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सोनी कितना ‘सोना’ है

04:00 AM Aug 31, 2025 IST | त्रिदीब रमण

भगवा शीर्ष में चाहतों के नए रंग घोलने वाले सुरेश सोनी भाजपा के प्रेम में किस तरह आकंठ डूबे हैं, इसकी एक बानगी तब देखने को मिली जब संघ की एक छोटी टोली की बैठक में उन्हें लगा कि वही एक हैं जो एकला चलो की तान छेड़ रहे हैं क्योंकि बैठक में मौजूद संघ के अन्य नेताओं की राय अलग-अलग किस्म से आ रही थी। मसलन संघ के एक सीनियर नेता जोर देकर अपनी बात कह रहे थे कि ‘भाजपा का अगला अध्यक्ष उसी व्यक्ति को होना चाहिए जो अपनी बात आंखों में आंखें डाल कर दृढ़ता से कर सके। हमें ऐसा अध्यक्ष नहीं चाहिए जो आदेश प्राप्ति के लिए खड़ा रहे।’
सूत्रों ने बताया कि सारी बातें सुनने के बाद सुरेश सोनी ने बेखटके कहा कि ‘इतनी प्रतिकूल परिस्थतियों के बावजूद जबकि विपक्ष वोट चोरी तथा कई तरह के आरोप लगा रहा है, हमारी इकॉनामी ढुलमुल हो रही है और अमेरिका बिनावजह आंखें दिखा रहा है, मोदी जी तमाम संतुलन साधते हुए देश को इतनी बेहतरी से चला रहे हैं।’ कहते हैं इसके बाद सुरेश सोनी ने संघ के अपने साथी नेताओं से आह्वान किया कि हर बार हर मीटिंग में उन्हें ही क्यों केंद्र सरकार के बारे में अच्छी बातें बतानी पड़ती हैं? अगर प्रधानमंत्री सब कुछ अच्छा कर रहे हैं तो इसका एहसास हम सबको होना चाहिए और हमें सामूहिक रूप से उनकी प्रशंसा में आगे आना चाहिए।
कौन से केंद्रीय मंत्री भाजपा शीर्ष की आंखों में चुभ रहे हैं
सरकार के एक सीनियर मंत्री के बारे में लोगों की आम धारणा यही है कि ये काम से काम रखने वाले मंत्री हैं। पार्टी और पार्टी से इतर भी इनकी दोस्तों की फेहरिस्त काफी लंबी है। कहते हैं पिछले दिनों मुंबई के एक चर्चित बिल्डर का टेप कांड काफी सुर्खियां पा रहा है जिसमें कथित तौर पर मंत्री जी को कहते सुना जा रहा है कि ‘बिहार के बाद कुछ भी हो सकता है। 40-45 एमपी तो मेरे ही टच में हैं।’ सनद रहे कि यह बिल्डर गुजरात लॉबी के भी इतना ही करीबी है जितना कि मंत्री जी के। सो, बिल्डर द्वारा इस टेप के लीक किए जाने के बाद से भाजपा के द्वारा इस मंत्री जी के पुराने काम-काज के इतिहास को खंगाला जा रहा है।
विदेश नीति को लेकर संघ की चिंता
भारत के ताजा-तरीन चीन प्रेम को संघ पचा नहीं पा रहा है। संघ नेता दबी-जुबान से इस बात का जिक्र करने लगे हैं जब इंदिरा गांधी ने अमेरिका से रार ठानी थी तो पूरा देश उस वक्त इस मुद्दे पर उनके साथ हो गया था और देश में अमेरिका विरोधी बयार चल पड़ी थी। पर मौजूदा वक्त में भारत में अमेरिका विरोध की लहर उस तरह किंचित दिख नहीं रही है। याद कीजिए तब नेहरू ने कैसे चीन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, ‘पंचशील’ नीतियों की वकालत की थी तब बदले में हमें मिला क्या था। संघ के एक नेता थोड़ी खुली जुबान में कहते हैं’ हमने नेवले के साथ दुश्मनी कर चीन रूपी सांप से दोस्ती कर ली है, एक न एक दिन डसना तो उसकी फितरत है। देखना है हम कब तक अपने को बचा कर रख पाते हैं।’ तब भारत के प्रति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी का नजरिया कुछ और ही रहता था पर क्या ट्रंप पर भरोसा किया जा सकता है?
कर्रा की बगावत
