हरियाणा की नई ‘सैनी सरकार’
अभी हाल ही में जिन दो राज्यों जम्मू-कश्मीर व हरियाणा में चुनाव हुए थे वहां बहुमत की सरकारों का गठन हो चुका है।
अभी हाल ही में जिन दो राज्यों जम्मू-कश्मीर व हरियाणा में चुनाव हुए थे वहां बहुमत की सरकारों का गठन हो चुका है। हरियाणा में यहां की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई जबकि जम्मू-कश्मीर में विपक्षी गठबन्धन इंडिया ने बहुमत प्राप्त किया। हरियाणा में लगातार तीसरी बार भाजपा सरकार का गठन हुआ है जिसकी वजह से इस पार्टी ने अपनी जीत को नया रिकाॅर्ड बनाने वाली जीत कहा। इस सरकार के मुखिया श्री नायब सिंह सैनी दूसरी बार गद्दी पर बैठे। हालांकि 2014 के बाद से मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर श्री मनोहर लाल खट्टर साढे़ नौ साल तक काबिज रहे थे। उन्हें इस पद से इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनावों से कुछ पहले हटाकर श्री सैनी को मुख्यमन्त्री बनाया गया था। विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान ही भाजपा ने लगभग घोषित कर दिया था कि विजयी होने पर वही पुनः मुख्यमन्त्री बनाये जायेंगे। अतः उन्हीं के नेतृत्व में गुरुवार को 13 अन्य मन्त्रियों को पद शपथ दिलाई गई। हरियाणा में इतने ही मन्त्री हो सकते हैं। मगर नायब सिंह सैनी के लिए हरियाणा को साधना आसान काम नहीं होगा क्योंकि इन चुनावों में विपक्षी पार्टी कांग्रेस की 90 सदस्यीय विधासभा में 37 सीटें आयी हैं।
राज्य में एक मजबूत विपक्ष के हक में भी हरियाणा की जनता ने जनादेश दिया है। इन चुनावों में भाजपा को जहां 39 प्रतिशत से कुछ अधिक मत मिले वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत भी 39 प्रतिशत से थोड़ा ऊपर ही रहा। इसलिए श्री सैनी को उन वादों को पूरा करना होगा जिनका वादा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के विभिन्न नेताओं ने किया था। जैसे किसानों की समस्याएं दूर करने को लेकर एवं युवाओं को रोजगार सुलभ कराने के सम्बन्ध में कांग्रेस व भाजपा दोनों ही बड़े-बड़े वादे कर रहे थे। हरियाणा में बेरोजगारी की दर देश में सर्वाधिक 37 प्रतिशत से ऊपर है। निश्चित रूप से श्री सैनी बहुत सरल व सीधे व्यक्ति माने जाते हैं मगर उन्होंने जिन विधायकों को मन्त्री बनाया है उनमें गरमपंथी नेताओं का ही दबदबा दिखाई पड़ता है। इन मन्त्रियों में अनिल िवज भी शामिल हैं जो चुनावों के नतीजे आने तक खुद को मुख्यमन्त्री पद के दावेदार बता रहे थे। सैनी का मन्त्रिमंडल हरियाणा की सामाजिक संरचना को देखते हुए बहुत सन्तुलित माना जा रहा है। अतः पंजाब केसरी की तरफ से उन्हें बधाई। भाजपा आलाकमान ने चुनावों से पूर्व श्री खट्टर को मुख्यमन्त्री पद से हटाकर श्री सैनी को मुख्यमन्त्री बनाने का भारी जोखिम मोल लिया था। मगर उसकी यह रणनीति सफल रही और भाजपा को 48 सीटें प्राप्त हुई जो कि हरियाणा के सन्दर्भ में अभी तक की भाजपा की सबसे अधिक सीटें हैं।
जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है तो यहां के मतदाताओं ने इंडिया गठबन्धन को सरकार बनाने का जनादेश दिया। गठबन्धन में जम्मू-कश्मीर की पार्टी नेशनल काॅन्फ्रेंस को सबसे अधिक 42 सीटें मिली जबकि कांग्रेस के हिस्से में केवल छह सीटें आयी। बेशक नेशनल काॅन्फ्रेंस और कांग्रेस इकट्ठा होकर ही चुनाव लड़े थे मगर दोनों पार्टियों के चुनाव घोषणापत्र अलग-अलग थे। कांग्रेस पार्टी के घोणापत्र में सबसे ज्यादा जोर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने को लेकर था। जबकि नेशनल काॅन्फ्रेंस के घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 का भी जिक्र था। हालांकि राज्य के नवनियुक्त मुख्यमन्त्री श्री उमर अब्दुल्ला ने शपथ लेते ही यह वक्तव्य दिया कि उनका सबसे ज्यादा इसरार रियासत को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर ही रहेगा और वह चाहेंगे कि केन्द्र जल्दी से जल्दी राज्य को यह रुतबा अता करे। चुनावों के दौरान भाजपा के नेताओं ने भी रियासत का दर्जा ऊंचा करने का भरोसा दिलाया था। इस मामले में राज्य सरकार के हाथ में कुछ नहीं है, जब भी जो भी करना है वह केन्द्र की सरकार को ही करना है। बेशक भारतीय जनता पार्टी को चुनावों में नेशनल काॅन्फ्रेंस के बाद सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं मगर ये सभी सीटें जम्मू क्षेत्र की ही हैं। इस क्षेत्र में नौशेरा की सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री रवीन्द्र रैना चुनाव लड़ रहे थे मगर वह नेशनल काॅन्फ्रेंस के उम्मीदवार श्री सुरेन्द्र चौधरी से हार गये। अतः श्री अब्दुल्ला ने श्री चौधरी को अपनी सरकार में उपमुख्यमन्त्री बनाया है। उमर अब्दुल्ला ने अपने साथ कुल पांच मन्त्रियों को शपथ दिलाई जिनमें तीन जम्मू क्षेत्र के हैं और कश्मीर घाटी के फिलहाल दो मन्त्री ही हैं हालांकि श्री अब्दुल्ला खुद कश्मीर घाटी से ही चुनाव जीते हैं। उनका यह कहना है कि उनकी सरकार में जम्मू क्षेत्र का भी भरपूर प्रतिनिधित्व रहेगा।
राज्य में अभी सात मन्त्री और बनाये जाने हैं और कांग्रेस ने फिलहाल मन्त्रिमंडल में शामिल होने से इन्कार कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि वह राज्य को पूर्ण दर्जा मिलने तक हुकूमत में शामिल नहीं होगी, बताता है कि आने वाले दिन उमर अब्दुल्ला सरकार के लिए सबसे बड़ा मुद्दा पूर्ण राज्य का दर्जा ही होगा। भाजपा इस मामले में रक्षात्मक पाले में आ सकती है क्योंकि जब चुनाव चल रहे थे तो भाजपा के शीर्ष नेता स्वयं लोगों को समझा रहे थे कि यह दर्जा केवल केन्द्र सरकार या प्रधानमन्त्री मोदी ही दे सकते हैं। इसके साथ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि जब 5 अगस्त, 2019 को भारत की संसद ने अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला किया था और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्सों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में तकसीम करके इन्हें केन्द्र प्रशासित क्षेत्र घोषित किया था तो यह आश्वासन भी दिया था कि जम्मू-कश्मीर को जल्दी ही वह पूर्ण राज्य में तब्दील करेगी। अतः कांग्रेस के रुख को देखकर यह कहा जा सकता है कि वह नेशनल काॅन्फ्रेंस की सरकार के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती रहेगी क्योंकि उमर अब्दुल्ला भी इस मामले में किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते हैं। यही वजह है कि उनकी सरकार का इस्तेकबाल श्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी ने भी किया है हालांकि पीडीपी इन चुनावों में केवल तीन सीटें ही जीत पाईं। कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की उमर सरकार के लिए यही कहा जा सकता है कि एक केन्द्र प्रशासित राज्य होने की वजह से इसका मुख्यमन्त्री पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने की गरज से भारत की सरकार से बैर मोल नहीं लेगा।