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बंदी सिखों की रिहाई पर राजनीति कब तक?

05:00 AM Oct 23, 2025 IST | Sudeep Singh
बंदी सिखों की रिहाई पर राजनीति कब तक
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हमारे देश का कानून यह कहता है कि किसी भी कैदी की सजा पूरी होने के बाद उसे एक दिन भी जेल में नहीं रखा जा सकता मगर बड़ी ही हैरानी की बात है कि आज भी देश के अलग-अलग राज्यों की जेलों में कई ऐसे सिख कैदी बन्द हैं जिनकी सजाएं पूरे हुए भी कई कई साल बीत चुके हैं पर वह अभी भी जेल से रिहाई के लिए सरकारों के रहमो करम पर हैं, और सरकारें इनकी रिहाई करके अपने बहु गिनती वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहती। इतना ही नहीं इनमें उन पंथक पार्टियों के लोग भी शामिल हैं जो लम्बे समय तक जब सत्ता पर काबिज रहे और उस समय अगर वह चाहते तो इनमें से कई सिख कैदी जिन्हें बन्दी सिख कहा जाता है उनकी रिहाई हो सकती थी मगर उस समय उन्होंने भी बन्दी सिखों को रिहाई दिलाने के बजाए अपने वोट बैंक को ध्यान में रखा और आज वही लोग इस मुद्दे पर खुलकर राजनीति कर पंथक वोटरों के दिलों में फिर से अपनी जगह बनाने में लगे हैं, अगर राजनीतिक स्वार्थों को दरकिनार कर सिख नेताओं ने बंदी सिखों की रिहाई के लिए सही मायने में कुछ किया होता तो शायद आज देश और राज्यों की सरकारें भी उनकी रिहाई के बारे में अपनी सोच में बदलाव कर सकती थी।

वोट बैंक की राजनीति के चलते आज देश के हालात ऐसे बन चुके हैें कि कई मामलों में सजायाफ्ता मुजरिम जिन पर बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं फिर भी उन्हें कई बार पैरोल दे दी जाती है, इतना ही नहीं उल्टा उन्हें सुरक्षा तक सरकारें मुहैया करवाती हैं वहीं दूसरी ओर अनेक सिख कैदी जिनकी सजाएं खत्म हुए 25 से 30 साल बीत चुके हैं मगर उन्हें अभी तक एक बार भी पैरोल नहीं दी गई जो कि दर्शाता है कि इस देश में व्यक्ति की पैरवी के मुताबिक कानून कार्य करता है। हम यह नहीं कहते कि किसी भी कैदी को उसके किए की सजा ना मिले मगर किसी के साथ भी बिना वजह सौतेला व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। यह भी माना जा सकता है निश्चित तौर पर इन कैदियों के द्वारा कोई न कोई अपराध अवश्य ऐसा किया होगा जिसके चलते उन्हें कठोर कैद हुई पर अब अगर उन्होंने सजा पूरी ली है तो निश्चित तौर पर उनका हक बनता है कि उन्हें रिहाई मिलनी चाहिए।

बंदी छोड़ दिवस के मौके पर दिल्ली में पिछले कुछ सालों से सिख जत्थेबं​दियों के द्वारा बंदी सिखों की रिहाई की मांग को लेकर दिल्ली के तिहाड़ जेल के बाहर अरदास की जाती है पर यह शायद उनके द्वारा अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल करने मात्र तक ही सीमित है क्योंकि इसका कोई असर सरकारों पर होने वाला नहीं है। बेहतर होगा आज जो सिख नेता जिनकी सरकारों में अच्छी पैठ है उन्हें चाहिए कि वह सरकारों से संवाद कर बंदी सिखों की रिहाई के मसले को उठाएं जिसके बाद हो सकता है कि इनमें से कुछ कैदियों की रिहाई संभव हो सके। जत्थेदार कुलदीप सिंह गढ़गज को मिलने लगी मान्यता : श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज जिन्हें ज्ञानी हरप्रीत सिंह के स्थान पर मार्च महीने में श्री अकाल तख्त साहिब का कार्यकारी जत्थेदार नियुक्ति किया गया था। मगर उनकी ताजपोशी के दौरान उन मर्यादाओं की पालना नहीं की गई जो कि जत्थेदार की नियुक्ति के समय जरुरी होती हैं इसलिए उनकी नियुक्ति पर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे और उन्हें विवादित जत्थेदार तक कहा गया। मगर अब धीरे-धीरे सिख संगत उन्हें पूर्ण सम्मान के साथ जत्थेदार कबूलने लगी है। बीते दिनों तख्त पटना साहिब नतमस्तक होने के दौरान पटना की संगत और प्रबन्धकों ने भी उनका पूरा सम्मान किया। पंजाब की कुछ निहंग जत्थेबंदियों के द्वारा भी उन्हें दस्तार भेंट कर उनकी जत्थेदारी पर मोहर लगा दी गई है।

