प्रदोष व्रत से पाएं ऋण से मुक्ति
हम सभी जानते हैं कि लोन लेना जितना आसान है उसे चुकता करना उतना ही कठिन है। यदि आपने अपनी आमदनी से अधिक का ऋण ले लिया है या आप यह भी कह सकते हैं कि जितनी आपकी ई.एम.आई. है उसकी तुलना में आपकी तनख्वाह या बिजनेस अर्निंग नहीं है तो निश्चित तौर पर आपको भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कई बार व्यक्ति भविष्य की किसी योजना विशेष या आमदनी की आशा में लोन ले लेता है लेकिन जैसा सोचा होगा, वैसा जरूरी नहीं कि हो ही जाए इसलिए ई.एम.आई. आपके गले की हड्डी बन सकती है। इसलिए पहली सलाह तो यही है कि किसी आशा पर कोई ऋण नहीं लेना चाहिए। ऋण उतना ही लें जितना की आप आसानी से चुकता कर सकते हैं। क्योंकि एक बार ऋण ग्रस्त होने पर इस जंजाल से निकल पाना बहुत कठिन होता है। इस स्थिति से जितना हो सके बच कर रहना चाहिए। क्योंकि ब्याज लेकिन पैसा देने वालों की योजना इस तरह की बनाई गई होती है कि एक बार इनके चंगुल में यदि कोई फंस गया तो उसका निकलना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ऋण से मुक्ति के अनेक प्रकार के अचूक उपायों का विवरण प्राप्त होता है। यदि इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा से किया जाए तो निश्चित लाभ होगा, इसमें कोई शंका नहीं है।
इसी क्रम में मैं यहां प्रदोष व्रत के बारे में बता रहा हूँ। इस व्रत को नियमित रूप से करने से कर्ज उसी प्रकार भाग जाता है जिस प्रकार से सूर्योदय होने पर अन्धकार भागता है। हालांकि इसमें एक से दो वर्ष का समय लग सकता है लेकिन परिणाम 100 प्रतिशत आता है, यह तय बात है। इस व्रत की एक खास विशेषता यह भी है कि कर्ज मुक्ति के साथ शत्रुओं को नष्ट करने क्षमता बोनस के रूप में मिलती है।
प्रत्येक माह में शुक्ल और कृष्ण पक्ष में दो त्रयोदशी तिथियां होती है। किसी भी त्रयोदशी तिथि को यदि मंगलवार हो तो भौम प्रदोष होता है। यहां एक बात मैं अपने पाठकों के हितार्थ क्लीयर कर दूं कि ऋण मुक्ति के लिए यद्यति भौम प्रदोष का व्रत किया जाता है। इसका अर्थ है कि जिस दिन त्रयोदशी तिथि को मंगलवार हो, वह दिन भौम प्रदोष होता है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है कि त्रयोदशी तिथि मंगलवार को ही आए। इसलिए सभी प्रदोष व्रत करने चाहिए।
कैसे करें प्रदोष व्रत प्रदोष व्रत मूलतः भगवान शिव की आराधना है। प्रदोष व्रत रखने वाला प्रातः शीघ्र उठ कर नित्य कर्म करे। पूरी तरह से शुद्धता रखते हुए गंगा जल, चावल, बेलपत्र और दीप से भगवान श्रीशिव की पूजा करें। व्रत के नियमानुसार निराहार रहना है। कुछ विद्वानों का मत है कि इस व्रत में जल का सेवन भी नहीं करना चाहिए। यदि स्वास्थ्य कमजोर हो तो दूध या फल का सेवन किया जा सकता है लेकिन अनाज नहीं खाना है। संध्या बेला में पुनः स्नान आदि करके भगवान श्रीशिव की पूजा करनी है।
ज्योतिर्विद् सत्यनारायण जांगिड़।
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