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वीर तुम बढ़े चलो...

अब यह स्पष्ट है कि फौज में ‘अग्निपथ’ मार्ग से ही नये ‘अग्निवीर’ सैनिकों की भर्ती होगी जिनकी सेवा शर्तों के बारे में अन्तिम फैसला करने का अधिकार केवल सेना को ही होगा।

01:30 AM Jun 22, 2022 IST | Aditya Chopra

अब यह स्पष्ट है कि फौज में ‘अग्निपथ’ मार्ग से ही नये ‘अग्निवीर’ सैनिकों की भर्ती होगी जिनकी सेवा शर्तों के बारे में अन्तिम फैसला करने का अधिकार केवल सेना को ही होगा।

वीर तुम बढ़े चलो
अब यह स्पष्ट है कि फौज में ‘अग्निपथ’ मार्ग से ही नये ‘अग्निवीर’ सैनिकों की भर्ती होगी जिनकी सेवा शर्तों के बारे में अन्तिम फैसला करने का अधिकार केवल सेना को ही होगा। इस मुद्दे पर जिस तरह राजनीतिक दलों ने बयानबाजी की है उसका समर्थन कोई भी प्रबुद्ध नागरिक नहीं कर सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस सवाल को जिस तरह राजनीतिक दलों ने अपनी सियासत चमकाने की गरज से उछाला वह इस कारण स्वीकार्य नहीं हो सकता कि सेना का विषय राजनीतिक उछल- कूद के घेरे में नहीं आता है। किसी भी सैनिक के भारत के नागरिक होने की वजह से व्यक्तिगत राजनीतिक पसन्द या नापसंद हो सकती है मगर एक संस्थान के रूप में सेना की कोई राजनीतिक पसन्द या नापसन्द नहीं हो सकती। इसकी व्यवस्था बड़ी ही खूबसूरती के साथ हमारे संविधान निर्माता करके गये हैं। हमारी तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर देश के राष्ट्रपति होते हैं और राष्ट्रपति पदासीन होने से पहले ही जब इस पद का चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़नी पड़ती है। अतः चुने जाने पर जो भी व्यक्ति राष्ट्रपति बनता है वह पूरी तरह ‘अराजनीतिक’ होता है और फौजें उसी के मातहत काम करती हैं। अतः सेना का पूरा ढांचा ही पूर्णतः ‘अराजनीतिक’ होता है। अतः ऐसी  फौज को राजनीति में घसीटना राजनीतिक दलों की खुदगर्जी कही जायेगी मगर इससे उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है क्योंकि भारत की संवैधानिक व्यवस्था के अन्तर्गत सिर्फ सेना को ही यह वैधानिक अधिकार मिला हुआ है कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सैनिकों की भर्ती हेतु योग्यता, सुपात्रता व शारीरिक सौष्ठव का पैमाना तय करे। इस बारे में दो दिन पहले भी लिखा जा चुका है। मगर एक सवाल बहुत महत्वपूर्ण है जिसका सम्बन्ध देश की नौजवानी से है।
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वह सवाल यह है कि अग्निवीरों की सेवा शर्तों के अनुसार जब चार साल बाद 75 प्रतिशत अग्निवीर सेना से बिदा लेंगे तो समाज में उनका क्या स्थान होगा? इस बारे में राजनीतिक नेता बहुत ऊल-जुलूल बयान दे रहे हैं।  ऐसा करके वे सेना का ही सीधा-सीधा अपमान कर रहे हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं। अधिकतम 25 वर्ष की आयु का अग्निवीर जब सेना से बाहर आयेगा तो वह ताजादम जवान होगा और उसके सामने पूरा देश और इसकी अर्थव्यवस्था का वह ढांचा होगा जो लगातार नवोन्मेष से गुजर रहा है। चार वर्ष में सेना का प्रशिक्षण इन अग्निवीरों को विभिन्न तकनीकी व्यवसायों में इस प्रकार दीक्षित करेगा कि ये साइबर स्पेस से लेकर इंटरनेट व अन्य डिजिटल टैक्नोलोजी के क्षेत्र में भी आधारभूत ज्ञान रखते हों। जबकि अनुशासन व कर्मठता इनका विशिष्ट गुण होगा। मगर राजनीतिक नेता अभी तक ‘दास’ मानसिकता व औपनिवेशिक से ही लिपटे हुए हैं और वे इन अग्निवीरों की तुलना जानबूझ कर कमतर कहे जाने वाले व्यवसायों से कर रहे हैं। जबकि कोई भी व्यवसाय छोटा नहीं होता है बल्कि बदलती डिजिटल दुनिया में तो इन व्यवसायों की महत्ता भी लगातार बढ़ रही है।
