West Delhi मॉल घोटाले पर हाईकोर्ट सख्त, जांच में तेजी की मांग
पश्चिमी दिल्ली मॉल मामले में जांच में देरी पर हाईकोर्ट की नाराजगी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के मंजूरी प्राधिकरण को कथित पश्चिमी दिल्ली मॉल धोखाधड़ी की जांच के संबंध में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 28 मई को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शैलेंद्र कौर की अगुवाई वाली पीठ ने आवश्यक मंजूरी देने में लंबे समय तक देरी पर चिंता व्यक्त की और प्राधिकरण को छह सप्ताह के भीतर विस्तृत स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया। अदालत ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की दलीलों को स्वीकार किया, जिसमें संकेत दिया गया था कि कई संचारों के बावजूद, प्रमुख सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की मंजूरी अभी तक नहीं दी गई है। याचिका के अनुसार यह मामला मूल रूप से एसएस कॉन-बिल्ड प्राइवेट लिमिटेड को पट्टे पर दी गई एक मॉल संपत्ति के वाणिज्यिक उपयोग से संबंधित 200 करोड़ रुपये की अनियमितताओं के आरोपों से जुड़ा है।
याचिका में आगे कहा गया है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने बकाया भुगतान न होने के कारण जनवरी 2020 में लीज समाप्त कर दी थी, इसके बावजूद रिपोर्ट बताती है कि जाली दस्तावेजों, फर्जी कंपनियों और सरकारी अधिकारियों की कथित मिलीभगत के जरिए वाणिज्यिक संचालन जारी रहा। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा, अधिवक्ता गौरव गुप्ता और ठाकुर अंकित सिंह ने प्रतिनिधित्व किया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अगस्त 2025 में तय की है।
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दिल्ली उच्च न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एक याचिका के संबंध में नोटिस जारी किया है, जिसमें करोड़ों रुपये के भूमि घोटाले में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और रियल एस्टेट डेवलपर्स से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। यह याचिका एसएस कॉन बिल्ड प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व निदेशक ने दायर की थी, जिनका दावा है कि उन्हें धोखाधड़ी के जरिए कंपनी से गलत तरीके से हटा दिया गया।