युद्ध के समय अस्पताल कैसे बनते हैं ढाल? जानिए तैयारियों की पूरी कहानी
युद्ध में अस्पतालों की भूमिका: सुरक्षा की पहली पंक्ति
जब सीमा पर बमों की गूंज सुनाई देती है और सैनिक मोर्चे पर डटे होते हैं, तो उनके पीछे एक और ‘मोर्चा’ सजता है — अस्पतालों का। ये अस्पताल उस जंग का हिस्सा होते हैं, जहां जीवन को वापस लाने की लड़ाई लड़ी जाती है। डॉक्टर, नर्सें और मेडिकल स्टाफ उन सिपाहियों की तरह होते हैं जिनके पास बंदूकें नहीं, लेकिन सुई, दवाइयां और हौसला होता है। जैसे ही युद्ध की आशंका बनती है, अस्पतालों में आपातकालीन योजना सक्रिय कर दी जाती है। ICU और इमरजेंसी वार्ड का विस्तार किया जाता है। ब्लड बैंक में पर्याप्त रक्त भंडारण पहले ही सुनिश्चित किया जाता है। अस्थायी बेड्स और ट्रॉमा यूनिट्स लगाए जाते हैं ताकि भारी संख्या में घायलों का इलाज संभव हो सके। मेडिकल स्टाफ की शिफ्ट्स बढ़ा दी जाती हैं और 24×7 ड्यूटी चक्र तैयार किया जाता है।
मेडिकल स्टाफ को दी जाती है विशेष युद्धकालीन ट्रेनिंग
युद्ध में घायल लोग अक्सर गंभीर और असामान्य चोटों के साथ अस्पताल पहुंचते हैं — जैसे गोलियों के घाव, धमाकों से शरीर में हुए नुकसान या अंग विच्छेदन। इसीलिए, डॉक्टरों और नर्सों को सिखाया जाता है कि तत्काल प्राथमिक उपचार कैसे दें, इमरजेंसी ऑपरेशन कैसे संभालें, कैसे मानसिक सदमे झेल रहे परिवारों की भी काउंसलिंग की जाए, साइकॉलॉजिकल हेल्थ टीमें भी तैनात की जाती हैं ताकि मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा सके।
दवाइयों और उपकरणों की आपूर्ति कैसे होती है सुनिश्चित?
युद्ध के दौरान सामान्य सप्लाई चेन बाधित हो सकती है। ऐसे में: दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडरों और सर्जिकल उपकरणों का बड़ा स्टॉक पहले से तैयार रखा जाता है। मोबाइल मेडिकल यूनिट्स को भी युद्धक्षेत्र के पास तैनात किया जाता है ताकि मौके पर ही प्राथमिक इलाज मिल सके। कुछ बड़े अस्पतालों को डिजास्टर रिस्पॉन्स सेंटर की तरह काम करने के लिए तैयार किया जाता है।
अस्पतालों की यह जंग इंसानियत के लिए सबसे बड़ा संदेश है
जब सैनिक मोर्चे पर लड़ाई लड़ते हैं, तो अस्पतालों में जान बचाने की एक और जंग चलती है — खामोश लेकिन बेहद अहम. ये अस्पताल हमें सिखाते हैं कि मुसीबत के वक्त में सबसे बड़ी ताकत करुणा, सेवा और मानवता है।