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Ganesh Visarjan 2025 Muhurat: जानें किस शुभ मुहूर्त में करें गणेश विसर्जन, अनंत चतुर्दशी के दिन सुने ये कथा

01:46 PM Sep 06, 2025 IST | Shweta Rajput
Ganesh Visarjan 2025 Muhurat

Ganesh Visarjan 2025 Muhurat: हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी की काफी बड़ी मान्यता है। इस दिन को पूरे देश में (anant chaturdashi 2025) काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा करते हैं। इसके साथ ही इस दिन दान-पुण्य किया जाता है। गणेश चतुर्थी के इस शुभ अवसर पर रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश की पूजा एवं भक्ति की जाती है।

हर साल भाद्रपद मास में 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। इस बार ये पर्व आज 27 अगस्त बुधवार से को मनाया गया था और यह पर्व 6 सितंबर तक मनाया जाएगा। आज 6 सितंबर 2025 शनिवार है और आज भगवान गणेश का विसर्जन किया जाएगा। अनंत चतुर्दशी पर गणपति बप्पा की विधि विधान के साथ पूजा करने के साथ ही बप्पा को विदा किया जाता है। आइए जानते हैं किस शुभ मुहूर्त में करना चाहिए गणेश विसर्जन और कौन सी कथा का करें पाठ।

Ganesh Visarjan 2025 Muhurat: गणेश विसर्जन का जानें शुभ मुहूर्त

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Ganesh Visarjan 2025 Muhurat

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (anant chaturdashi 2025) 6 सितंबर के दिन है। आज के दिन गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त लगभग 03:12 AM बजे से शुरू हो रहा है और 7 सितंबर, रविवार को लगभग 01:41 AM पर इसका समापन होगा। इसके साथ ही शुभ चौघड़िया सुबह में 7 बजकर 26 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक है।

लाभ चौघड़िया दोपहर में 1 बजकर 54 मिनट से 3 बजकर 28 मिनट तक है। शाम के समय लाभ चौघड़िया 6 बजकर 37 मिनट से 8 बजकर 3 मिनट तक है। शाम के समय शुभ चौघड़िया 9 बजकर 29 मिनट से 10 बजकर 55 मिनट तक। वहीं अमृत काल दोपहर में 12 बजकर 50 मिनट से 2 बजकर 23 मिनट तक। इसके अलावा गोधूलि मुहूर्त शाम में 6 बजकर 37 मिनट से शाम में 7 बजे तक।

Anant Chaturdashi Katha: अनंत चतुर्दशी पर जरूर करें इस कथा का पाठ

Anant Chaturdashi Katha

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप को बेहद सुंदर और अद्भुत रूप से सजाया गया था। उस मंडप में जल की जगह थल तो थल की जगह जल की भ्रांति होती थी। काफी सावधानी के बाद भी कई लोग इस अद्भुत मंडप को देखकर जब यहां आते थे तो धोखा खा जाते था। एक बार इस अद्भुत मंडप दुर्योधन आते हैं और दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे। दुर्योधन को ऐसे देखकर द्रौपदी ने उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। द्रौपदी की ये बात सुनकर दुर्योधन को काफी क्रोध आया और पह बहुत आहत हुए।

इस कटुवचन से दुर्योधन बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को 12 वर्ष वनवास दे दिया। वन में रहते उन्हें अनेकों कष्‍टों को सहना पड़ा। एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए। युधिष्ठिर ने उन्हें सब हाल बताया और इस विपदा से निकलने का मार्ग भी पूछा। इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चर्तुदशी (anant chaturdashi 2025) का व्रत करने को कहा और कहा कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी मिल जाएगा। इस वार्तालाप के बाद श्रीकृष्णजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं।

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था उसकी एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। जब कन्या बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से कर दिया। विवाह पश्चात कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम की ओर चल दिए। रास्ते में रात हो गई जिससे वह नदी के किनारे आराम करने लगे। सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनंत व्रत का महत्व बता दिया और सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्‍ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया। इसके बाद फिर वह पति के पास आ गई। कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी।

कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से अप्रसन्न हो गए। उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया। इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ जिसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्‍ट हो गई। सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना बताया। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए ऋषि अनंत भगवान की खोज में वन की ओर चले गए। वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पडे़ और बेहोश हो गए।

भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और वि‍पत्तियां आई। लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं तुमसे अब प्रसन्न हूं। अपने आश्रम में जाओ और 14 वर्षों तक विधि विधान से मेरा यह व्रत करो। इससे तुम्हारे सारे कष्‍ट दूर हो जाएंगे। कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया और उनके सभी कष्‍ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया। जिससे पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली।

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