उम्मीद लगाई जा रही है कि आने वाले दिनों में अन्य संस्थाए भी जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज की कार्यशैली और उनके मिलनसार स्वभाव को देखते हुए उन्हें जत्थेदार कबूल कर लें। वैसे देखा जाए तो जत्थेदार के पद पर ऐसे व्यक्ति को ही बिठाया जाना चाहिए जो कि राजनीति से दूर हटकर धार्मिक जिम्मेवारियों का वहन करे अन्यथा देखा जाता है कि जत्थेदार की पदवी मिलते ही लोग राजनीतिक लोगों की कठपुतली बनकर फैसले लेने लगते हैं जिसका नुकसान पंथ को झेलना पड़ता है। बीबी मनदीप कौर बख्शी की माने तो कौम को लम्बे अरसे के बाद कुलदीप सिंह गड़गज के रुप में ऐसा जत्थेदार मिला जो कि अपनी जिम्मेवारी का बाखूबी निर्वाह करने के साथ ही एक आम सिख की भान्ति सेवा कार्यों में भी रुची रखता हो। जत्थेदार गड़गज को संगत अक्सर श्री दरबार साहिब में पानी पिलाने, लंगर सेवा, जोड़ाघर में सेवा करते देखती है, जो कि पहले के जत्थेदारों से अलग हटकर है। यह भी देखा जा रहा है कि उनके द्वारा पंथ में एकजुटता के भी निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। सिखी सरूप की खातिर नौकरी ठुकराई : सिख धर्म में अनेक ऐसी मिसाल मिलती हैं जहां व्यक्ति विशेष ने अपने प्राणों की आहूती तक दे डाली, महिलाओं ने अपने बच्चों के टुकड़े-टुकड़े करवाकर उनका गले में हार डाला मगर सिखी सरुप को नहीं त्यागा।

वरना आज तो फैशन के दौर में फंसकर सिख युवक युवतियां स्वयं अपने केशों से छेड़छाड़ करने लगे हैं पर आज के समय में कुछ सिख ऐसे बचे हैं जिनके लिए गुरु की बख्शिश सिखी स्वरुप सर्वाेपरि है, उसके लिए वह किसी भी चीज का त्याग करने में पीछे नहीं हटते। इन्हीें में से एक हैं मिलाप सिंह चहल जिन्हें अमेरिका की मरीन कॉर्प्स ट्रेनिंग में सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने बाल और दाढ़ी नहीं कटवाई, जो कि सिख पहचान और आस्था के पवित्र प्रतीक हैं। सालों के इंतज़ार और संघर्ष के बाद, एक संघीय अदालत ने फैसला सुनाया कि मरीन कॉर्प्स सिखों को उनकी धार्मिक आस्था के प्रतीकों को बनाए रखने के कारण प्रवेश से वंचित नहीं कर सकती। सिख धर्म आध्यात्मिक भक्ति और निःस्वार्थ सेवा जिसमें सत्य की रक्षा और दूसरों की सुरक्षा शामिल है, दोनों सिखाता है। मगर वहीं बीते दिनों अमरीकी राष्ट्रपति के फैसले ने मिलाप सिंह चाहल जैसे गुरसिख अफसरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं जो सिखी सरुप में रहते हुए फौज की नौकरी करने के इच्छुक हैं अब यां तो उन्हें फौज की नौकरी छोड़नी पड़ेगी यां फिर अपने केशों और दस्तार का त्याग कर नौकरी करनी होगी मगर उम्मीद की जाती है कि आने वाले दिनों में संसार भर में सिख समुदाय के लोग एकजुट होकर अमरीकी राष्ट्रपति पर दबाव बनाकर उन्हें इस फैसले को वापिस लेने के लिए मजबूर कर देंगे।

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के प्रति लोगों में जागरुकता कैसे हो : इतिहास इस बात की गवाही भरता है कि गुरु तेग बहादुर जी की शहादत की बदौलत ही हिन्दू धर्म कायम है मगर अफसोस कि चंद लोग ही हैं जिन्हें इस इतिहास की जानकारी सही से हो वरना 99 प्रतिशत लोग आज भी गुरु तेग बहादुर जी और उनके दिए हुए बलिदान से अन्जान हैं। लोगों में जागरुकता लाने के उदेश्य से तख्त पटना साहिब कमेटी के द्वारा बिहार सरकार की मदद से शहीदी जागृति यात्रा निकाली जो कि 17 सितम्बर को तख्त पटना साहिब आरंभ हुई थी और देश के अलग अलग राज्यों से होकर श्री आनंदपुर साहिब में समाप्त होगी। इसी प्रकार एक यात्रा शिरोमणि कमेटी के द्वारा निकाली गई और भी देश के अलग-अलग राज्यों से सिख जत्थेबं​दियों के द्वारा यात्राए निकाली जा रही है। समाज सेवी जसबीर सिंह धाम की सोच है कि जब तक पंथ में एकजुटता नहीं होती जितनी मर्जी यात्राएं निकालें, कार्यक्रम करें उसका कोई लाभ होने वाला नहीं है। सबसे पहले सिख पंथ के नेताओं को बिना किसी पार्टीवाद के एकजुट होना होगा और उसके बाद अगर वह प्रचार की लहर चलाएंगे तो निश्चित तौर पर उसका असर दिखाई देगा। पहल सिख समुदाय को ही करनी होगी तभी अन्य जत्थेबं​दियां, राजनीतिक पार्टियां या सरकारें सहयोग कर इस मुहिम को आगे बढ़ा सकती हैं मगर अफसोस कि आज सिखों में ही कुछ लोग हैं जिन्हें गुरु जी को हिन्द की चादर कहने में दिक्कत हो रही है, पहले उन्हें अपनी सोच को बदलना होगा।

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Sudeep Singh

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