हैप्पी दिवाली, जरूरी है सावधानी
कार्तिक महीना सही मायनों में हमारी आध्यात्मिकता और हमारी आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक और सबसे बड़ा उदाहरण है। महत्व दिवाली से लेकर गौवर्धन पूजा, विश्वकर्मा पूजा, भईयादूज, हनुमान जयंती तक बना हुआ है हालांकि त्यौहारों की इस कड़ी में अनेक और अवसर भी जुड़े हुए हैं जो विभिन्न धर्मों के धार्मिक आयोजनों की सार्थकता को सिद्ध करते हैं। इसलिए दिवाली की सभी को बहुत-बहुत बधाई लेकिन अगर व्यावहारिक रूप से देखें तो सबसे ज्यादा प्रदूषण दिवाली के दिनों में ही फैलता है और इसके लिए हमें खुद फैसला करना है कि हम प्रदूषण से कैसे बच सकते हैं। इस कड़ी में चौंकाने वाली बात यह है कि दिवाली के मौके पर प्रदूषण का लेवल अर्थात शुद्ध वायु की गुणवत्ता में जो प्रदूषण पाया जाता है उसका स्तर 500 को भी पार कर जाता है। जो मानवीय जीवन के लिए बहुत ही घातक है। इसमें कोई शक नहीं कि पटाखें चलाना एक उत्सव की परंपरा ही है लेकिन वर्षों-वर्ष पहले जो पटाखें अनार या फूलझड़ी के रूप में चलाये जाते थे वह अब तरह-तरह के आधुनिकता के लिबास में आतिशबाजी और तेज आवाज करने वाले बमों के रूप में बदल चुके हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की वन से वापसी के बाद जब वह अयोध्या में आए तो दीपमाला के जरिए उनका स्वागत किया गया था और दिवाली भी इसे ही समर्पित है। भगवान राम ने अनेक कष्टों को झेला लेकिन मर्यादाएं कायम की और सुशासन की नींव रखी। इसी तरह तुलनात्मक अध्ययन यही है कि मानव भी जीवन में तरह-तरह के कष्ट झेलता है लेकिन अपने कर्त्तव्य का पालन करता है। ऐसा ही संकल्प लेने के बाद हमें दीपमाला करनी चाहिए। दिवाली रोशनी का त्यौहार है लेकिन अब नई पीढ़ी के जश्न मनाने के तरीकों में बम-पटाखें अपनी खास जगह बना रहे हैं। मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि सरकार ने विशेषकर दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से बम चलाने के जो नियम बनाएं हैं उसका पालन होना चाहिए क्योंकि बढ़ती आबादी, बढ़ते वाहन और पराली के जलने के अनेक कारणों से प्रदूषण बढ़ा है लेकिन यह भी सच है कि पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी आई है और यह पाया गया है कि पटाखे हमारी जीवनदायनी वायु को प्रदूषित करते हैं इसीलिए ग्रीन पटाखे चलाने की इजाजत दी गयी है। इनमें प्रदूषण की मात्रा लगभग शून्य रहती है। रोशनी का पर्व रोशनी की तरह ही मनाया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन में एक नई रोशनी का संचार करता है। नियमों का पालन करना जरूरी है इससे त्यौहार की गरीमा बनी रहती है। विकल्पों के दौर में हरित पटाखे सचमुच त्यौहार की गरिमा निभा सकते हैं।
ग्रीन पटाखों की अनुमति के लिए दिल्ली में रेखा सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी थी और दिवाली उत्सव की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निश्चित समय ग्रीन पटाखों के लिए तय किया है। अब लोगों को भी इसका पालन करते हुए अपना कर्त्तव्य निभाना है। लोगों को संयम दिखाना होगा। वर्ना इसी दिल्ली में लोगों द्वारा रातभर पटाखे चलाने की घटनाएं भी दिवाली के बाद अखबारों की सुर्खियां बनी हैं। यह बात अवश्य सोच लेनी चािहए कि हमें सांस की बीमारी दमें से प्रभावितों की हैल्थ काे भी ध्यान में रखकर पटाखे चलाने से रोकना होगा। त्यौहार का जश्न हरित पटाखे चलाकर मनाया जा सकता है।
गौवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है कि किस प्रकार उन्होंने इन्द्रदेव का अहंकार तोड़ा था और एक ऊंगली पर पर्वत को उठा लिया था। इसके बाद पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली सभी साग-सब्जियों को मिलाकर शतसागा (जिसे आज मिक्स वेजीटेबल कहते हैं) और साथ में कढ़ी-चावल सब मिलजुलकर खाते हैं। यह प्रसाद है और यह परंपरा है। भाईदूज के मौके पर बहनें अपने भाईयों की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए उनके माथे पर तिलक लगाती हैं। हमें एक-दूसरे के परिवारों के साथ-साथ पूरे समाज की मंगल कामना करनी चाहिए। दिवाली पर्व पर यही बधाई है, कृपया नियमों का पालन करते हुए दिवाली मनानी चाहिए।
मेरा यह मानना है कि खाली दिवाली ही क्यों किसी भी अन्य आवश्यक अवसर जब सेलीब्रेट किया जाता हो तो मर्यादाओं का पालन किया जाना जरूरी है। पटाखों से आग की घटनाएं भी एक परम्परागत खबर बन चुकी हैं। दिवाली पर्व परोपकार की भावना पर केन्द्रित करते हुए इसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेकर बिना प्रदूषण के मनाना चाहिए। यही सच्ची दीपावली है।