राजनीतिक तूफ़ान में घिरी हज़रतबल दरगाह
श्रीनगर स्थित प्रतिष्ठित हजरतबल दरगाह की आधारशिला पट्टिका के साथ 5 सितंबर, 2025 को तोड़-फोड़ की गई। इस पट्टिका का अनावरण जम्मू और कश्मीर वक्फ बोर्ड ने किया था। भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न से युक्त इस पट्टिका का उद्देश्य पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) के पवित्र अवशेष वाले इस पावन स्थल के जीर्णोद्धार कार्य का स्मरण करना था लेकिन इसके बजाय, इसने एक तूफ़ान खड़ा कर दिया, जिसने इस आध्यात्मिक स्थल को आस्था, पहचान और राजनीति के युद्ध क्षेत्र में बदल दिया। इस घटना ने कश्मीर की नाज़ुक दरारों को उजागर किया है और मतभेद के बारे में बातचीत की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है। डल झील के प्रशांत तट पर स्थित हजरतबल दरगाह से कहीं बढ़कर है-यह कश्मीरी इस्लाम की आध्यात्मिक धड़कन है। ईद-ए-मिलाद और अन्य त्यौहारों पर लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाली यह दरगाह घाटी के सांस्कृतिक और आर्थिक ताने-बाने में रची-बसी है। यहां खासकर अशोक चिन्ह जैसे राष्ट्रीय प्रतीक से जुड़े किसी भी बदलाव के लिए गहन संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
भाजपा द्वारा नियुक्त अध्यक्ष डॉ. दरख अंद्राबी के नेतृत्व वाले वक्फ बोर्ड ने एक चूक की। पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीक को उकेर कर बोर्ड ने दरगाह के जीर्णोद्धार को सरकार द्वारा प्रेरित एकीकरण के कार्य के रूप में प्रस्तुत किया। अनेक श्रद्धालुओं को यह पवित्र स्थान में घुसपैठ करने जैसा लगा। कुछ लोगों ने तो इस्लाम में आलंकारिक चित्रण के प्रति विमुखता का हवाला देते हुए इसे मूर्ति पूजा करार देकर इसकी निंदा की। ईद-ए-मिलाद के अवसर पर श्रद्धा अनादर में बदल गई। श्रद्धालुओं ने पट्टिका को क्षतिग्रस्त कर दिया, नारे लगाए, उनका गुस्सा सोशल मीडिया पर भी दिखाई दिया। एक्स पर की गई पोस्टों ने गहन भावनाओं को प्रस्तुलत किया: @KashmirVoiceने घोषणा की, “हजरतबल हमारी आत्मा है। ऐसे प्रतीक चिन्ह क्यों थोपे जा रहे हैं जो हमारी आस्था के विपरीत हैं? #RespectOurShrines।”@ValleyTruth ने कहा, “यह विकास नहीं है-यह नियंत्रण है। वक्फ बोर्ड को जवाब देना होगा।” डिज़ाइन को लेकर एक स्थानीय विवाद बड़े राष्ट्रीय विवाद में बदल गया, जिसमें तोड़फोड़ के वीडियो ने आक्रोश और प्रतिरोधी दृष्टिकोण को हवा दी।
राजनीतिक प्रतिक्रिया ने इस घटना को तमाशे में बदल दिया। डॉ. अंद्राबी ने इस तोड़फोड़ को संविधान पर ‘आतंकवादी हमला’ करार देते हुए जन सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए जाने की मांग की। उनकी एक्स पोस्ट ‘हमारे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान भारत की संप्रभुता पर हमला है। न्याय होगा।’ ने धार्मिक संवेदनाओं की अनदेखी करते हुए अलगाव को और गहरा किया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संयम बरता और प्रतीक की जगह पर सवाल उठाया : “मैंने इसे कभी किसी मस्जिद में नहीं देखा। वक्फ बोर्ड को माफ़ी मांगनी चाहिए।” उनकी एक्स पोस्ट (@Omar Abdullah आइए आस्था का सम्मान करें और इसका शांतिपूर्वक समाधान करें) को साहसिक न होने के कारण आलोचना झेलनी पड़ी। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने भी इस आक्रोश का समर्थन किया और इस पट्टिका को ‘उकसाने वाली’ कार्रवाई करार दिया तथा ईशनिंदा के लिए वक्फ बोर्ड के खिलाफ आईपीसी की धारा 295-ए के तहत कार्रवाई की मांग की। उनकी एक्स पोस्ट-श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था के प्रति प्रेम के कारण ऐसा किया। इसके लिए वक्फ बोर्ड का अहंकार ज़िम्मेदार है। श्रद्धालुओं से मेल खाती थी लेकिन इसने भीड़ की कार्रवाई को उचित ठहराया जिससे और ज़्यादा मतभेद या डिविजन का ख़तरा पैदा हो गया।
