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लाटरी पर जीएसटी दर का मुद्दा

एक दौर था जब लाटरी लोगों के लिए नशा बन चुकी थी। कभी न कभी तो किस्मत खुलेगी यह सोच कर मजदूर वर्ग से लेकर नौकरी पेशा लोग भी रोजाना लाटरी खरीदते थे।

03:55 AM Dec 21, 2019 IST | Ashwini Chopra

एक दौर था जब लाटरी लोगों के लिए नशा बन चुकी थी। कभी न कभी तो किस्मत खुलेगी यह सोच कर मजदूर वर्ग से लेकर नौकरी पेशा लोग भी रोजाना लाटरी खरीदते थे।

एक दौर था जब लाटरी लोगों के लिए नशा बन चुकी थी। कभी न कभी तो किस्मत खुलेगी यह सोच कर मजदूर वर्ग से लेकर नौकरी पेशा लोग भी रोजाना लाटरी खरीदते थे। किस्मत तो कुछ लोगों की चमकती थी लेकिन लाटरी ने हजारों लोगों के घर बर्बाद कर दिए। लाटरी खेलने का नशा इस कदर हावी हो चुका था कि लोग काेई भी परवाह किए बगैर अपनी कमाई लाटरी पर लुटा देते थे। अनेक लोग तो लाटरी के अंतिम नम्बरों का हिसाब-किताब भी नोट बुक में रखने लगे थे क्योंकि अंतिम नम्बरों पर भी ईनाम मिलता था। 
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जब लोग लुटने लगे और आत्महत्याएं करने लगे तो सरकार नींद से जागी। लाटरी के धंधे में फर्जी लाटरी वाले भी शामिल हो चुके थे। रेलवे स्टेशनों से लेकर बस अड्डों तक और गलियों से लेकर सिनेमा घरों तक लाटरी के बाजार सजे होते थे। सड़कों पर लाटरी टिकटें ​बिखरी होती थी और उधर घर बिखर रहे थे। लाटरी माफिया पूरी तरह तीन दशक से भी अधिक समय तक सक्रिय रहा और उसने करोड़ों की कमाई की। जब समाज खतरे की कगार पर पहुंचने लगा तो अधिकतर राज्यों ने लाटरी का कारोबार बंद कर दिया। 
लाटरी एक जुए के समान हो गई थी और समाज पर इसका दुष्प्रभाव बढ़ रहा था। स्कूली बच्चे भी लाटरी खरीदने लगे थे परन्तु कुछ राज्य सरकारें आज भी लाटरी का कारोबार कर रही हैं। जिन राज्यों में लाटरी का कारोबार चलाया जाता है उन्हें इससे आधा राजस्व मिलता है। लाटरी न तो कोई उत्पाद है और न ही कोई सेवा क्षेत्र है। यह एक तरह सेे अनैतिक कारोबार है जिसमेें लाखों लोगों की मेहनत की कमाई इकट्ठी कर किसी ‘भाग्यशाली’ को सौंप दी जाती है। इस अनैतिक कारोबार को कुछ राज्य सरकारें चला ही क्यों रही हैं, यह सवाल तो सबके सामने खड़ा है। 
जीएसटी काउंसिल की बैठकों में वैसे तो सभी फैसले एक राय से सर्वसम्मति से लिए जाते हैं लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में हुई इस बार की बैठक में लाटरी पर जीएसटी की दर निर्धारित करने के मसले पर मतभेद पैदा हो गए। पहली बार लाटरी पर जीएसटी दर के निर्धारण के लिए बैठक में मतदान हुआ। सरकारी और निजी लाटरी की ​बिक्री पर संंबंधित राज्य में 12 प्रतिशत जीएसटी का प्रावधान था, जबकि दूसरे राज्यों में उन्हें बेचने पर 28 फीसदी का प्रावधान था। बैठक में राज्यों के कुछ वित्त मंत्रियों की मांग थी कि इस पर दो तरह के कर नहीं रखने चाहिए, मगर परिषद के कुछ सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे। 
तब मतदान का सहारा लेना पड़ा। 21 राज्यों ने लाटरी पर जीएसटी की दर 28 फीसदी करने के पक्ष में मतदान किया। दरअसल केरल के ​वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने एक समान जीएसटी के मुद्दे को लेकर मतदान का प्रस्ताव ​दिया था। मतदान में केवल 7 राज्यों ने विरोध में मतदान किया। लाटरी उद्योग लम्बे समय से 12 फीसदी की दर से एक समान कर लगाने और पुरस्कार की राशि को कर मुक्त करने की मांग कर रहा था। अब लाटरी पर एक समान दर 28 फीसदी कर दी गई जो मार्च 2020 में प्रभावी होगी। जीएसटी काउंसिल की बैठक में हुए मतदान से फैसलों को सर्वसम्मति से लेने की परम्परा टूट गई। यद्यपि कई फैसले सर्वसम्मति से लिए गए। 
अब लाटरी खरीदने वालों को नए वर्ष में लाटरी महंगी मिलेगी और स्पष्ट है कि उन पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। इस पर कर दर बढ़ने से बहुत सारे खरीदारों पर असर पड़ेगा और लाटरी की ​बिक्री प्रभावित होगी। राज्य सरकारों का राजस्व भी कम होगा। इसलिए कुछ राज्यों ने महंगी दर का विरोध किया। जिस देश में महंगाई का दौर जारी हो, खाद्य वस्तुओं के भाव रोजाना बढ़ रहे हों, आम आदमी की थाली भी प्रभावित हो रही हो, वहां लाटरी बेचने के धंधे का औचित्य नजर नहीं आता। अनैतिक कारोबार पर 12 फीसदी की दर रखने का कोई औचित्य ही नहीं था। लाटरी महंगी होगी तो दिहाड़ीदार मजदूर और आम गरीब लोग इसे खरीदने से परहेज करेंगे। 
अगर ​किसी की नशे की लत की तरह लाटरी खरीदने की लत छूट जाए तो यह समाज के लिए बेहतर होगा लेकिन आम आदमी की प्रतिक्रिया कुछ इस तरह से सामने आ रही है-‘‘लो अब लाटरी भी गरीबों के ​लिए नहीं बल्कि उनके लिए हो गई है जिनकी जेब में पैसा है, यानी लाटरी अमीर आदमी ही खरीदेगा और अपनी किस्मत आजमाएगा। लाटरी कोई जीवन यापन के लिए रोजमर्रा इस्तेमाल की जाने वाली आवश्यक वस्तु नहीं तो फिर इसका कारोबार का औचित्य ही नहीं। राज्य सरकारों को राजस्व बढ़ाने के लिए कुछ नया प्रबंधन करना होगा ताकि समाज अच्छी आदतों के साथ जीना सीखे।
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