गुजरात : मोरबी हादसे में अब तक 141 की मौत, रेस्क्यू में जुटीं सेना और NDRF, बचाए गए 177 लोग
गुजरात के मोरबी में रविवार शाम मच्छु नदी में बना केबल ब्रिज अचानक टूट जाने से 141 लोगों की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त पुल पर 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे।
09:28 AM Oct 31, 2022 IST | Desk Team
गुजरात के मोरबी में रविवार शाम मच्छु नदी में बना केबल ब्रिज अचानक टूट जाने से 141 लोगों की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त पुल पर 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे। यह पुल करीब एक सदी पुराना था और मरम्मत एवं नवीनीकरण कार्य के बाद हाल ही में इसे जनता के लिए खोला गया था।
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अब तक 177 लोगों का रेस्क्यू
रेस्क्यू के लिए सेना, नेवी, एयरफोर्स एनडीआरएफ, फायर ब्रिगेड, एसडीआरएफ की टीमें जुटी हुई हैं। अब तक 177 लोगों को बचाया जा चुका है। भारतीय सेना के मेजर गौरव ने बताया, बचाव कार्य जारी है। रात करीब तीन बजे भारतीय सेना यहां पहुंच गई थी। हम शवों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीआरएफ की टीमें भी बचाव अभियान चला रही हैं।

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ब्रिज का रखरखाव करने वाली एजेंसी के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज
मोरबी हादसे को लेकर रखरखाव करने वाली एजेंसी के खिलाफ 304, 308 और 114 के तहत क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है, हादसे को लेकर आज से ही जांच शुरू की गई है। रेस्क्यू किये गए लोगों में से 19 का इलाज चल रहा है। 3 लोगों को राजकोट में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है।

ब्रिज पर कूदते और केबल को खीचंते हुए देखे गए लोग
एक प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि अंग्रेजों के समय के इस ‘‘हैंगिंग ब्रिज’’ पर उस समय कई महिलाएं और बच्चे थे, जब वह टूट गया। इससे लोग नीचे पानी में गिर गए। कुछ लोगों को पुल पर कूदते और उसके बड़े केबल को खींचते हुए देखा गया। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पुल उस पर ‘लोगों की भारी भीड़’ के कारण टूट कर गिर गया हो।
उन्होंने बताया कि पुल गिरने के चलते लोग एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े। एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, ‘‘मैं अपने कार्यालय समय के बाद दोस्तों के साथ नदी के किनारे आया था जब हमने पुल के टूटने की आवाज़ सुनी। हम वहां पहुंचे और लोगों को बचाने के लिए पानी में कूद गए। हमने कुछ बच्चों और महिलाओं को बचाया।’’
100 साल से ज्यादा पुराना था ब्रिटिश काल का केबल ब्रिज
केबल ब्रिज 100 साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है। यह ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था। राजा-महाराजाओं के समय का यह पुल ऋषिकेश के राम-झूला और लक्ष्मण झूला पुल कि तरह झूलता हुआ सा नजर आता था, इसलिए इसे झूलता पुल भी कहते थे। इसे गुजराती नव वर्ष पर महज 5 दिन पहले ही मरम्मत एवं नवीनीकरण के बाद चालू किया गया था।
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