Guru Purnima 2024 : कब मनाया जाएगा गुरु पूर्णिमा का त्योहार, जानें क्या है शुभ मुहुर्त?
Guru Purnima 2024 : सनातन धर्म में विक्रम संवत के पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इसी पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का भी जन्म दिन आता है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। जैन धर्म में गुरु को ही भगवान माना जाता है, इसलिए उनके लिए यह पर्व विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन गुरुओं की पूजा होती है। और उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा की जाती है। भारत के अलावा यह पर्व भूटान और नेपाल में भी पूरी भव्यता के साथ आयोजित होता है। यह पर्व गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनकी शिक्षाओं के अनुसार जीवन में सदाचार और परोपकार का समावेश करना है। इस दिन मन-कर्म और वचन से शुद्ध होकर गुरु की पूजा करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। यदि गुरु वर्तमान में सशरीर नहीं हो तो उनके चित्र को ही उनकी उपस्थिति मान कर पूजा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। वैसे भी गुरु की सीख और बताए गये मार्गदर्शन के अनुसार अपने जीवन को ढालना ही गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होती है। इसलिए गुरु के लिए कहा गया हैः-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः
15 वीं शताब्दि के प्रसिद्ध भक्त कवि कबीरदास जी ने गुरु की महत्ता को स्वीकार किया है। जगत में संत कबीरदास जी के बहुत से दोहे प्रचलन में हैं। लेकिन एक दोहा इतना प्रचलित है कि सामान्य जन भी उस दोहे के आधार पर कबीरदास जी को याद करता है। कबीरदास जी के जन्म के संबंध में बहुत सी भ्रांतियां प्रचलन में हैं लेकिन उनके दोहे जन मानस में उनको एक भक्त कवि की संज्ञा से सम्मानित करते हैं। गुरु के संबंध में कबीरदास जी का यह दोहा उन्हें अमरत्व प्रदान करता है। आज कबीरदास जी चराचर जगत में नहीं है किन्तु गुरु के प्रति उनकी आस्था आज भी सच्चे शिष्यों का मार्गदर्शन करती आई है। संत कवि कबीर दास जी ने लिखा हैः-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय।।
हालांकि यह दोहा खड़ी भाषा का है लेकिन इसका भावार्थ बहुत आसानी से समझ में आ जाता है। यहां कबीरदास जी शंका व्यक्त करते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों सामने मिल जाए तो पहले किसे नमस्कार करना चाहिए। और इसी दोहे में उन्होंने शंका का समाधान भी स्पष्ट कर दिया है। कबीरदास जी बिना किसी संकोच के कहते हैं कि पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु की कृपा के कारण ही हमें भगवान के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। तो गुरु की महत्ता निर्विवाद से भगवान से अधिक है। एक दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते हैंः-
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
अर्थात कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्ति संभव नहीं है। और जब ज्ञान ही नहीं होगा तो मोक्ष कैसे होगा। मनुष्य को यदि सच्चा गुरु नहीं मिले तो वह जगत में भटकता रहता है।
कब है गुरु पूर्णिमा
जैसा कि आप जानते हैं कि गुरु पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 20 जुलाई 2024 को सायं 6 बजे से होगी। लेकिन सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उसे ही मान्यता प्राप्त है। इसलिए 21 जुलाई 2024 को सूर्योदय के साथ ही गुरु पूर्णिमा का पर्व आरम्भ हो जायेगा। 21 जुलाई को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इस दिन उत्तरा आषाढ़ा नक्षत्र है और चन्द्रमा गुरु की राशि धनु में गोचर करेंगे, जिसके कारण गुरू पूर्णिमा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। गुरु पूर्णिमा के ही दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। इसलिए आप इस लिए शुभ कार्यों की शुरूआत भी कर सकते हैं।
कैसे करें पूजा
प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही उठ कर स्नानादि से निवृत्त होकर पूरी तरह से शुद्धता रखते हुए गुरु के सानिध्य में जाएं। गुरु के चरणों में नमन करें। गुरु की पूजा करें और उन्हें अपनी श्रद्धा और पूरी आस्था के साथ कोई भेंट दें। और मन ही मन गुरु के आदेशों और शिक्षाओं के अनुसार जीवन यापन करने की प्रतिज्ञा करें।