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गांधी , दशहरा और एक वोट

05:00 AM Oct 02, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

आज 2 अक्तूबर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिन भी है और विजयदशमी या दशहरा भी है। महात्मा गांधी ने जहां पूरे विश्व को अहिंसा का सन्देश दिया है वहीं दशहरा हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है। दशहरा पर्व भारत में राक्षस राज रावण के अन्त का दिन माना जाता है। भगवान राम ने केवल जनशक्ति के बल पर रावण की पूर्ण सुसज्जित सेना को हराया था। भारतीय संस्कृति का इसे पहला जनयुद्ध भी माना जा सकता है। भारतीय संस्कृति की एक और विशेषता यह है कि यह आचार प्रमुख है हालांकि विचार पक्ष भी इसमें अन्तर्निहित रहता है मगर जोर व्यवहार पर रहता है। भगवान राम ने महाबलशाली लंकापति रावण के विरुद्ध आम जन ( प्रतीकों में बानर व भालू अर्थात आदिवासी जन को जोड़ कर उनकी सेना की गठन किया) की सेना का गठन करके रावण को रणभूमि में परास्त किया। वहीं महात्मा गांधी ने अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध भारत के जनमानस को संगठित कर केवल अहिंसा के माध्यम से क्रान्ति का बिगुल बजाया और उसे भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया। इसके लिए राष्ट्रपिता ने अंग्रेजी शासन में जी रहे भारतीयों के मन में आत्म गौरव व सम्मान की ललक पैदा की और उनके नागरिक होने के भाव को नई आवाज दी। अपने आचरण या व्यवहार से महात्मा गांधी ने अंग्रेज सरकार को हर कदम पर एहसास कराया कि वह किसी दूसरे देश के नागरिकों को अपना गुलाम बना कर नहीं रख सकती है।
अपने देश की शासन व्यवस्था पर उनका जन्म सिद्ध अधिकार होना चाहिए। यह अधिकार भारत के लोगों को जब तक नहीं मिलता तब तक वे अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आन्दोलनरत रहेंगे। मगर इसके लिए गांधी ने भारत के लोगों को लगातार अधिकार सम्पन्न व सशक्त करने के लिए भारत का संविधान इस देश के सबसे दबे-कुचले समाज के विद्वान प्रतिनििध बाबा साहेब अम्बेडकर से लिखवाया। भारत के पांच हजार साल के इतिहास में केवल संविधान ही एेसी पुस्तक है जिसमें भारत में रहने वाले सभी इंसानों को एक समान और बराबरी पर रखा गया है और उन्हें ऊंच-नीच या छोटे-बड़े में नहीं बांटा गया। इसके लिए राष्ट्रपिता ने सभी भारतीय नागरिकों को एक वोट के अधिकार से सम्पन्न किया। इस वोट की कीमत एक समान रखी गई। अर्थात एक जमींदार के वोट और एक मजदूर के वोट की कीमत में कोई फर्क नहीं रखा गया। भारतीय समाज के सन्दर्भ मे यह एक क्रान्तिकारी निर्णय था, क्योंकि पूरी दुनिया के जिस देश में भी गैर बराबरी का खात्मा हुआ है उसमें हिंसा प्रमुख रही है परन्तु महात्मा गांधी ने एक वोट का अधिकार देकर पूरे भारतीय समाज की तस्वीर बदल दी और एहसास कराया कि जाति, सम्प्रदायों, वर्गों व विभिन्न समुदायों में बंटे भारत के आम आदमी की सबसे बड़ी ताकत उसका एक वोट होगा जिसके माध्यम से वह इस देश के राजकाज का मालिक होगा और भारत को एकता सूत्र में बांधेगा। इसलिए यह बेवजह नहीं है कि बिहार में चुनाव आयोग जो गहन मतदाता सूची का पुनरीक्षण करा रहा है उस पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। दरअसल चुनाव आयोग मतदाता सूची को संशोधित करने के नाम पर भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की मजबूत जड़ों को कुरेद रहा है। यह करते समय उसे बहुत सावधान रहना होगा क्योंकि एक वोट का अधिकार महात्मा गांधी ने इस देश के नागरिकों को दिलाने के लिए दशकों तक गहन संघर्ष किया था जिसमें हजारों आजादी के दीवाने गुमनाम लोगों की जानें भी गई थीं। यह वोट का अधिकार ही है जो भारतीय नागरिक को इसके लोकतन्त्र में स्वयंभू बनाता है और उसे हक देता है कि वह स्वतन्त्र भारत की किस्मत अपने हाथों से लिखे। चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची को पहले के मुकाबले छोटा कर दिया है। यह जबर्दस्त विरोधाभास है क्योंकि एक तरफ देश की आबादी बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ मतदाता सूची छोटी हो रही है। बिहार में 24 जून 2025 तक कुल 7.89 करोड़ मतदाता थे। मगर 30 सितम्बर 2025 को चुनाव आयोग ने जो सूची जारी की उसमें उनकी संख्या घट कर 7.42 करोड़ रह गई जबकि बिहार में कुल वयस्क नागरिकों की जनसंख्या 8.19 करोड़ है।
बेशक लाखों की संख्या में बिहारी नागरिक रोजी-रोटी की तलाश में भारत के अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। इनमें से बहुत से उन राज्यों के स्थायी निवासी भी हो जाते हैं। इसके लिए राजधानी दिल्ली का उदाहरण लिया जा सकता है जहां 1982 के एशियाई खेलों से पहले बिहारियों की जनसंख्या बहुत कम थी जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग ज्यादा थे। मगर एशियाड के बाद बिहारी नागरिकों की संख्या दिल्ली में बढ़ने लगी और आज हालत यह है कि दिल्ली की एक तिहाई आबादी बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों की है। यही हाल पंजाब राज्य का भी है। इसलिए चुनाव आयोग यदि यह कह रहा है कि बिहार की मतदाता सूची से 32 लाख के लगभग मतदाता इसलिए निकाले गये हैं कि वे अन्य राज्यों में जाकर बस गये हैं तो इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता परन्तु चुनाव आयोग को अपनी कार्य प्रणाली में पूरी पारदर्शिता रखनी होगी और बताना होगा कि उसकी मंशा मतदाता सूची को छांट कर छोटा करने की नहीं, बल्कि हर जायज बिहारी मतदाता का नाम इसमें जोड़ने की है। क्योंकि यदि एक भी जायज मतदाता का नाम सूची से बाहर रह जाता है तो यह भारतीय लोकतन्त्र की मूल आत्मा पर चोट के समान होगा। खबरें बिहार से एेसी भी मिली कि किसी एक सम्प्रदाय व वर्ग के लोगों के नाम ही मतदाता सूची से काटे जा रहे हैं। यदि एेसी शिकायतें सच पाई जाती हैं तो इससे चुनाव आयोग की संवैधानिक सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा क्योंकि बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान में चुनाव आयोग को मतदाता के वोट के अधिकार का संरक्षक बनाया गया है।

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