क्या आपकी कुंडली में भी है कालसर्प योग, जानिए अपने भाग्य से जुड़ी खास बातें
कालसर्प योग
कितना झूठ, कितना सच
क्या आपकी कुंडली में है कालसर्प योग?
राहु और केतु यद्यपि सपिण्ड ग्रह नहीं है। तथापि इनका प्रभाव दूसरे ग्रहों से किसी भी तरह से कमतर नहीं है। ये पाप ग्रहों की श्रेणी में आते हैं। इनकी कोई निश्चित राशियाँ नहीं है। लेकिन कुछ विद्वान अपने अनुभव के आधार पर इनकी राशियाँ स्थिर करते हैं। हालाँकि किसी भी शास्त्रीय पुस्तक में इनकी राशियों के संबंध में समुचित निर्देश नहीं प्राप्त होते हैं।
राहु और केतु के संबंध में अनेक भ्रान्तियाँ प्रचलित हैं। हालाँकि कुछ में सत्यता है लेकिन अधिकतम जनमानस में भय व्याप्त करने के लिए रची गई हैं। कालसर्प योग भी कमोबेश इसी श्रेणी में आता है। कालसर्पयोग का ज्योतिष के क्षेत्र में एक अच्छा खासा हौवा है। इसका प्रभाव यहाँ तक है कि लोग यह समझते हैं कि कालसर्प योग का जातक जीवन में सफल नहीं हो पाता है, उस पर ऋण रहता है, संतान प्राप्ति में बाधा आती है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा नहीं होती है, आदि-आदि।
उपरोक्त तथ्य सत्य के सन्निकट तो है, लेकिन पूर्ण सत्य नहीं है। कालसर्प योग का प्रभाव अवश्य होता है। लेकिन जो भ्रांतियाँ व्याप्त हैं वे पूरी तरह से ठीक प्रतीत नहीं होती है। पहली बात तो यह कि किसी भी कुण्डली में ऐसा कोई शक्तिशाली या प्रभावी कोई योग नहीं हो सकता है, जो कि पूरे जीवन को प्रभावित कर सके। इस बात को आप भली प्रकार से समझ लें। यह बात नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह के योगों पर लागू होगी। मेरा आशय यह है कि अकेला कालसर्पयोग किसी के जीवन को पूरी तरह से नरक नहीं बना सकता है। उसका प्रभाव जीवन के क्षेत्र विशेष पर ही होगा। इसी क्रम में देखें कि एक शुभ योग जीवन के सभी क्षेत्रों को समृद्ध नहीं बना सकता है। इसका शुभ प्रभाव भी जीवन के किसी एक ही पहलू पर ही होगा।
ज्योतिष 2 2= 4 का विज्ञान नहीं है। इसलिए किसी भी योग का पूरी मानसिक क्षमता से विवेचन करना होता है। फिर चाहे गजकेसरी योग हो या कालसर्प। इस बात को मैं एक उदाहरण से समझा पाऊँगा, एक व्यक्ति की दायीं हथेली में नक्षत्र का चिह्न था। उसे किसी ने भ्रमित कर दिया कि नक्षत्र का चिह्न समृद्धि और विश्वव्यापि यश-प्रसिद्धि देता है। मैंने उसे बताया कि निश्चित रूप से सम्पूर्ण और स्वस्थ नक्षत्र चिह्न इस प्रकार के फल दे सकता है। तथापि उसके लिए हथेली की दूसरी रेखाएँ और ग्रह क्षेत्र भी अनुकूल होने चाहिए। फिर मैंने उसे हथेली में नक्षत्र की स्थिति के अनुसार उसे बताया कि उसके दादा बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति थे।
सारांश यह है कि कुण्डली में हजारों योग उपस्थित रहते हैं। लेकिन उनके प्रभाव के बारे में आकलन का कोई मान्य विज्ञान नहीं है। एक ज्योतिषी पूरी कुण्डली, जातक की वर्तमान स्थिति, देश, काल और जाति आदि बहुत से पक्षों के आधार पर अपनी राय व्यक्त करता है। और ऐसा ही उसे करना चाहिए।
कालसर्पयोग की उत्पत्ति
जब शेष सभी सात ग्रह राहु ओर केतु के मध्य की राशियों में हो तो कालसर्प योग होता है। जैसे केतु कन्या राशि में हो और राहु मीन राशि पर हो और शेष ग्रह या तो कन्या से मीन राशि में हो या मीन से कन्या राशि के अन्तर्गत हो। इस स्थिति को कालसर्पयोग कहते हैं। लेकिन पूर्ण कालसर्पयोग तभी बनता है, जब सभी ग्रह राहु जिस राशि में हो उस राशि से पिछली सात राशियों में हों। यदि ग्रह स्थिति इसके विपरीत हो तो मेरे अनुभव के अनुसार कालसर्पयोग नहीं बनता है, या उसका प्रभाव नहीं होता है।
क्या होंगे परिणाम ?
यदि किसी जन्मांग चक्र में पूर्ण कालसर्पयोग विद्यमान हो तो यह निश्चित करना चाहिए कि उसका प्रभाव जीवन के किस क्षेत्र पर होगा। यह सब राहु-केतु के भावों में स्थिति के आधार पर तय होगा। और इस योग का प्रभाव कितना कुछ होगा इसके लिए लग्नबल, चन्द्र बल और दूसरे योगों पर दृष्टिपात करना चाहिए। किसी भी योग का प्रभाव ताउम्र नहीं रहता है। इसी प्रकार कालसर्पयोग भी अधिकतम 42 वर्ष तक की आयु तक ही प्रभावी रह पाता है।
जब कालसर्प हो तो क्या करें?
जब यह तय हो जाए कि जन्मांग में कालसर्पयोग है और जीवन को यह योग नकारात्मक प्रभावित कर रहा है। तब निम्न उपायों को करने से सामान्यतयाः राहत मिल जाती है।
- बंधक सर्पों को खुले में छोड़ना चाहिए।
- बुधवार या शुक्रवार को गोधुलि बेला में गोमेद, वैदुर्यमणि (लहसुनिया), तिल, कंबल, नीले वस्त्र, तेल, अभ्रक, नीले फूल, चाकू आदि दान देने चाहिए।
- राहु के मंत्र जाप करने चाहिए।
- सूर्य या चन्द्र ग्रहण के समय राहु के तांत्रिक मंत्र का जाप करने से कालसर्पयोग का प्रभाव निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। क्योंकि ग्रहण के समय राहु प्रत्यक्ष होता है।
यहाँ एक बात मैं पाठकों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैंने बहुत से जन्मांग चक्रों में कालसर्प योग देखा है लेकिन उसका कोई प्रभाव जातक के जीवन में मुझे दिखाई नहीं दिया। इसका अर्थ यह है कि कालसर्पयोग आधुनिक युग की देन है और इस संबंध में गहरे शोध की आवश्यकता है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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