Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज पर करें इस व्रत कथा का पाठ, मिलेगा मनचाहा वरदान
Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके मां पार्वती और भोलेनाथ की पूजा करते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूजा करने के साथ व्रत रखती हैं। इस व्रत को कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे जीवनसाथी पाने या फिर शादी में आ रही अड़चन से छुटकारा पाने के लिए करती हैं।
मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे और माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म की कथा भी सुनाई थी। इसलिए इस व्रत का संबंध शिव पार्वती के मिलन से है। इस दिन माता-पार्वती और भोलेनाथ की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत कथा का पाठ भी किया जाता है। मान्यता है कि हरियाली तीज पर इस व्रत कथा (Hariyali Teej Vrat Katha) का पाठ करने से पूजा पूर्ण होती है और मनचाहा वरदान मिलता है।
हरियाली तीज व्रत की पौराणिक कथा (Hariyali Teej Vrat Katha)

पुराणों में ये हरियाली तीज कथा काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं मां पार्वती को उनके पूर्व जन्म के बारे में याद दिलाने के लिए यह कथा सुनाई थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में माता पार्वती का जन्म हुआ था। वह बचपन से ही भगवान शिव को अपने पति के रुप को पाने का दृढ़ संकल्प कर चुकी थी।
जिसके लिए पार्वती जी ने अनेक वर्षों तक कठिन तपस्या की, बिना अन्न-जल ग्रहण किए उन्होंने केवल सूखे पत्तों को खाकर शिव जी को प्रसन्न करने का प्रयास किया। माता के कठोर तप को देखकर उनके पिता चिंतित हो गए। एक दिन देवर्षि नारद उनके पिता के पास पहुंचे और कहने लगे- हे राजन, भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करने के इच्छुक हैं, अब आप अपनी राय बताएं। नारद जी की बाते सुनकर पर्वतराज बहुत प्रसन्न हुए और अपनी पुत्री का विवाह भगवान विष्णु से करने को तैयार हो गए।
पर्वतराज का ये संदेश नारद जी ने माता पार्वती और भगवान विष्णु तक पंहुचा दिया। जब माता पार्वती को इसकी खबर मिली तो वह निराश हो गईं, क्योंकि वह मन में भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थी। उन्होंने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई और सहेली ने आश्वासन दिया कि वह उनकी पूरी मदद करेंगी। इसके बाद सहेली ने माता पार्वती को एक घने जंगल में ले जाकर गुफा में छिपा दिया और वहां भगवान शिव कि उपासना करने का सुझाव दिया।
माता पार्वती ने गुफा में भगवान शिव की उपासना करने के लिए रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और घोर तपस्या करने लगी। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की थी और निर्जला व्रत भी रखा था। (Hariyali Teej Vrat Katha)इस कठोर तपस्या को देखकर महादेव प्रसन्न हुए थे और माता पार्वती को मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया था। इसके बाद माता पार्वती ने अपने व्रत का पारण किया।
दूसरी तरफ पर्वतराज अपनी पुत्री को ढूंढते-ढूंढते गुफा तक जा पहुंचे। (Hariyali Teej Vrat Katha) माता पार्वती ने अपने पिता को गुफा में रहने का कारण बताया और कहा कि मैंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की है, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे स्वीकार कर लिया है, में आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरी विवाह भगवान शिव से करवाएंगे। पर्वतराज ने ये इच्छा स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह बड़े धूम-धाम से किया। भगवान शिव और पार्वती का एक बार फिर मिलन संभव हो पाया।
हरियाली तीज व्रत का महत्व (Hariyali Teej Vrat ka Mahatv)

- यह व्रत वैवाहिक जीवन में प्रेम और समर्पण की भावना को मजबूत करता है।
- कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।
- विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करती हैं।
- इसे सौभाग्य वर्धक व्रत माना गया है।
हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह स्त्री शक्ति, प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपनी भक्ति से अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा और आनंद से भर देती हैं।
Disclaimer: इस लेख में बताई गई विधि, तरीके और सुझाव, सामान्य मान्यताओं और जानकारी पर आधारित है, Punjabkesari.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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