टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलSarkari Yojanaहेल्थ & लाइफस्टाइलtravelवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

गुरु नानक जयंती और भारत

आज देव दीपावली है सिख मत के प्रतिष्ठाता गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म दिवस। उत्तर भारत में इस दिन गंगा स्नान का पर्व भी कार्तिक मास की पूर्ण मासी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है

12:01 AM Nov 30, 2020 IST | Aditya Chopra

आज देव दीपावली है सिख मत के प्रतिष्ठाता गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म दिवस। उत्तर भारत में इस दिन गंगा स्नान का पर्व भी कार्तिक मास की पूर्ण मासी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है

आज देव दीपावली है सिख मत के प्रतिष्ठाता गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म दिवस। उत्तर भारत में इस दिन गंगा स्नान का पर्व भी कार्तिक मास की पूर्ण मासी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है परन्तु भारत के इतिहास में इस दिन का महात्म्य गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में सर्वाधिक है क्योंकि उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति को सर्व प्रथम मानवता का धर्म मानने के लिए प्रेरित इस प्रकार किया कि उन्होंने स्वयं को न हिन्दू कहा न मुसलमान कहा बल्कि इंसान कहा।
गुरु महाराज  भारत की सामाजिक व धार्मिक विविधता को इसकी विशिष्टता मानने वाले पहले दिव्य दृष्टा थे। इसके साथ यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल सुल्तान बाबर को सबसे पहले बादशाह की पदवी देने वाले भी गुरु महाराज ही थे। उन्होंने बाबर को समझाया कि तू राज कर मगर किसी का दिल मत दुखा और सबके साथ न्याय कर।
कुछ इतिहासकारों का मत यह भी है कि भारत के लिए हिन्दोस्तान के शब्द का प्रयोग भी उन्होंने ही सबसे पहले किया और समस्त भारतवासियों में प्रेम व भाइचारे का सन्देश फैलाया। उनकी वाणी से निकला हुआ यह ‘शबद’ हिन्दोस्तान की हकीकत को जिस तरह उजागर करता है वह आने वाली सदियों तक इस देश की सच्चाई रहेगा,
‘‘कोई बोले राम-राम , कोई खुदाये
कोई सेवे गुसैंया, कोई अल्लाये  
कारन करन करम करीम
किरपाधार  तार  रहीम
कोई न्हावे तीरथ कोई हज जाये
कोई करे पूजा कोई सिर निवाये
कोई पढै वेद कोई कछेद 
कोई ओढे़ नील कोई सफेद 
कोई कहे तुरक कोई कहे हिन्दू
कोई बांचे भीस्त कोई सुरबिन्दू 
कह नानक जिन हुकम पछाता 
प्रभु साहब का तित भेद जाता।’’
 गुरु महाराज के श्रीमुख से निकली यह वाणी भारत की समन्वित संयुक्त युग्म संस्कृति का रहस्य दुनियावी तरीके से बहुत सरल रूप में खोलती है। इसमें भारतीयों की जीवन शैली की बहुधर्मी विशिष्टता को स्वाभाविक बताया गया है और सन्देश दिया गया है कि भारत इन्हीं तत्वों का समावेश करके निर्मित हुआ है।
गुरु महाराज की यह वाणी भारत के जर्रे-जर्रे में बिखरी लोकतान्त्रिक सहनशीलता की भी परिचायक है। गुरु नानक देव जी महाराज की इस वाणी के सन्देश पर साहित्य जगत के विद्यार्थी शोध तक कर सकते हैं और इसके सामाजिक पक्ष से लेकर राजनीतिक प्रभावों की विवेचना कर सकते हैं परन्तु वर्तमान दौर में धर्म की बुनियाद पर पाकिस्तान का निर्माण अब से 73 वर्ष पूर्व हो जाने के बावजूद भारत की हकीकत नहीं बदल सकती क्योंकि यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बुनावट हमें इन्हीं सामाजिक अनुबन्धों में बांधे हुए है।
मिसाल के तौर पर अगर हम आजकल चल रहे किसान आन्दोलन को ही लें तो पायेंगे कि पंजाब के किसानों ने जो पहल की है उसका वास्ता कृषि जगत से जुड़े समस्त समाज या किसानों से है। किसानों का धर्म अलग-अलग हो सकता है मगर धरती का धर्म केवल एक ही है कि वह फसल उगाती है और यह नहीं देखती कि फसल को  किस मजहब के मानने वाले किसान ने बोया है।
यदि हम और विस्तार करके देखें तो पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के किसान कृषि प्रधान देश भारत के करोड़ों किसानों की उन आशंकाओं का  निवारण चाहते हैं जो नये कृषि कानूनों से उठ रही हैं। देव दीपावली के दिन हम यह जरूर विचार करें कि किसान को धरती का भगवान या अन्नदाता क्यों कहा गया और हमारे पुरखों ने खेती को सर्वोत्तम व्यवसाय क्यों माना? वैज्ञानिक धरातल पर तेजी से प्रगति करती दुनिया के लिए भी यह सत्य कभी बदल नहीं सकता कि किसी भी देश का सबसे मजबूत रक्षा कवच जवान और किसान ही होते हैं।
गुरु नानक देव जी ने बाबर को बादशाहत का खिताब देते हुए सख्त हिदायत दी थी कि उसके सैनिक सदाचारी होने चाहिएं और किसान निर्भय होने चाहिएं। यह उक्ति हर समय और काल में शाश्वत सत्य रहेगी क्योंकि देवता भी किसान के श्रम को ही नमन करके अपनी आराधना कराते हैं।
Advertisement
Advertisement
Next Article