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दक्षिण भारत में होली को दिए गए हैं अलग-अलग नाम, जानें कहानी

कर्नाटक से केरल तक, होली के विविध रंग

12:04 PM Feb 28, 2025 IST | IANS

कर्नाटक से केरल तक, होली के विविध रंग

दक्षिण भारत में होली को दिए गए हैं अलग अलग नाम  जानें कहानी

हिंदी पट्टी में होली की धूम रहती है। रंग-अबीर-गुलाल से सब सराबोर रहते हैं। लेकिन विविधताओं से भरे इस देश के दक्षिण में भी रंगोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। कर्नाटक के हंपी और उडुपी की होली देखने और मनाने दूर-दूर से लोग आते हैं, तो केरल में विदेशियों का तांता लग जाता है।

दक्षिण के अधिकतर राज्यों में इस दिन कामदेव के बलिदान को याद करते हैं। इसलिए तो कर्नाटक में कामना हब्बा और कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा-दाहानाम कहते हैं।

कर्नाटक के उडुपी में श्री कृष्ण मठ में होली को काफी आध्यात्मिक रूप से मनाया जाता है। रंगों से होली नहीं खेली जाती, बल्कि भगवान कृष्ण के चरणों में कुछ फूल अर्पित कर दिए जाते हैं। एक ओर भजन-कीर्तन का माहौल होता है, वहीं दूसरी ओर भक्त सामान्य दिनों की तरह भगवान कृष्ण से प्रार्थना करने पहुंचते हैं।

यहां से गोवा पहुंचे तो मछुआरों की शिमगो या शिमगा से साक्षात्कार होता है। कोंकणी में होली को इसी नाम से पुकारा जाता है। इस दिन रच कर रंग खेलते हैं। भोजन में तीखी मुर्ग या मटन करी पकती है, जिसे शगोटी कहा जाता है। शिमगोत्सव की सबसे अनोखी बात पंजिम में निकाला जाने वाला विशालकाय जुलूस होता है, जो गंतव्य पर पहुंचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में परिवर्तित हो जाता है। नाटक और संगीत होते हैं, जिनका विषय साहित्यिक, सांस्कृतिक और पौराणिक होता है। तब न जाति की सीमा होती है, न धर्म का बंधन होता है।

इसी राज्य का ऐतिहासिक शहर है हंपी। यहां पर खुमार हिंदी पट्टी सा ही रहता है। गलियों में ढोल नगाड़ों की थाप के साथ जुलूस निकालता है और नाचते-गाते लोग आगे बढ़ते हैं। रंगों की होली भी खेलते हैं और बाद में हंपी स्थित तुंगभद्रा नदी और सहायक नदियों में स्नान करने जाते हैं।

ऐसा ही कुछ मंजुल कुली और उक्कुली खेलने वालों के साथ भी होता है। केरल में होली इसी नाम से जानी जाती है। यहां लोग रंगों में नहीं डूबते, लेकिन होलिका दहन करते हैं। दहन के बाद प्राकृतिक तरीके से होली का त्योहार मनाते हैं।

तेलुगू भाषी प्रांत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तो ये 10 दिन तक उत्सव होता है। आखिरी के दो दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। कुछ इलाकों में होली के अवसर पर लोकनृत्य कोलतास किया जाता है। यहां होली को मेदुरू होली कहते हैं। लोग एक-दूसरे पर रंग अबीर गुलाल की बरसात करते हैं।

होली सामाजिक समरसता का प्रतीक है। सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। क्या उत्तर, क्या दक्षिण भावना एक ही होती है, मिल जुलकर खुशियां बांटने की। उल्लास चरम पर होता है।

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