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का झगड़ा सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा है। कांग्रेस आलाकमान की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में गुटों में बंटे नेताओं में एकजुटता बन ही नहीं पा रही है। राहुल गांधी ने बेहद खिन्न मन से कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को यह दायित्व सौंपा है कि प्रदेश में अलग-अलग गुटों में बंटी कांग्रेस में एका कराएं। इस पर केसी वेणुगोपाल ने जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस प्रभारी सईद नासिर को तलब कर प्रदश नेताओं की एक मीटिंग दिल्ली में बुलाने को कहा। उनके आदेशानुसार यह मीटिंग दिल्ली में आहूत हुई जिसमें प्रदेश के तमाम नेताओं ने शिरकत की।
यहां तक कि पार्टी महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी जी.ए. मीर, कांग्रेस कार्यसमिति के कई सदस्य और जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वकार रसूल वानी भी इस बैठक में मौजूद रहे। पर हैरतअंगेज तरीके से प्रदेश के मौजूदा अध्यक्ष कर्रा ने एक स्लिप भिजवा दी कि ‘उन्हें हीट स्ट्रोक हो गया है सो वे इस बैठक में आने में असमर्थ हैं।’ अगर वे सचमुच बीमार थे तो बैठक के अगले ही कुछ रोज किश्तवाड़ कैसे पहुंच गए जहां पहाड़ों में बादल फटने की घटना घटी थी। एक तरह से कर्रा ने अपने पार्टी नेताओं को यह संदेशा भेजने का काम किया है कि ‘वे आदेश तो सिर्फ राहुल गांधी का ही ले सकते हैं।’
केजरीवाल और मान में क्यों ठनी
अरविंद केजरीवाल पिछले दिनों पंजाब के एक प्रमुख औद्योगिक घराने के व्यक्ति से मिले और कथित तौर पर उन्हें राज्यसभा की सीट ऑफर कर दी। सूत्र बताते हैं कि जब इस बात की खबर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लगी तो उन्होंने केजरीवाल से दो टूक कहा कि ‘प्लीज आप पंजाब के निर्णय मुझे लेने दीजिए, आप गुजरात पर ध्यान दें।’ दरअसल, मान की चिंता इस बात को लेकर थी कि राज्यसभा की सारी सीटें उद्योगपतियों को ही चली जाएंगी तो पार्टी के कार्यकर्ता और समर्पित नेताओं का क्या होगा। वैसे भी पंजाब में ‘लैंड पुलिंग’ नीति की वज़ह से मान सरकार की खासी किरकिरी हो रही है। कहते हैं अब केजरीवाल और मान में इस बात को लेकर सहमति बन गई है कि क्यों नहीं राज्यसभा के लिए एक ऐसा कैंडिडेट ढूंढा जाए जिनका जनाधार भी हो और पार्टी की मदद करने में भी सक्षम हो।
...और अंत में
क्या बिहार में बदलती बयारों में बारूदों की गंध छुपी है। अब भाजपा बिहार को लेकर काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मसलन अभी पिछले दिनों दिल्ली दरबार ने जेपी नड्डा को बुला कर बिहार की महती जिम्मेदारी सौंपी है कि ‘वे चुनाव की तमाम बारीकियों पर नज़र रखेंगे।’ नीतीश दिल्ली आकर भगवा दरबार के समक्ष अनर्गल प्रलाप करते रहे पर दरबार ने उनके प्रति जरा भी नाराज़गी नहीं दिखाई। नीतीश अब भी इस बात पर अड़े हैं कि ‘वे भाजपा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।’ शायद उनकी यह मांग मान भी ली जाए।
प्रशांत किशोर से थोड़ा हौले-हौले चलने को कहा गया है। भाजपा का अपना आकलन है कि वे सिर्फ अगड़े वोट ही जुटा पा रहे हैं। उनकी सभाओं में मुस्लिम समाज की मौजूदगी जरूर देखी जा रही है पर ऐसा माना जा रहा है कि इस दफे मुस्लिम वोट एकमुश्त महागठबंधन के पाले में जा सकते हैं। इससे ओवैसी जैसे वोट कटुओं को भी निराश होना पड़ सकता है।

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