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ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना: पर्यावरण से खिलवाड़

04:15 AM Jul 14, 2025 IST | Shera Rajput

ग्रेट निकोबार द्वीप, जो भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है, अपनी अनूठी जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह द्वीप भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु, इंदिरा पॉइंट, होने के साथ-साथ यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व भी है। कुछ समय पहले नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित रु. 72,000 करोड़ की ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना ने इस क्षेत्र को वैश्विक व्यापार, पर्यटन और सामरिक महत्व का केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इस परियोजना में एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और एक गैस और सौर ऊर्जा आधारित पावर प्लांट का निर्माण शामिल है। इस परियोजना को लेकर पर्यावरणविदों, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं।
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को नीति आयोग ने 2021 में शुरू किया था, जिसका उद्देश्य इस द्वीप को एक आर्थिक और सामरिक केंद्र के रूप में विकसित करना है। यह द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित है, जो विश्व के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। परियोजना के तहत 16,610 हैक्टेयर भूमि का उपयोग किया जाएगा, जिसमें से 130.75 वर्ग किलोमीटर प्राचीन वन क्षेत्र शामिल है। इस परियोजना को राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों ने इसे विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया है। ग्रेट निकोबार द्वीप 1989 में बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया था और 2013 में यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम में शामिल किया गया। यह द्वीप 1,767 प्रजातियों के साथ एक समृद्ध जैव विविधता का घर है, जिसमें 11 स्तनधारी, 32 पक्षी, 7 सरीसृप और 4 उभयचर प्रजातियां शामिल हैं, जो इस क्षेत्र में स्थानिक हैं। परियोजना के लिए लगभग 9.6 लाख से 10 लाख पेड़ों की कटाई की जाएगी, जो द्वीप के प्राचीन वर्षावनों को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगी। यह न केवल स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करेगा, बल्कि प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचाएगा। गलाथिया खाड़ी, जहां ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल प्रस्तावित है, लेदरबैक कछुओं और निकोबार मेगापोड पक्षियों का प्रमुख प्रजनन स्थल है। 2021 में गलाथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य को डिनोटिफाई कर दिया गया, जो भारत के राष्ट्रीय समुद्री कछुआ संरक्षण योजना (2021) के विपरीत है। यह कछुओं और अन्य समुद्री प्रजातियों के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है, क्योंकि बंदरगाह निर्माण से होने वाला प्रदूषण, ड्रेजिंग, और जहाजों की आवाजाही उनके प्रजनन और अस्तित्व को प्रभावित करेगी। द्वीप पर शोम्पेन और निकोबारी आदिवासी समुदाय रहते हैं, जो विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के रूप में वर्गीकृत हैं। ये समुदाय अपनी आजीविका और संस्कृति के लिए जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। परियोजना से इनके पारंपरिक क्षेत्रों का 10% हिस्सा प्रभावित होगा, जिससे उनकी सामाजिक संरचना और जीविका पर खतरा मंडराएगा। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बाहरी लोगों के संपर्क से इन जनजातियों में रोगों का खतरा बढ़ सकता है, जिससे उनकी आबादी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकती है। ग्रेट निकोबार द्वीप अंडमान-सुमात्रा फॉल्ट लाइन पर स्थित है, जो भूकंप और सुनामी के लिए अत्यधिक संवेदनशील है। 2004 की सुनामी ने इस क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया था। पर्यावरण प्रभाव आकलन में भूकंपीय जोखिमों को कम करके आंका गया है और विशेषज्ञों का कहना है कि परियोजना के लिए साइट-विशिष्ट भूकंपीय अध्ययन नहीं किए गए। यह एक बड़े पैमाने पर आपदा का कारण बन सकता है। परियोजना के लिए काटे गए जंगलों की भरपाई के लिए हरियाणा और मध्य प्रदेश में प्रतिपूरक वनीकरण का प्रस्ताव है। लेकिन ये क्षेत्र निकोबार की जैव विविधता से कोई समानता नहीं रखते। यह पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने में असमर्थ है। पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया और मूल्यांकन दस्तावेजों को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर गोपनीय रखा गया है। विशेषज्ञों का तर्क है कि केवल हवाई अड्डे का सामरिक महत्व हो सकता है, न कि पूरी परियोजना का। पारदर्शिता की यह कमी परियोजना की वैधता पर सवाल उठाती है। विपक्षी दलों, विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ने परियोजना को "पारिस्थितिक और मानवीय आपदा" करार दिया है। पर्यावरणविदों और नागरिक समाज संगठनों ने इसे जैव विविधता और आदिवासी अधिकारों के लिए खतरा बताया है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2023 में परियोजना की पर्यावरण और वन मंजूरी की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी, लेकिन इसके बावजूद परियोजना को आगे बढ़ाने में जल्दबाजी दिखाई दे रही है। ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पारदर्शी और व्यापक पर्यावरण प्रभाव आकलन, आदिवासी समुदायों के साथ उचित परामर्श और भूकंपीय जोखिमों का सटीक मूल्यांकन आवश्यक है। इसके साथ ही, परियोजना के आर्थिक व्यवहार्यता की पुन: समीक्षा होनी चाहिए, क्योंकि भारत में हाल ही में शुरू हुआ विशाखापत्तनम का ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल पहले से ही वैश्विक व्यापार में योगदान दे रहा है। पर्यावरण और जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे कि परियोजना क्षेत्र को सीआरजेड 1ए क्षेत्रों से बाहर रखा जाए। आदिवासी समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए। भूकंपीय जोखिमों के लिए साइट-विशिष्ट अध्ययन किए जाएं। निकोबार के भीतर ही प्रतिपूरक वनीकरण पर ध्यान दिया जाए। ग्रेट निकोबार द्वीप भारत की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। इसे बचाने के लिए विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना होगा। भ्रामक तथ्यों के आधार पर जल्दबाजी में लिए गए निर्णय न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएंगे, बल्कि भारत की वैश्विक पर्यावरण संरक्षण प्रतिबद्धताओं को भी कमजोर करेंगे।

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