टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलसरकारी योजनाहेल्थ & लाइफस्टाइलट्रैवलवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

अश्लीलता पर कैसे लगे अंकुश

04:54 AM Nov 29, 2025 IST | Aditya Chopra

अश्लीलता एक एेसा विषय है जो समाज में नैतिक कानूनी और सामाजिक सिद्धांतों को छूता है। इसके अन्तर्गत ऐसी सामग्रियां परोसी जा रही हैं जो सार्वजनिक शालीनता को ठेस पहुंचा रही हैं। जब भी अश्लीलता परोसे जाने पर प्रतिबंध लगाने की बात उठती है तो तरह-तरह की आवाजें उठने लगती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस होने लगती है। क्या नैतिक और क्या अनैतिक है इस पर तर्क-वितर्क शुरू हो जाते हैं। इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि इसका समाज पर कितना विकृत प्रभाव पड़ रहा है। समाज में मासूम लोग और बच्चों के भी अधिकार हैं। ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी कुछ भी बोलता रहे। अश्लील कंटेंट के लिए किसी न किसी को तो जवाबदेह बनाना ही होगा। जो कुछ समाज के सामने परोसा जा रहा है उस पर कवि सौरभ मिश्र की पंक्तियां पूरी तरह से चोट करती नजर आती हैं।
सभ्य समाज की दर घटती, मन्दता हाय सताती है।
पवित्र रिश्तों के बीच भी अब, असभ्यता की दुर्गंध आती है।।
शर्म भी बेशर्म बना, सभ्यता संस्कृत का नाश हुआ ।
अशिष्टता के धंधे बढ़ते, सुकर्मों का अवकाश हुआ।।
मनोरंजन के नाम पर जब, अश्लील प्रदर्शन होता है।
देख रूह कांपती है, हृदय ठिठुर के रोता है।।
पढ़ो-बढ़ो करो कुछ ऐसा, स्वजन स्वराष्ट्र का ध्यान रखो।
पर जो संस्कृत आदर्श धरोहर है, थोड़ा तो उसका मान रखो।।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को साफ निर्देश दे दिया है कि यूजर-जनरेटेड कंटेंट के लिए चार हफ्ते में नए दिशा-निर्देश बनाओ। सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है कि पहले जनता और विशेषज्ञों से राय ली जाए, फिर दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब यू-ट्यूब, पॉडकास्ट, रील्स के लिए नए नियम तैयार किए जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन अश्लीलता से ​िनपटने के​ लिए तटस्थ, स्वतंत्र नियामक निकाय की आवश्यकता पर बल दिया है क्यों​िक मौजूदा उपाय कोई काम नहीं कर पा रहे हैं। इस केस की शुरूआत चर्चित पॉड कास्टर रणवीर इलाहाबादिया की याचिका से हुई थी। यू ट्यूबर समय रैना के शो इंडियाज गॉट लेटेंट में कुछ प्रतिभागियों ने बहुत अश्लील और अपमानजनक बातें की थीं। जिसके बाद देशभर में कई एफआईआर दर्ज हो गई थीं। उसी मामले में कोर्ट ने सरकार से कहा था कि इस संबंध में ​दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट पहले भी सरकार को सुझाव दे चुकी है ​िक उसे हास्य के नाम पर भोंडापन या विकृति रोकने के​ लिए नियामक उपाय लेकर आने चाहिएं। अदालत की मंशा ऐसे नियमों से है जो बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर अतिक्रमण नहीं करेंगे और संविधान में अनुमति प्राप्त वाजिब पाबं​िदयों की रूपरेखा के भीतर होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से कहा है कि यूजर जैनेरेटर कंटेंट को अपलोड होने से पहले प्री-स्क्रीन करने के लिए एक ड्राफ्ट मैकेनिजम तैयार किया जाए ताकि ऐसे वीडियो, फोटो या पोस्ट जो समाज को नुक्सान पहुंचाने की क्षमता रखते हों, उन्हें वायरल होने से पहले ही रोका जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘नियम बनाने का मकसद किसी की बोलती बंद करना नहीं है, बल्कि एक फिल्टर लगाना है, जिससे गंदगी अपने आप बाहर रह जाए। आज कोई अपना चैनल बनाता है, मनमर्जी की बातें बोलता है, लेकिन जिम्मेदारी कोई नहीं है। यह बहुत अजीब बात है।’’ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, ‘‘यह बहुत अजीब बात है कि मैंने अपना खुद का प्लेटफॉर्म और चैनल बनाया लेकिन कोई अकाउंटेबिलिटी नहीं है। ऐसे कंटेंट के साथ जिम्मेदारी की भावना जुड़ी होनी चाहिए।’’ अदालत ने सोशल मीडिया पर हानिकारक कंटेंट हटाए जाने की मौजूदा प्रक्रिया को नाकाफी बताया। पीठ ने कहा, "अगर कोई राष्ट्र-विरोधी या उकसाने वाला कंटेंट सोशल मीडिया पर पोस्ट होता है, सरकार को नोटिस लेकर उसे हटाने तक एक-दो दिन लग जाते हैं। इस बीच वह वायरल होकर समाज में नुकसान पहुंचा चुका होता है। इसलिए एक प्रिवेंटिव मैकेनिजम ज़रूरी है।" न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए नहीं बल्कि समाज को बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान से बचाने के लिए है। सीजेआई ने कहा, “हम ऐसा सिस्टम मंजूर नहीं करेंगे जो विचारों की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाए। जरूरत सिर्फ ऐसी उचित और संतुलित व्यवस्था की है जो अपलोड से पहले कंटेंट को फिल्टर कर पाए न कि आवाज़ को दबाए।"
ब्रॉडकार्स्ट्स, ओटीटी प्लेटफार्म और ​िडजिटल चैनलों के संगठनों ने जब प्रीसैंसरशिप का विरोध किया तो अदालत ने स्पष्ट ​किया ​िक सरकार को पूर्ण सैंसरशिप की शक्ति देना उचित नहीं होगा लेकिन प्लेटफार्म को पूर्ण स्वतंत्रता देना भी सुरक्षित नहीं। सरकार के खिलाफ बोलना राष्ट्र विरोधी नहीं है। यह लोकतंत्र का मूल अधिकार है लेकिन कुछ सोशल मीडिया पोस्ट ऐसे होते हैं जो समाज में जहर घोल देते हैं। असली समस्या यही है। आॅपरेशन सिंदूर के बाद ऐसी कई पोस्ट देखने को ​मिलीं, जिसने समाज में विष घोल दिया।
इससे पहले सरकार ने अश्लीलता फैलाने वाली कई वेबसाइटों को बंद किया। एक के बाद एक कई कदम उठाए गए। इस विषय का एक पहलू यह भी है कि सरकार का काम लोगों के शयन कक्षों में ताकझांक करना नहीं है। हर शयन कक्ष की अपनी निजता होती है। इसके विपरीत कई समाज शा​स्त्रियों का कहना है कि अगर अश्लीलता की यही धारा विस्तार पाती गई तो लोगों का चेतन आैर अचेतन इतने गहरे में प्रभावित होगा कि वह कमरों की दीवारें तोड़कर सर्वत्र फैल जाएगा। यह अश्लीलता मनोरंजन नहीं मनोभंजक है। यही कारण है कि हमारे देश में दुष्कर्म और व्यभिचार बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार नए नियमों में अश्लीलता, डीप फेक, एआई कंटेंट पर अलग-अलग गाइडलाइन्स जारी कर सकती है और जवाबदेही तय कर सकती है। देखना होगा कि कैसा तंत्र व्यवस्थित होता है।

Advertisement

Advertisement
Next Article