Guru Purnima 2025: कैसे करें गुरु की पूजा, जानें कब मनाई जायेगी गुरु पूर्णिमा
Guru Purnima 2025: माना जाता है कि मनुष्य एक मांस का पिण्ड भर होता है। समय के साथ उसका शरीर तो बढ़ता है लेकिन वास्तव में उसके लिए क्या ठीक है और क्या नहीं, इसका बोध उसे प्रथम गुरु माता और फिर सांसारिक गुरु से ही प्राप्त होना संभव है। इसलिए गुरु की महत्ता समस्त संसार में समान रूप से देखी जा सकती है। गुरु का महत्व इसलिए भी है क्योंकि जो कुछ गुरु ने अपने जीवन में दशकों के श्रम के प्रतिफल में प्राप्त किया गया ज्ञान अपने शिष्यों को कुछ ही क्षणों में देने की क्षमता रखता है।
कबीरदास जी ने भी स्वीकारा है गुरु (Guru) का महत्व
15 वीं शताब्दि के प्रसिद्ध भक्त कवि कबीरदास जी ने गुरु की महत्ता को स्वीकार किया है। जगत में संत कबीरदास जी के बहुत से दोहे प्रचलन में हैं। लेकिन एक दोहा इतना प्रचलित है कि सामान्य जन भी उस दोहे के आधार पर कबीरदास जी को याद करता है। कबीरदास जी के जन्म के संबंध में बहुत सी भ्रांतियां प्रचलन में हैं लेकिन उनके दोहे जन मानस में उनको एक भक्त कवि की संज्ञा से सम्मानित करते हैं। गुरु के संबंध में कबीरदास जी का यह दोहा उन्हें अमरत्व प्रदान करता है। आज कबीरदास जी चराचर जगत में नहीं है किन्तु गुरु के प्रति उनकी आस्था आज भी सच्चे शिष्यों का मार्गदर्शन करती आई है। संत कवि कबीर दास जी ने लिखा हैः-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय।।
खड़ी भाषा के इस दोहे का भावार्थ बहुत गहरा है, लेकिन यह आसानी से समझ में आ जाता है। यहां कबीरदास जी शंका व्यक्त करते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों सामने मिल जाए तो पहले किसे नमस्कार करना चाहिए। और इसी दोहे में उन्होंने शंका का समाधान भी स्पष्ट कर दिया है। कबीरदास जी बिना किसी संकोच के कहते हैं कि पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु की कृपा के कारण ही हमें भगवान के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। तो गुरु की महत्ता निर्विवाद से भगवान से अधिक है। एक दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते हैंः-
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
अर्थात कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्ति संभव नहीं है। और जब ज्ञान ही नहीं होगा तो मोक्ष कैसे होगा। मनुष्य को यदि सच्चा गुरु नहीं मिले तो वह जगत में भटकता रहता है। शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए सनातन धर्म में गुरू के प्रति समर्पण भाव को दर्शाने के लिए प्रति वर्ष गुरू पूर्णिमा का आयोजन होता है। इस दिन सभी शिष्य अपने गुरू की पूजा करते हैं। और उनके आदर्शों के अनुसार अपने जीवन को ढ़ालने की प्रतिज्ञा करते हैं।
कब मनाई जाती है गुरू पूर्णिमा (Guru Purnima)
सनातन धर्म में विक्रम संवत के पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इसी पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का भी जन्म दिन आता है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। जैन धर्म में गुरु को ही भगवान माना जाता है, इसलिए जैन धर्म में यह पर्व विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन गुरुओं की पूजा होती है। और उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा की जाती है। भारत के अलावा यह पर्व भूटान और नेपाल में भी पूरी भव्यता के साथ आयोजित होता है। यह पर्व गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनकी शिक्षाओं के अनुसार जीवन में सदाचार और परोपकार का समावेश करना है। इस दिन मन-कर्म और वचन से शुद्ध होकर गुरु की पूजा करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। यदि गुरु वर्तमान में सशरीर नहीं हो तो उनके चित्र को ही उनकी उपस्थिति मान कर पूजा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। वैसे भी गुरु की सीख और बताए गये मार्गदर्शन के अनुसार अपने जीवन को ढालना ही गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होती है। इसलिए गुरु के लिए कहा गया हैः-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) कब है
जैसा कि आप जानते हैं कि Guru Purnima प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 10 जुलाई 2025 को सूर्योदय के साथ ही हो जायेगी। पूर्णिमा तिथि मध्य रात्रि 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। इसलिए पूरा दिन ही गुरु पूर्णिमा के लिए शुभ है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुवार होना इसे विशेष बनाता है। इस दिन बृहस्पति, जिन्हें देव गुरु कहा गया है वे भगवान सूर्य के साथ मिथुन राशि में रहेंगे। गुरु पूर्णिमा एक शुभ दिन है। पूर्णिमा तिथि होने से चन्द्रमा पक्षबली होता है। इस दिन गुरुवार भी है इसलिए किसी नए काम के आरम्भ करने या नई नौकरी जॉईनिंग करने के लिए भी यह एक शुभ मुहूर्त है।
गुरु (Guru) के बताये मार्ग पर चलना ही सच्ची गुरु पूजा है
किसी भी गुरु की वास्तविक पूजा के बताए रास्तों पर चलना और हमेशा शिष्य बने रहने की मनोवृत्ति का बनाये रखना है। यदि आप ऐसा करते हैं तो यह सबसे बड़ी गुरु भक्ति है। फिर हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही उठ कर स्नानादि से निवृत्त होकर पूरी तरह से शुद्धता रखते हुए गुरु के सानिध्य में जाना चाहिए। गुरु के चरणों में नमन करें। गुरु की पूजा करें और उन्हें अपनी श्रद्धा और पूरी आस्था के साथ कोई भेंट दें। और मन ही मन गुरु के आदेशों और शिक्षाओं के अनुसार जीवन यापन करने की प्रतिज्ञा करें।