Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

ट्रंप के खिलाफ जेन जेड

04:27 AM Oct 24, 2025 IST | Aakash Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के विरोध में अमेरिका के कई शहरों में हज़ारों लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। ये प्रदर्शन राजधानी वॉशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो, मियामी और लॉस एंजेलिस जैसे शहरों में हो रहे हैं। सड़कें और सब-वे लोगों से भरे हुए थे, जिनके हाथों में तख्तियां थीं। इन तख्तियों पर लिखा था, "डेमोक्रेसी नॉट मोनार्की" यानी "लोकतंत्र राजतंत्र नहीं है" और "द कॉन्स्टिट्यूशन इज़ नॉट ऑप्शनल" यानी "संविधान वैकल्पिक नहीं है"। इन प्रदर्शनों से पहले ट्रंप के समर्थकों ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों का संबंध अति-वामपंथी संगठन एंटीफ़ा से है। ट्रंप के सहयोगियों ने इन प्रदर्शनों को "द हेट अमेरिका रैली" कहकर इसकी निंदा की है। आयोजकों के समूह ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि "नो किंग्स" प्रदर्शनों का मुख्य सिद्धांत अहिंसा है। साथ ही समूह ने सभी प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वे किसी भी संभावित टकराव को कम करने की कोशिश करें। न्यूयॉर्क में कुछ जगहों पर भीड़ ने लगातार "दिस इज़ व्हाट डेमोक्रेसी लुक्स लाइक" के नारे लगाए। ट्रम्प के शासन में जेनरेशन ज़ेड अर्थव्यवस्था को कैसे देख रहा है? युवा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा मुद्रास्फीति से निपटने के तरीके की तीखी आलोचना करते हैं लेकिन पुरानी पीढ़ियों की तुलना में वे अपने व्यक्तिगत वित्त के बारे में अधिक आशावादी हैं। यह सर्वेमॉन्की द्वारा संचालित एनबीसी न्यूज स्टे ट्यून्ड पोल के प्रमुख निष्कर्षों में से एक है जो यह बताता है कि जेनरेशन जेड और अमेरिकी लोग नए प्रशासन के शुरुआती महीनों को किस तरह से देख रहे हैं।
सभी पीढ़ियों के अधिकांश वयस्कों ने कहा कि मुद्रास्फीति और जीवन- यापन की बढ़ती लागत ही वह आर्थिक मुद्दा है जो इस समय उनके और उनके परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और सभी पीढ़ियों के अधिकांश लोग ट्रंप द्वारा इन दोनों चिंताओं से निपटने के तरीके से असहमत हैं।
यह विशेष रूप से जेन जेड के 10 में से 7 सदस्यों ने इस बात से असहमति जताई कि ट्रंप ने मुद्रास्फीति और जीवन-यापन की लागत से कैसे निपटा है, जो सर्वेक्षण में शामिल सबसे बुजुर्ग-वयस्कों के बीच अस्वीकृति की दर से 14 प्रतिशत अधिक है।
30 वर्ष से कम आयु के 10 में से तीन अमेरिकियों ने कहा कि उनकी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति एक साल पहले की तुलना में बदतर हो गई है, जबकि 27% ने कहा कि यह बेहतर हुई है। तुलनात्मक रूप से, 65 वर्ष से अधिक आयु के 18% लोगों ने कहा कि पिछले वर्ष की तुलना में उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है।
व्हाइट हाउस में वापसी के बाद ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कई कार्यकारी आदेश जारी किए हैं। उन्होंने कांग्रेस से स्वीकृत फंडिंग को रोक दिया, संघीय सरकार में छंटनी की, कई देशों पर व्यापक टैरिफ़ लगाए। हाल के वक्त में उन्होंने गवर्नरों के विरोध के बावजूद कई शहरों में नेशनल गार्ड्स की तैनाती की। राष्ट्रपति का कहना है कि उनके ये क़दम संकट में घिरे देश के पुनर्निर्माण के लिए ज़रूरी हैं। ट्रंप ने अपने ऊपर लगे तानाशाही या फ़ासीवादी होने के आरोपों को "पागलपन" कहकर ख़ारिज किया है लेकिन आलोचकों का कहना है कि प्रशासन के कुछ फ़ैसले असंवैधानिक हैं और अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं। "वे मुझे राजा कह रहे हैं, मैं राजा नहीं हूं।" ऐसा लगता है कि यह बात सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के मुंह से निकली है लेकिन कथनी और करनी में कपट की एक गहरी खाई है और डोनाल्ड ट्रंप का किसी भी राजशाही के दावे से इन्कार, लगभग हास्यास्पद है। वीडियो में जिस बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शनों का वह जिक्र कर रहे हैं, उन पर उनकी प्रतिक्रिया देखिए, ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया गया एक एआई-जनरेटेड वीडियो जिसमें वह एक मुकुट पहने हुए, प्रदर्शनकारियों पर एक विमान से मल फेंकते हुए दिखाई दे रहे हैं। जनवरी में पदभार ग्रहण करने के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी मर्ज़ी से किसी को भी बर्खास्त करने, अपनी पसंद के सौदे करने और अपनी मर्ज़ी से खर्च करने (या इससे भी ज़्यादा विनाशकारी, कटौती करने) की शक्ति अपने हाथ में ले ली है और यह सब ज़ाहिर है। विधायी शाखा को दरकिनार करके जो अदालतें अपनी निगरानी शक्ति का इस्तेमाल करना चाहती हैं उनके लिए वह खुलेआम धमकी दे रहे हैं, जैसा कि वह उन सभी के लिए करते हैं जो उनके या उनकी नीतियों के ख़िलाफ़ बोलते हैं। राष्ट्रपति ने अपने पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन (जिन्हें शुक्रवार को जासूसी अधिनियम के तहत कथित तौर पर संवेदनशील सरकारी जानकारी साझा करने के आरोप में दोषी ठहराया गया था), पूर्व एफबीआई निदेशक जेम्स कॉमी (जिन पर न्याय में बाधा डालने और कांग्रेस से झूठ बोलने के आपराधिक आरोप हैं) और न्यूयॉर्क की अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स (जिन पर इस महीने की शुरुआत में वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था) जैसे मुखर आलोचकों के ख़िलाफ़ संघीय शक्ति का इस्तेमाल किया है। उन्होंने बार-बार अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन किया है, जिसमें मीडिया संस्थानों पर मुकदमा दायर करना भी शामिल है। उनके निशाने पर रहे प्रकाशनों और चैनलों में द न्यू यॉर्क टाइम्स, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, सीएनएन, सीबीएस और एबीसी शामिल हैं।
कैंपस में यहूदी विरोधी गतिविधियों के नाम पर ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड, कोलंबिया और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों की फंडिंग रोक दी है। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने कुल मिलाकर 50 से ज़्यादा यूनिवर्सिटीज़ के ख़िलाफ़ जांच भी शुरू की है। आर्थिक मोर्चे पर बात करें तो ट्रंप की नीतियों की वजह से अमेरिका में पिछले कुछ महीनों के दौरान महंगाई भी बढ़ी है। इसके साथ-साथ बेरोज़गारी दर भी लगातार बढ़ रही है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2025 के अंत तक अमेरिका आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है। इस चेतावनी से अमेरिका के लोग परेशान हैं।
सबसे ज़्यादा विवाद ट्रंप की टैरिफ नीति को लेकर है। ट्रंप ने अपनी टैरिफ नीति का ख़ूब ढोल पीटा लेकिन अब इसके असर को लेकर जो रिपोर्ट आ रही है उसके मुताबिक़ टैरिफ की वजह से सबसे ज़्यादा नुक्सान अमेरिकी कंपनियों और वहां के लोगों को ही हो रहा है। ट्रंप ने अमेरिका के लोगों को सपना दिखाया कि टैरिफ लगाने से 1 ट्रिलियन डॉलर की आमदनी होगी लेकिन अभी तक वास्तविक कमाई उम्मीद से काफ़ी कम है। ट्रंप न सिर्फ़ अमेरिका के लोगों, बल्कि वहां के संस्थानों को भी चोट पहुंचाने से बाज़ नहीं आते।
ट्रंप की लोकप्रियता में इसी गिरावट का असर बार-बार लोगों के बीच दिखता है और उन्हें देखते ही लोग विरोध शुरू कर देते हैं। अगर नेपाल से अमेरिका की तुलना करें तो अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है और वहां के संस्थान ट्रंप के ज़ुबानी हमलों के बावजूद अभी भी मज़बूत स्थिति में हैं। ऐसे में इस बात की कम संभावना है कि अमेरिका में नेपाल जैसे हालात बनेंगे लेकिन फ्रांस जैसी स्थिति बनने की संभावना बनी हुई है। 2026 के मिड टर्म चुनाव में अगर ट्रंप की पार्टी को नुक्सान का सामना करना पड़ा तो उनके ख़िलाफ़ लोगों का विरोध-प्रदर्शन और तेज़ होगा, साथ ही ज़ोरदार ढंग से ट्रंप की मनमानी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठ सकती है।

Advertisement
Advertisement
Next Article