दूसरे वर्तमान समय में सैनिकों की जिम्मेदारियां भी बदल रही हैं क्योंकि युद्ध की तकनीक बदल रही है। चाहे वायु सेना हो या थल सेना अथवा जल सेना तीनों का ही चरित्र इस प्रकार बदल रहा है कि सैनिक संख्या का स्थान सैनिक टैक्नोलोजी लेती जा रही है। जरा सोचिये अगर 1526 के प्रथम पानीपत के युद्ध के मैदान में आक्रान्ता ‘बाबर’ पहली बार तोपों का अमला लेकर न आया होता तो क्या इब्राहीम लोदी से वह यह लड़ाई जीत सकता था जबकि उसके पास लोदी की अपेक्षा बहुत कम सेना थी और इसके बाद क्या बाबर महाप्रतापी राजपूत वीर शिरोमणि  महाराणा सांगा को ‘बयाना’ मैदान में हरा सकता था। बेशक राजपूतों की हार के पीछे दगाबाजी भी मुख्य कारण रही मगर टैक्नोलोजी की भूमिका सात सौ साल पहले भी महत्वपूर्ण होती थी। वर्तमान युग में तो खेल ही टैक्नोलोजी का हो गया है। पारंपरिक आधार पर युद्ध लड़ने का समय जा चुका है। गौर कीजिये 1966-67 में क्या इस्राइल जैसा छोटा सा देश मुस्लिम अरब दुनिया के समस्य 50 से अधिक देशों को पानी पिला सकता था अगर उसके पास उस समय आधुनिकतम टैक्नोलोजी की आयुध सामग्री न होती। इस्राइल की जनसंख्या तो उस समय कुल 50 लाख के करीब ही थी। सवाल संख्या का नहीं रह गया है बल्कि ‘साइंस’ का हो गया है। उपगृह तकनीक से दुश्मन की फौजों के विमानों की स्थिति की जांच-पड़ताल होने लगी है और मिसाइलों से लक्ष्य साध कर दुश्मन को तबाह करने की तकनीक आ चुकी है। हमारी फौजों को समय के साथ चलना होगा और पूरी तरह राष्ट्रीय स्वरूप में चमकना होगा। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री डोभाल ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ का उदाहरण देकर साफ कर दिया है कि अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई रेजीमेंट पद्धति को बरकरार रखते हुए ही सेना की संरचना को राष्ट्रीय फलक में प्रस्तुत करना होगा जिससे देश के हर वर्ग के युवा के सैनिक जोश का उपयोग किया जा सके। नेताजी ने तो अपनी सेना में राष्ट्रीय नायकों के नाम पर रेजीमेंट बनाई थी और देश की आजादी के लिए इस सेना ने अनुकरणीय बलिदान दिया। कुल साठ हजार सैनिकों में से 40 हजार कुर्बान हो गये। सवाल यह है कि देश की सेना बदलते समय में लकीर की फकीर बनी नहीं रह सकती। अतः फौजी कमांडरों के फैसले को हर भारतीय को  ससम्मान स्वीकार करना चाहिए। अतः वक्त की पुकार है कि युवा शक्ति अग्निपथ पर चलती रहे,
‘‘वीर तुम बढे़ चलो, धीर तुम बढे़ चलो
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सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं, तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढे़ चलो, धीर तुम बढे़ चलो।’’
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