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‘‘जिसने कुम्भ नहाया उसने सब कुछ पाया’’

बहते-बहते नदियां सागर में समा जाती हैं, यह बात हर कोई जानता है लेकिन…

10:49 AM Jan 11, 2025 IST | Kiran Chopra

बहते-बहते नदियां सागर में समा जाती हैं, यह बात हर कोई जानता है लेकिन…

बहते-बहते नदियां सागर में समा जाती हैं, यह बात हर कोई जानता है लेकिन जब खुद सागर नदियों में जाकर समा जाता है तो यह कुम्भ है। विशाल नदियां- गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन जहां प्रयागराज स्थित संगम पर हो रहा हो तो इसे महाकुम्भ कहते हैं। जब करोड़ों अलग-अलग धर्मों, जातियों, वर्गों के लोग एक साथ स्नान करते हैं और इसके सूत्रधार नागा साधू और अखाड़ों के धार्मिक लोग करते हों तो यह महाकुम्भ का नजारा केवल भारत में ही दिख सकता है। महाकुम्भ भारतीय आत्मज्ञान का पर्व है। विषपान कोई नहीं चाहता, बस अमृतपान चाहते हैं और इससे हटकर जब भगवान भोलेशंकर खुद विषपान करते हैं तथा मानवता के रक्षक बन जाएं और एेसे में जब विविधता में एकता दिखाई दे तो समझो यह राष्ट्र पर्व महाकुम्भ है। भारत की यही संस्कृति है।

यह भारत की धरती ही है जो अाध्यात्मिक महत्व रखती है और इसे दुनियाभर के वैज्ञानिक और खगोल शास्त्री भी स्वीकार करते हैं। प्रकृति से जुड़े हर कार्यक्षेत्र को भारत की धरती पर परखा जाता है, प्रयोग किया जाता है और प्रमाणित भी किया जाता है। हर 12 वर्ष बाद महाकुंभ हमारे यहां आयोजित होता है। इस बार 2025 का महाकुंभ प्रयागराज में आरंभ हो चुका है। यह 45 दिन तक चलेगा और लगभग 40 करोड़ लोग अलग-अलग स्नानों के अवसर पर पुण्य अर्जित करेंगे। प्रयागराज में कई सौ किलोमीटर क्षेत्र में महाकुंभ आयोजित किया गया है जहां गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थल पर लोग स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। पूरा देश और दुनिया प्रयागराज में उमड़ पड़ती है। मानो पृथ्वी पर मानवता का सागर उमड़ रहा हो और तंबुओं में देश बस गया हो साधु-संत तथा आध्यात्मिकता में डूबे देशवासी जिस आधुनिकता और एक आस्था की साझी तस्वीर को जिस तरह प्रस्तुत करते हैं ऐसा लगता है कि भारतीय सांस्कृतिक विविधता की एक झांकी महाकुंभ में ही दिखाई दे सकती है।

महाकुंभ की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार जब एक बार राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ तो इस दौरान मंथन से निकले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला हुआ। सभी रत्न राक्षसों और देवताओं ने आपसी सहमति से बांट लिए लेकिन इस दौरान निकले अमृत के लिए दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया।

ऐसे में असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत का पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने जब देखा कि अमृत गरुड़ के पास है तो वह इसे छीनने का प्रयास करने लगे। इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें धरती की चार जगहों पर यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। जहां-जहां यह बूंदें गिरी थी आज वहीं पर 12 सालों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है। समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने को लेकर 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। वही शास्त्रों के अनुसार देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के समान होते हैं। इसलिए महापर्व कुंभ प्रत्येक स्थल पर 12 वर्ष बाद लगता है।

मेरा यह भी मानना है कि अाध्यात्म के यह पहलू जितने भी गहरे हों परंतु जब लोग महाकुंभ जैसे पर्व को मनाते हैं तो बहुत ही अनुशासित ढंग से मनाते हैं। कल्पना कीजिए की हाड कंपकंपा देने वाली ठंड में नागा साधू जो आजीवन बिना वस्त्रों के रहते हैं वे शाही स्नान के सबसे पहले अधिकारी होते हैं। उनके बाद अन्य अखाड़ों की बारी आती है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरा दौरा कर चुके हैं और हमारे शास्त्रों में वर्णित प्रयागराज में देश की पौराणिक कथाओं पर आधारित प्रदशर्नियां भी चल रही हैं। सैकड़ों किलोमीटर चलने के बाद भी लोग जब महाकुंभ का हिस्सा बनते हैं तो अपने आपको भाग्यशाली मानते हैं। बहुत सी संस्थाएं हैं जो वि​िभन्न तरह के अपनी श्रद्धा के अनुसार स्टाॅल लगा रही हैं। सरकार अपनी तरफ से लोगों की सुविधा के अनुसार इंतजाम कर रही है।

हमने जितना शास्त्रों में पढ़ा या साधु-संत के बखानों में सुना वह सब कुछ प्रयागराज में दिखाई दे रहा है। बताते हैं कि हर 12 वर्ष बाद आयोजित महाकुंभ का बड़ा कारण विज्ञान से भी जुड़ा है। बृहस्पति जो देवताओं के गुरु हैं की रफ्तार सबसे तेज है और बताते हैं कि जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।

इसी तरह जब बृहस्पति कुंभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मेष राशि में आते हैं तो कुंभ आयोजन हरिद्वार में होता है। सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में हों तब महाकुंभ मेला नासिक में लगता है। जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों तो कुंभ का मेला उज्जैन लगता है।

पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होगा, दूसरा 14 जनवरी, तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी, चौथा 2 फरवरी, पांचवां शाही स्नान 12 फरवरी और अंतिम शाही स्नान 26 फरवरी को होगा। स्नान के लिए अलग-अलग घाट बने हुए हैं। पुण्य कमाने का इससे बड़ा अवसर मानवीय जीवन में कहीं और नहीं हो सकता इसलिए देश और दुनिया के लोग महाकुंभ में उमड़ पड़ते हैं। अब इसे आस्था का महाकुंभ कहें, हमारा आध्यात्म कहें या फिर भारत की संस्कृति लेकिन पुण्य अर्जित करने का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म महाकुंभ ही है। चलो सब कुम्भ नहाएं, अपनी सुरक्षा, सेहत, सफाई का ध्यान रखते हुए सब कुछ पाएं।

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