India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

क्या है तुलसी विवाह की पौराणिक कथा, जानें तुलसी विवाह के लिए शुभ मुहूर्त कब है?

09:49 PM Nov 23, 2023 IST
Advertisement

लगभग सभी सनातन धर्मी के घर में तुलसी का पौधा अवश्यमेव होता है। तुलसी को न केवल पवित्र बल्कि आरोग्य कारक भी समझा जाता है। माना जाता है कि यदि प्रति दिन दो पत्ते तुलसी के सेवन किये जाएं तो व्यक्ति अनेक तरह के रोगों से बचा रहता है। मान्यताओं के अनुसार सभी मांगलिक कार्यों में तुलसीदल अनिवार्य है। घर के वातावरण को सुरम्य बनाने के लिए प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना आरोग्यदायक है। हालांकि रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को तोड़ना, तुलसी के पौधे को लगाना या उसमें पानी देना सभी वर्जित कहे जाते हैं।

चूंकि श्रीलक्ष्मी और तुलसी का सम्बन्ध भगवान श्रीविष्णु से है इसलिए यह मान्यता है कि जिस घर में नियमित तुलसी की पूजा होती है। वहां अवश्य ही श्रीलक्ष्मी का वास होता है। कार्तिक के शुभ महीने में श्रीविष्णु का पूजन तुलसी दल से करने का खास माहात्म्य बताया गया है। इसलिए धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक माह में तुलसी का विवाह संपन्न करने पर कन्यादान करने जैसा पुण्य ही प्राप्त होता है।
तुलसी का पौराणिक वृतांत

पुराणों में उल्लेख है कि राक्षस समाज में उत्पन्न एक वृंदा नामक महिला भगवान श्रीविष्णु की अटूट भक्तिनी थी। उसका पति राक्षसराज जलंधर देवताओं से शत्रुता रखता था। एक बार जलंधर और देवताओं के मध्य युद्ध हुआ। वृंदा न केवल भगवान श्रीविष्णु में अगाद्य भक्ति भाव रखती थी बल्कि वह एक सती और पतिव्रता स्त्री भी थी। जब जलंधर युद्ध पर गये तो उसने प्रण लिया कि जब तक जलंधर की विजय नहीं हो जाती तब तक वह अनुष्ठान करती रहेगी। सती का ऐसा प्रभाव हुआ कि देवता युद्ध में जलंधर का परास्त नहीं कर पाये। जब उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखा तो वे श्रीविष्णु के पास सहयोग की याचना की।

देवताओं की याचना से द्रवित श्रीविष्णु ने जलंधर राक्षस का रूप धारण किया और वृंदा के आवास पर पहुंचे। वृंदा ने उन्हें ही पति समझ लिया और अपना अनुष्ठान संपन्न कर दिया। लेकिन वृंदा का वास्तविकता का अनुमान नहीं था। लेकिन जैसे ही वृंदा का संकल्प नष्ट हुआ वैसे ही जलंधर को देवतओं ने युद्ध में हरा कर उसका सर काट कर वृंदा के महल में गिरा दिया। इस पर कुपित वृंदा ने श्रीविष्णु श्राप देकर पत्थर का बना दिया। इस पर देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं करूण प्रार्थना के उपरान्त वृंदा अपना श्राप वापस ले लिया।

वृंदा इसके बाद अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं। जब दाह की ठंडी हुई तो उसमें से एक पौधा उत्पन्न हुआ तब भगवान श्रीविष्णु उस पौधे का नामकरण तुलसी किया। और यह भी वरदान दिया कि इस पौधे का हर घर में पूजा जायेगा और मैं स्वयं शालिग्राम पत्थर के रूप में तुलसी के साथ ही पूजा जाउंगा। श्रीविष्णु ने कहा कि शुभ कार्य में मेरी पूजा से पूर्व तुलसी जी को भोग लगेगा। इस घटना के उपरान्त से ही तुलसी पूजा होने लगी। सर्वविदित है कि कार्तिक मास में तुलसी का विवाह शालिग्रामजी के साथ किया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीविष्णु के शालीग्राम रूप और माता तुलसी का विवाह संपन्न किया जाता है।

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह के लिए अभिजीत मुहूर्त 24 नंवबर 2023, शुक्रवार, दोपहर 12.00 से दोपहर 12.40 तक है।

 

ज्योतिर्विद् सत्यनारायण जांगिड़।
Email- astrojangid@gmail.com

Advertisement
Next Article