आर्टिकल में बताई गई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें. Punjabkesari.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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रंगों का त्योहार होली 24 और 25 मार्च 2024 को मनाया जा रहा है। पहले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन रंगों के साथ होली खेली जाती है। इस दिन पूरे देश में धूमधाम और हर्षोल्लास से होली खेली जाती है। होली के त्योहार की विभिन्न जगहों पर अलग-अलग परंपरा और प्रथाएं हैं। कहीं फूलों की होली खेली जाती है तो कहीं लट्ठमार होली मशहूर है। कुछ जगहों पर होली पर जलसा होता है तो कुछ स्थानों पर जुलूस निकाले जाते हैं।
आपको बता दें होली की अनोखी परंपराओं में से एक लठमार होली है। भारत की सबसे मशहूर होली उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन में मनाई जाती है। इसका एक कारण यहां कि लठमार होली है। भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में लोग लट्ठमार होली खेलने के लिए आते हैं। यहां द्वारिकाधीश मंदिर और वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का जश्न बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं।

बता दें लट्ठमार होली की तरह ही छड़ीमार होली भी मशहूर है। छड़ीमार होली की परंपरा मथुरा से कुछ किलोमीटर दूर बरसाना में खेली जाती है। यहां होली के मौके पर महिलाएं प्रतिकात्मक तौर पर पुरुषों को लट्ठ या छड़ी से मारती हैं। वहीं पुरुष हाथ में ढाल लिए, महिलाओं की छड़ी या लट्ठी से अपनी रक्षा करते हैं।इसके अलावा होली से कुछ दिन पहले बरसाना में लड्डू मार होली भी खेली जाती है।

सबसे ज्यादा होली का असर दक्षिण भारत के साथ उत्तर प्रदेश और बिहार में होली का खुमार रहता है। कर्नाटक राज्य के हंपी शहर में होली के त्योहार को उत्सव की तरह मनाया जाता है। हंपी ऐतिहासिक स्थलों का शहर है, जहां होली के जश्न के साथ ही शहर की खूबसूरती को देखने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं। होली के मौके पर हंपी की ऐतिहासि गलियों में ढोल नगाड़ों की थाप पर जुलूस निकालते हैं और नाचते गाते हैं।

देश में कुछ जगहों पर होली को दूसरे नामों से भी जाना जाता है। केरल राज्य में होली का पर्व मंजुल कुली और उक्कुली के नाम से मनाया जाता है। इस मौके पर लोग रंगों की होली तो नहीं खेलते हैं लेकिन होलिका दहन जरूर करते हैं। होलिका दहन के बाद प्राकृतिक तरीके से होली का त्योहार मनाते हैं।
