक्षाओं मंे बैठने का इंतजाम किस प्रकार होगा? यह इंतजाम इस प्रकार करना होगा जिससे एक छात्र से दूसरे छात्र में संक्रमण फैलने का खतरा मिट सके मगर सबसे दुष्कर कार्य यह होगा कि परीक्षा स्थलों तक छात्र किस प्रकार पहुंचेंगे और वहां पहुंचने पर उनके ठहरने से लेकर अन्य क्रियाओं में कोरोना से मुक्त रहने की व्यवस्था किस प्रकार की जायेगी? परीक्षा स्थलों के चुनाव से लेकर परीक्षार्थियों की आवास व्यवस्था और उनके आवागमन का सुविधाजनक तरीका निकलना सरकार की प्राथमिकता पर आये बिना ये परीक्षाएं आयोजित नहीं की जा सकतीं क्योंकि अगस्त महीने के अंत में भी कोरोना के मामले बजाय घटने के बढ़ रहे हैं। वास्तव में छात्रों के लिए यह समय बहुत दुविधापूर्ण है। उनके एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई। अतः सरकार को इसके बीच का ही कोई रास्ता इस प्रकार निकालना होगा जिससे छात्रों का साल भी बच जाये और कोरोना के प्रकोप से भी उन्हें बचाया जा सके मगर यह कार्य भी काफी दुष्कर है क्योंकि कोरोना का प्रकोप घटना या बढ़ना सरकार के हाथ में नहीं है। उसके हाथ में सिर्फ इससे बचाव के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाना है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में कह चुका है कि परीक्षाएं आयोजित किया जाना जरूरी है क्योंकि कोरोना की वजह से जीवन रुक नहीं सकता है। समग्र रूप से देखा जाये तो जीवन से बढ़ कर कुछ नहीं होता है क्योंकि ‘जान है तो जहान है’ मगर जान के लिए ही जहान जरूरी होता है। अतः दोनों के बीच सन्तुलन पैदा करना जरूरी होता है मगर यह सन्तुलन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे देश की नई पीढ़ी के मन से कोरोना का खौफ दूर हो सके। वैसे देखा जाये तो दुनिया का कारोबार कोरोना के रहते हुए भी चल ही रहा है मगर यह उस रफ्तार से नहीं चल रहा है कि जिन्दगी की सभी रौनकें वापस लौट आयें। बेशक परीक्षाओं का होना जरूरी है और छात्रों का साल बचाना भी जरूरी है मगर यह जिन्दगी की कीमत पर नहीं होना चाहिए इसलिए कोई बीच का एसा रास्ता निकाला जाये जिससे परीक्षाएं भी हों और छात्र भी सुरक्षित रहें।  इसके लिए आनलाइन परीक्षाओं का एक विकल्प है मगर भारत की विविधता को देखते हुए यह संभव नहीं है क्योंकि देश के 70 प्रतिशत गरीब छात्रों के पास आन लाइन सुविधायुक्त कम्प्यूटरों की कमी है। इसे देखते हुए परीक्षाएं आयोजित करने का कोई नया तरीका इजाद करना होगा अथवा छात्रों की राय जानने के बाद परीक्षाओं का समय इसी वर्ष के भीतर एेसा तय करना होगा जिससे उनका एक वर्ष भी बच जाये और उनका जीवन भी सुरक्षित रहे।
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