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आतंकवादियों की संरक्षक सुरक्षा परिषद !

भारत लगातार कहता आया है कि विश्व की जनसंख्या के एक छोटे समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली और समय के साथ न बदलने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है।

02:36 AM Dec 12, 2020 IST | Aditya Chopra

भारत लगातार कहता आया है कि विश्व की जनसंख्या के एक छोटे समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली और समय के साथ न बदलने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है।

भारत लगातार कहता आया है कि विश्व की जनसंख्या के एक छोटे समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली और समय के साथ न बदलने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है। यह वैश्विक संस्था आतंकवाद और युद्धों को रोकने और शांति स्थापना के लिए मौजूदा चुनौतियों का सामना करने में विकलांग हो चुकी है। हम लोगों की ओर से फैसले लेने वाली सुरक्षा परिषद को वक्त के साथ वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए। आतंकवाद को लेकर बयानबाजी करने वाली संस्था का फैसला हम सबके लिए चौंकाने वाला है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने 26/11 हमले की योजना बनाने वाले कट्टरपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आपरेशन प्रमुख जकीउर रहमान लखवी को हर महीने 1.50 लाख पाकिस्तानी रुपए देने की अनुमति दे दी है। समिति ने प्रतिबंधित परमाणु वैज्ञानिक महमूद सुल्तान वशीरुद्दीन को भी हर महीने पैसे भेजने की पाकिस्तान की अपील स्वीकार कर ली है। बशीरुद्दीन उस्माह तामीर-ए-नौ का संस्थापक और निदेशक रहा है। पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा आयोग के लिए काम करने वाला बशीरुद्दीन अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन से भी मिला था। पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार ने उसे सितारा- ए-इम्तियाज सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा था। संयुक्त राष्ट्र समिति ने यह अनुमति मानवाधिकारों के नाम पर दी है। बड़ा आश्चर्य है कि समिति को आतंकवादियों के मानवाधिकारों की चिंता है जो निर्दोष लोग इनकी साजिशों का शिकार हुए उनके मानवाधिकारों की चिंता नहीं है।  मुम्बई के आतंकवादी हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने लखवी को चरमपंथी की सूची में डाला था। लखवी 2015 में जमानत लेकर खुला घूम रहा है।
अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र दोनों ने ही उस्माह तामीर ए-नौ और परमाणु वैज्ञानिक बशीरुद्दीन पर प्रतिबंध लगा दिया था। वह भी पाकिस्तान में आजादी से रह रहा है। लखवी भारत के विरुद्ध लगातार जहर उगलने वाले हाफिज सईद का करीबी है। अगर सईद के बाद उसे लश्कर का दूसरा मुखिया कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मुम्बई हमले से जुड़ी हर जांच में उसका नाम आया था। अजमल कसाब, डेविड हेडली और अबु जुदोल ने भी पूछताछ के दौरान कई बार लखवी का नाम लिया था। लखवी ही वह शख्स है जिस पर हमलों की पूरी जिम्मेदारी थी जो हमलावरों को निर्देश दे रहा था। मुम्बई हमलों में सईद तो सिर्फ एक दिमाग की तरह काम कर रहा था। हाफिज सईद ही नहीं बल्कि लखवी ने भी भारत को खून से लाल करने की कसम खाई हुई है। लखवी का नाम पहली बार उस समय लोगों ने सुना था जब वर्ष 1999 में मुर्दिके सम्मेलन हुआ था और तीन दिन तक चले सम्मेलन में लखवी ने फिदायिनों को भारत पर हमले करने और यहां पर खून-खराबा करने को कहा था। मुम्बई की लोकल ट्रेन में वर्ष 2006 में हुए बम धमाकों की साजिश भी लखवी ने ही रची थी। भारत टॉप वांटेड की सूची में शामिल लखवी को उसे सौंपने के लिए कई बार पाकिस्तान को कह चुका है लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरान और अदालतें भारतीय सबूतों को नकारते ही आ रहे हैं। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को एक टेप दिया था जिसमें मुम्बई के आतंकवादी हमलों के दौरान आतंकवादियों से लखवी की बातचीत थी। 
निर्दोष लोगों की हत्या कर उनके खून से अपने हाथ रंगने वाले लखवी को अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति हर महीने खाने के लिए 50 हजार, दवाइयों के लिए 45 हजार, पब्लिक यूटिलिटी चार्जेज के लिए 20 हजार, वकील की फीस के लिए 20 हजार और आने-जाने के लिए 15 हजार रुपए देने की अनुमति देती है तो इसका अर्थ सीधा आतंकवाद को संरक्षण देना है। फंडिंग फी को लेकर आतंकवादियों पर पाक सरकार पहले ही मेहरबान है।  संयुक्त राष्ट्र जिन आतंकवादियों को प्रतिबंधित करता है, उन्हें ही पैसा और अन्य सुविधाएं देने का फैसला लेना है तो फिर प्रतिबंध लगाने का ढोंग क्यों?
यह बात सही है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य इसे एक प्रजातांत्रिक संस्था के तौर पर स्वीकार करते हैं, परन्तु सच्चाई यह है कि इसके 5 स्थायी सदस्यों यानी बिग फाइव का रवैया पूरी तरह अधिनायकवादी है। सुरक्षा परिषद तो इनके हाथों की कठपुतली है। अमेरिका को पता है कि भारत को अगर सुरक्षा परिषद में वीटो अधिकार मिल गया तो वह न विध्वंस का खेल कर पाएगा जैसा कि उसने अफगानिस्तान, इराक और ​लीबिया में खेला और न ही पाकिस्तान जैसे टुच्चे से मुल्क के साथ अठखेलियां कर पाएगा। क्या सुरक्षा परिषद को पता नहीं है कि  पाकिस्तान जिहादी फंडामेंटलिज्म के नाम पर क्या कर रहा है। इराक को तबाह करने और सद्दाम शासन को उखाड़ फैंकने पर वह खामोश क्यों रहा, जबकि एक भी रासायनिक हथियार वहां नहीं मिला था। क्या सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति को लादेन से संबंध रखने वाले परमाणु वैज्ञानिक बशी​रुद्दीन के इरादों का पता नहीं है। परमाणु अप्रसार के मामले में भी सुरक्षा परिषद की नीति भेदभावपूर्ण रही। अब जबकि पूरी दुनिया में आतंकवादियों की फंडिंग और मनी लांड्रिंग पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं तो फिर सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकवादियों को फंड देने की स्वीकृति एक तरह से आतंकवाद को प्रश्रय देना ही है। पाकिस्तान को कभी ग्रे सूची में डालने या ब्लैकलिस्टेड करने की चेतावनियों का क्या आैचित्य रह जाता है जब आतंकवादियों के भरण-पोषण को वैधानिक बना दिया जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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