अनुच्छेद 370 के बाद के कश्मीर की पृष्ठभूमि में उपजा यह संघर्ष दर्शाता है कि प्रतीक कैसे संघर्ष भड़का सकते हैं। राष्ट्रीय प्रतीक जो अन्यत्र गौरव का प्रतीक है, को घाटी में कुछ लोगों ने सरकार द्वारा दायरे से बाहर जाने के रूप में देखा। इसके बावजूद तोड़फोड़ कोई समाधान नहीं है -यह गैरकानूनी है, इस्लामी परंपरा द्वारा स्थापित नागरिक व्यवस्था का उल्लंघन है। कुरान (4:59) की हिदायत, ‘ऐ ईमान वालों, अल्लाह का हुक्म मानो, रसूल और तुम्हारे बीच जो लोग सत्ता में हैं, उनका हुक्म मानो’ सार्वजनिक नैतिकता के भाग के रूप में सामाजिक व्यवस्था पर जोर देती है। मुस्लिम बहुल राष्ट्र इस संतुलन को दर्शाते हैं। इंडोनेशिया : स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जकार्ता की इस्तिकलाल मस्जिद अपने परिसर में औपचारिक उपकारा बेंडेरा का आयोजन करती है। सुरबाया में मस्जिद की मीनारों से मेराह-पुतिह झंडे लहराते हैं जो आस्था और नागरिक गौरव को सम्मान के साथ जोड़ते हैं।
मलेशिया : राष्ट्रीय माह (अगस्त-सितंबर) के दौरान, मस्जिदें किबर जलुर गेमिलांग अभियानों में शामिल होती हैं, झंडे फहराती हैं और देशभक्ति की गतिविधियों का आयोजन करती हैं जो सद्भाव का प्रतीक है। कज़ाकिस्तान : अस्ताना ग्रैंड मस्जिद अपने डिज़ाइन में राष्ट्रीय रंगों को पिरोती है, धार्मिक वास्तुकला को नागरिक पहचान के साथ जोड़ती है। सऊदी अरब : सऊदी ध्वज, जिस पर शहादत अंकित है, सख्त दिशा निर्देशों के तहत प्रतिष्ठित है और राष्ट्रीय दिवस पर गरिमा के साथ प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है। अमेरिका : संघीय ध्वज संहिता के तहत चर्च अपने धार्मिक स्थलों के अंदर स्टार्स एंड स्ट्राइप्स को प्रदर्शित करते हैं जो स्पष्ट नियमों के माध्यम से आस्था और राष्ट्र में सामंजस्य स्थापित करता है। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि नागरिक और धार्मिक प्रतीक परस्पर सम्मान और स्पष्ट प्रोटोकॉल द्वारा निर्देशित होने पर एक साथ रह सकते हैं। भारत अपने राष्ट्रीय प्रतीक को क़ानून के माध्यम से नियंत्रित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि इसके उपयोग पर होने वाले विवादों का निपटारा संस्थागत रूप से किया जाए, न कि भीड़ द्वारा। तोड़फोड़ दंडनीय परिणामों को आमंत्रित करती है, वैध रास्ता प्रशासनिक या न्यायिक समीक्षा में निहित है।
वक्फ बोर्ड ने उलेमाओं या श्रद्धालुओं से सलाह-मशविरा न करके गलती की। श्रद्धालुओं ने कानूनी रास्ता अपनाने के बजाय तोड़फोड़ करके गलती की। राजनेताओं ने राजनीतिक लाभ के लिए मतभेद को बढ़ावा देकर गलती की। नतीजा? एक पवित्र स्थान का अनादर हुआ, एक नागरिक प्रतीक का अपमान हुआ और विश्वास का क्षरण हुआ। कश्मीर बेहतर पाने का हक़दार है। वक्फ बोर्ड को अपनी इस चूक के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए और विश्वास बहाली के लिए धार्मिक विद्वानों से संपर्क करना चाहिए। श्रद्धालुओं को अपनी शिकायतें भीड़ के ज़रिए नहीं, अदालतों के ज़रिए करनी चाहिए। अंद्राबी, अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे नेताओं को बयानबाज़ी के बजाय बातचीत को प्राथमिकता देनी चाहिए। जैसा कि @PeaceIn Valleyने एक्स पर पोस्ट किया, “हजरतबल राजनीति के लिए नहीं, इबादत के लिए है। घाव न दीजिए, बल्कि मरहम लगाइए।”