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हिंदुओं ने अपनी जीवन शक्‍ति से देश की संस्‍कृति को बचाये रखा : RSS

09:33 PM Nov 25, 2023 IST | Deepak Kumar

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्‍ण गोपाल ने कहा कि हिंदुओं ने अपनी जीवनीशक्‍ति से खुद को और देश की संस्‍कृति को बचाये रखा। कृष्‍ण गोपाल शनिवार को राजधानी में 'राष्ट्रधर्म' पत्रि‍का के विशेषांक विमोचन समारोह में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि आवश्‍यकता है कि हर घर में हिंदी या स्‍थानीय भाषा के साहित्‍य का एक कोना होना चाहिये। ऐसा न होने पर पठनीयता की आदत खत्‍म होते ही देश की संस्‍कृति भी प्रभावित हो जायेगी।

उन्‍होंने हिंदुत्व पर कहा कि हजार वर्षों की पराधीनता काल में देश की संस्‍कृति प्रभावित हुई। पहले इस्‍लाम ने और उसके बाद अंग्रेजों ने हमारे देश को आर्थ‍िक रूप से लूटने के साथ ही सांस्‍कृतिक रूप से विकृत करने का प्रयास किया परन्तु हिंदुओं ने अपनी जीवनीशक्‍ति से खुद को और देश की संस्‍कृति को बचाये रखा। ऐसे में राष्‍ट्रधर्म पत्रिका ने भी अपना विशेष योगदान दिया है। मुगल काल में तीर्थयात्राओं पर लगने वाले कर (टैक्‍स) के बारे बताते हुए डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि जजिया के साथ ही तीर्थयात्रा एवं गंगा स्नान के टैक्स का बोझ उठाने के बाद भी हिंदुओं ने न तो तीर्थाटन छोड़ा और न ही गंगा स्‍नान।

मुगल हम हिंदुओं की मंदिर बनाने की भावना को तोड़ने में असफल रहा

एक समय में मधुसुदन सरस्‍वती ने आगरा जाकर मुगल बादशाह से अपील की कि वह तीर्थयात्रा पर लगने वाला कर हटा दें। ऐसे में दाराशि‍कोह और उनकी बहन ने इसका समर्थन किया। अंत में तीर्थयात्रा पर लगने वाला कर हटा दिया गया। उन्‍होंने कहा कि संस्‍कृति का संरक्षक हिंदू मुगलों द्वारा बार-बार मंदिरों को तोड़े जाने के बाद भी मंदिर का पुर्ननिर्माण करता रहा क्‍योंकि मुगल हम हिंदुओं की मंदिर बनाने की भावना को तोड़ने में असफल रहा था।

राष्‍ट्र की अखंडता के मूल को जीवित रखने की आवश्‍यकता

उन्‍होंने कहा कि इस पत्रिका के माध्‍यम से देश में ऐसे विचारों को ही जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है। एक हजार वर्ष की पराधीनता काल में हमारी संस्‍कृति का क्षरण होता रहा। संस्‍कार भी खोने लगे। ऐसे में राष्‍ट्र की अखंडता के मूल को जीवित रखने की आवश्‍यकता पड़ने लगी। देश की आजादी के समय में अंग्रेजों ने देश की संस्‍कृति को जिस प्रकार से खंडित करने का षड्यंत्र रचा था, उसे निष्‍प्रयोज्‍य करने के लिए राष्‍ट्रधर्म पत्रिका की 76 वर्ष पूर्व शुरुआत की गयी थी।

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