कम खोज वाले तेल-गैस ब्लाक से उत्पादन लाभ में हिस्सा नहीं मांगेगी सरकार
इसके तहत वैसे क्षेत्रों के लिये अलग-अलग नियम होंगे जहां पहले से उत्पादन हो रहा है और ऐसे क्षेत्र जहां तेल एवं गैस का वाणिज्यिक उत्पादन अभी शुरू होना है।
नई दिल्ली : सरकार ने तेल एवं गैस खोज के क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये इससे जुड़ी नीति में अहम बदलाव किये हैं। सरकार कम खोज वाले ब्लॉक में निवेशक द्वारा तेल एवं गैस उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में उस पर लाभ में कोई हिस्सा नहीं मांगेगी। घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिये निजी और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के इरादे से यह कदम उठाया गया है। सभी अवसादी बेसिनों के लिये एक समान अनुबंध व्यवस्था की ढाई दशक पुरानी नीति में बदलाव करते हुए नई नीति में अलग-अलग क्षेत्रों के लिये भिन्न नियम बनाये गये हैं।
इसके तहत वैसे क्षेत्रों के लिये अलग-अलग नियम होंगे जहां पहले से उत्पादन हो रहा है और ऐसे क्षेत्र जहां तेल एवं गैस का वाणिज्यिक उत्पादन अभी शुरू होना है। आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार बेसिन की स्थिति पर विचार किये बिना उत्पादकों को भविष्य में बोली दौर में तेल एवं गैस के लिये विपणन और कीमत के मामले में आजादी होगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 फरवरी को नियम में बदलाव को मंजूरी दी। इसमें कहा गया है कि भविष्य में सभी तेल एवं गैस क्षेत्र या ब्लाक का आबंटन प्राथमिक रूप से खोज कार्यों को लेकर जतायी गयी प्रतिबद्धता के आधार पर किये जाएंगे।
नये नियम के तहत कंपनियों को श्रेणी-एक के अंतर्गत आने वाले अवसादी बेसिन से होने वाली आय का एक हिस्सा देना होगा। इसमें कृष्णा गोदावरी, मुंबई अपतटीय, राजस्थान या असम शामिल हैं जहां वाणिज्यिक उत्पादन पहले से हो रहा है। वहीं कम खोज वाले श्रेणी-दो और तीन बेसिन में तेल एवं प्राकृतिक गैस पर केवल मौजूदा दर पर रायल्टी ली जाएगी। इसमें कहा गया है, ‘‘अगर जमीन और उथले जल क्षेत्र में स्थित ब्लाक उत्पादन चार साल के भीतर शुरू किया जाता है तथा गहरे जल क्षेत्र में अनुबंध की तारीख से पांच साल में उत्पादन शुरू किया जाता है तो रियायती दर से रायल्टी देनी होंगे।’’
भारत ने 1999 में नई खोज लाइसेंसिंग नीति (नेल्प) के तहत तेल एवं गैस खोज ब्लाक के लिये बोली आमंत्रित की। इसमें ब्लाक उन कंपनियों को आबंटित किये जाते हैं जो अधिकतम कार्य की प्रतिबद्धता जताते है। लेकिन कंपनियों को उन क्षेत्रों में खोज तथा अन्य कार्यों पर आने वाली अपनी लागत पूरी होने के बाद लाभ को सरकार के साथ साझा करना होता है। दो साल पहले भाजपा सरकार ने इस नीति के स्थान पर हाइड्रोकार्बन खोज एवं लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) को पेश किया। इसमें विभिन्न स्तर की कीमत एवं उत्पादन के आधार पर अधिकतम राजस्व की पेशकश करने वाली कंपनियों को ब्लाक आबंटित किये जाते हैं।