17 अक्टूबर 2024 को आयोजित होगा श्री सालासर बालाजी का लक्खी मेला।
इस दिन आयोज्य होगा श्री सालासर बालाजी का लक्खी मेला
राजस्थान के चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के सालासर ग्राम में बालाजी का विशाल मंदिर है। यह मंदिर राजस्थान की राजधानी और पिंक सिटी के नाम से मशहूर जयपुर से बीकानेर मार्ग पर स्थित हैं। हालांकि सालासर एक छोटा सा गांव है। लेकिन यहां पर बालाजी का मंदिर पूरे भारत में एक धाम के तौर पर प्रसिद्ध है। इस मंदिर में श्री हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। जिसे आम बोलचाल की भाषा में बालाजी कहा जाता है। यहां श्री हनुमान जी का अलग ही रूप प्रदर्शित होता है। सालासर में जिस रूप में बालाजी की मूर्ति है वह रूप अन्यत्र दुर्लभ है। मूर्ति को देख कर लगता है जैसे यह युवा अवस्था का रूप है। मूंछ और दाढ़ी में श्री हनुमान जी एक अलग ही छवि में दिखाई देते हैं। अपने चमत्कारों और कष्टों के निवारण के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर लाखों लोगों की श्रद्धा और आस्था का केन्द्र है। सालासर बालाजी धाम भगवान श्री हनुमान जी के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है।
वैसे तो इस मंदिर में भारत के सभी प्रदेशों से लोग दर्शनार्थ आते हैं लेकिन राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब के लोगों की विशेष आस्था सालासर बालाजी से जुड़ी हुई है। मंदिर की स्थापना करीब 270 वर्षों पहले हुई थी। उस समय जो अखंड ज्योत प्रज्वलित की गई थी वह आज भी अनवरत जल रही है। मंदिर बहुत भव्य बना हुआ है। मंदिर के आसपास यात्रियों के रुकने और भोजन आदि के लिए धर्मशालाएं और होटलों की अच्छी व्यवस्थाएं हैं।
स्वतः प्रकट हुई थी मूर्ति
यहां जो हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है वह आसोटा नामक गांव के खेत में स्वतः ही प्रकट हुई थी। भूमि से जब मूर्ति प्रकट हुई। उस समय सालासर में श्री मोहनदास जी महाराज हनुमानजी की भक्ति करते थे। गांव के ठाकुर को स्वप्न में श्री हनुमानजी का आदेश हुआ कि इस मूर्ति को सालासर गांव में स्थापित कर दिया जाए। मूर्ति को जब बैलगाड़ी में रखा गया तो बैलगाड़ी सालासर में एक स्थान विशेष पर जाकर जड़ हो गई। श्री हनुमानजी की इच्छा को जानकर श्री मोहनदास जी महाराज ने इसी स्थान पर श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी तिथि, शनिवार विक्रम संवत् 1811 को मूर्ति को स्थापित किया। कालांतर में मंदिर ने वर्तमान भव्य मंदिर का रूप ले लिया।
कहा जाता है कि श्री मोहनदास जी को एक बार श्री हनुमानजी के दर्शन हुए। मोहनदास जी महाराज कहा करते थे कि उनको श्री हनुमानजी के दाढ़ी और मूछों की छवि में दर्शन हुए थे। इसलिए उन्होंने भी उस मूर्ति को उसी रूप में देखा और शृंगार किया। संसार में दाढ़ी और मूंछ के साथ श्री हनुमान जी का यही एक मंदिर है।
वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का मंदिर में तांता लगा रहता है। लेकिन हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा को विशेष मेलों का आयोजन होता है। इन मेलों में लगभग पन्द्रह दिनों तक लाखों की संख्या में लोग दर्शनों के लिए बहुत दूर-दूर से आते हैं। व्हीकल के अलावा पैदल यात्री भी बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष इन मेलों में आते हैं।
कब है आश्विन मेला?
इस वर्ष अक्टूबर मास की 17 तारीख को आश्विन पूर्णिमा तिथि है। हालांकि नवरात्रा से ही लोगों का आना शुरू हो जाता है जो पूर्णिमा के आते आते क्रमशः बढ़ता रहता है। मुख्यतः चतुर्दशी और पूर्णिमा के दर्शनों को विशेष महत्व प्राप्त है। आश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरम्भ 16 अक्टूबर 2024 को होगा। उसके बाद 17 अक्टूबर 2024, गुरूवार को आश्विन पूर्णिमा होने से भक्तों की भीड़ बहुत बढ़ जाती है। माना जाता है कि आश्विन पूर्णिमा को सालासर बालाजी के दर्शन करने से रोग और शोक से छुटकारा मिलता है। बिजनेस में बढ़ोत्तरी होती है घर में सुख और शान्ति के वातावरण का सृजन होता है।
मन्नत के लिए बांधते हैं नारियल
यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी विशेष इच्छा पूर्ति या मन्नत के पूर्ण होने की आशा में नारियल बांधते हैं। माना जाता है कि नारियल बांधने से अवश्य ही मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। श्री सालासर बालाजी को गेहूं के आटे का चूरमा या बूंदी के लड्डू का भोग भी लगाया जाता है। अपनी मन्नत के पूर्ण होने पर लोग 51 किलो का प्रसाद बाबा को समर्पित करते हैं। वर्तमान में मावे के पेड़ों का प्रसाद भी श्री हनुमान जी को चढ़ाया जाता है।
कैसे जाएं ?
यदि आप बालाजी महाराज के दर्शन करना चाहते हैं तो दिल्ली से सालासर एक्सप्रेस नाम की प्रतिदिन एक ट्रेन है जो दिल्ली से सुजानगढ़ तक है। सुजानगढ़ से सालासर तक की दूरी करीब 21 किलोमीटर है। निकटतम बड़ा रेल-वे स्टेशन रतनगढ़ है, जो कि सालासर से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। रतनगढ़ के लिए भारत के लगभग सभी स्थानों से ट्रेन मिल जाती है। यदि ट्रेन से नहीं आना चाहते हैं तो रोड़ से जयपुर मार्ग सबसे बेहतर है। इसके लिए जयपुर या सीकर आना चाहिए। निकटतम हवाई अड्डे जयपुर और बीकानेर है। जयपुर से सालासर करीब 190 किलोमीटर और बीकानेर से करीब 170 किलोमीटर की दूरी पर है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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