Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

यह कैसी धर्मनिरपेक्षता

नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर विरोध और समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों के चलते देश बंटा हुआ लगता है।

04:24 AM Jan 25, 2020 IST | Aditya Chopra

नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर विरोध और समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों के चलते देश बंटा हुआ लगता है।

नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर विरोध और समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों के चलते देश बंटा हुआ लगता है। शैक्षिक क्षेत्र हो या मुम्बई फिल्म उद्योग या फिर बौद्धिक क्षेत्र, सभी में विचारधारा के स्तर पर कहीं न कहीं टकराव नजर आता है। इस शोर-शराबे में वास्तविक मुद्दे कहीं खोने लगे हैं। भारत विश्व के दृश्य पटल पर एक सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश है। यह ऐसा धर्मनिरपेक्ष है, जैसी धर्मनिरपेक्षता होना बड़ा मुश्किल है। इसे 1976 में धर्मनिरपेक्ष बनाया गया था। यह काम किया था तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने। 
Advertisement
सारा विश्व जानता है कि इस धर्मनिरपेक्षता के लिए हमने संविधान तक में संशोधन कर डाला था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एनसीसी शिविर में सम्बोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका एक मजहबी देश हैं लेकिन भारत एक मजहबी देश नहीं है। भारत कहता है कि हम धर्मों के बीच भेदभाव नहीं करते क्योंकि हमारे साधु-संतों ने न केवल हमारी सीमाओं के भीतर रहने वाले लोगों को अपने परिवार का हिस्सा माना बल्कि पूरी दुनिया में रहने वाले लोगों को भी अपना परिवार बताया। 
हमारे भारतीय मूल्य कहते हैं कि सभी धर्म बराबर हैं। हमने कभी नहीं कहा कि हमारा धर्म हिन्दू, सिख या बौद्ध होगा। हमारा एक धर्मनिरपेक्ष देश है। धर्मनिरपेक्ष भारत के चलते हमने इसके ​लिए बहुत कुछ बलिदान भी दिया है। इसके लिए हमें अतीत में जाना होगा। अंग्रेजों ने जब मुस्लिम लीग की मांग स्वीकार करते हुए धर्म के आधार पर भारत को दो भागों में बांटा तो भारत के नेताओं ने धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया। 
मोहम्मद अली जिन्ना का 15 अगस्त, 1947 का भाषण भी पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता से प्रेरित था लेकिन बाद में पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामी देश घोषित कर दिया। फिर शुरू हुआ खतरनाक खेल। विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह गए अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित और जबरन धर्मांतरण का शिकार होना पड़ा। विभाजन के वक्त पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी 23 प्रतिशत थी जो अब केवल 2.8 फीसदी रह गई है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी कम होने का मुख्य कारण जबरन धर्म परिवर्तन और गैर मुस्लिम समुदायों की बेटियों का मुसलमान लड़कों के साथ जबरन  निकाह करवाना है। 
ऐसा न करने पर उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जाती हैं। 1971 युद्ध के बाद हमने पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्र बंगलादेश के तौर पर मान्यता दी। 1988 में बंगलादेश इस्लामिक देश बन गया, वहां भी अल्पसंख्यक आबादी कम होती गई। पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दू और सिख परिवार भारत आकर शरण मांगने लगे। विभाजन के बाद इन्द्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह के परिवार भी पाकिस्तान से आए थे। जरा सोचिये अगर इनके परिवार पाकिस्तान में रहते तो क्या पाकिस्तान का अवाम इन्हें कभी प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार करता।
आखिर भारत आए हिन्दुओं को अगर भारत शरण नहीं देगा तो और कौन देगा? पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 18 दिसम्बर 2003 को राज्यसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से मांग की थी कि पाकिस्तान और बंगलादेश में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए कानून बनाया जाए। अब जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने सीएए पारित करवा दिया तो फिर शोर-शराबा क्यों?  अब जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने भी स्पष्ट कर दिया है कि नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में राज्यों की कोई भूमिका नहीं तो फिर भ्रम का वातावरण क्यों सृजित किया जा रहा है।
-जब कश्मीर घाटी से पंडितों का पलायन हुआ और घाटी हिन्दुओं से खाली हो गई, तब धर्मनिरपेक्ष लोगों की आत्मा क्यों नहीं जागी?
-जब हजारों आदिवासियों को ​ईसाई धर्म में दीक्षित किया जाता रहा तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग चेहरा दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो गए।
-जब तमिलनाडु या दक्षिण के दूसरे राज्यों में गरीब हिन्दुओं को पैट्रो डालरों की मदद से हिन्दू से मुसलमान बना दिया गया, तब इन्हें भारतीय संविधान सुरक्षित नजर आया।
-पूर्वोत्तर भारत में अवैध बंगलादेशियों ने जनसांख्यिकी का स्वरूप ही बदल डाला, तब ये खामोश रहे।
आज भी असदुद्दीन और अकबरुदीन ओवैसी जैसे लोग कह रहे हैं कि मुस्लिमों ने 800 साल तक भारत पर शासन ​किया और हमारे बाप-दादाओं ने लाल किला बनवाया, ताजमहल बनवाया, बजट की कवायद शुरू करने के मौके पर बनाया जाने वाला हलवा भी इनके लिए अरबी हो जाता है तो धर्मनिरपेक्ष का आवरण पहनने वाले लोग क्यों नहीं बोलते। जहां तक नागरिकता संशोधन कानून के चलते संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ का सवाल है, इसकी जांच-परख सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है, जिसके चलते हिन्दुओं को ही पीड़ा सहन करनी पड़े। इस देश को स्वयं हिन्दुओं की पीड़ा जाननी ही होगी।
– आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement
Next Article