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राज्यपाल का अभिभाषण व प्रश्नकाल नहीं होना चाहिए बाधित : सुशील मोदी

संविधान की मूलभूत ढांचा यथा केन्द्र-राज्यों की शक्ति के पृथककरण, संसदीय लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धांत में संशोधन नहीं कर सकती है।

07:40 PM Feb 06, 2019 IST | Desk Team

संविधान की मूलभूत ढांचा यथा केन्द्र-राज्यों की शक्ति के पृथककरण, संसदीय लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धांत में संशोधन नहीं कर सकती है।

पटना : बिहार विधान मंडल के सेंट्रल हॉल के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण व प्रश्नकाल को विपक्ष को बाधित नहीं करना चाहिए। विपक्ष के लिए सरकार को धेरने का सबसे बेहतर मौका प्रश्नकाल ही होता है। प्रश्नकाल को बाधित कर विपक्ष सरकार का नहीं, एक तरह से जनता का ही अहित करता है। देश जब आजाद हुआ तो कतिपय लोगों का यह मानना था कि लम्बे समय तक देश एकजुट नहीं रह पायेगा। मगर गुजरे 75 साल में देश ने दिखा दिया है कि संविधान की मर्यादा और लोकतंत्र की रक्षा करने में हम सक्षम है।

भारतीय संविधान में ब्रिटिश संसदीय परम्परा से बहुत कुछ लिया गया है। ब्रिटेन का संविधान अलिखित मगर भारत का लिखित है। भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन होता है जबकि ब्रिटेन में राजा/रानी वंशानुगत होता है। ब्रिटेन का हाउस ऑफ लार्ड्स भारत की राज्यसभा की तरह है, मगर हाउस ऑफ लार्ड्स के लिए चुना गए सदस्य आजीवन होता है।

ब्रिटेन में संसद सर्वोपरि है, मगर भारत में विधायिका व न्यायपालिका दोनां सार्वभौम है। भारत में संसद को संविधान में संशोधन व कानून बनाने का तो न्यायपालिका को उसकी समीक्षा करने का अधिकार है। भारत की संसद संविधान की मूलभूत ढांचा यथा केन्द्र-राज्यों की शक्ति के पृथककरण, संसदीय लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धांत में संशोधन नहीं कर सकती है।

ब्रिटेन में जब हाउस ऑफ कॉमन और हाउस ऑफ लार्ड्स के संयुक्त अधिवेशन को महारानी सम्बोधित करने आती हैं तो हाउस ऑफ कॉमन के दरवाजे को बंद कर दिया जाता है। सदस्यों को हाउस ऑफ लार्ड्स के दरवाजे से अंदर आना होता है। इसके पीछे की कहानी है कि 500 साल पहले राजाओं ने घोड़े पर सवार हो कर हाउस ऑफ कॉमन में प्रवेश कर लिया था। ब्रिटेन की संसदीय परम्परा से प्रभावित होने के बावजूद भारतीय संविधान में दुनिया के अनेक देशों के संविधान की कई अच्छाइयां समाहित है।

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