कैसे जीते, क्यों हारे
कांग्रेस पार्टी के पास मुस्कुराने की एक वजह है लेकिन रोने के कई कारण। प्रियंका गांधी ने अपना पहला चुनाव जीत लिया है लेकिन कांग्रेस ने महाराष्ट्र को गंवा दिया है। राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा…
कांग्रेस पार्टी के पास मुस्कुराने की एक वजह है लेकिन रोने के कई कारण। प्रियंका गांधी ने अपना पहला चुनाव जीत लिया है लेकिन कांग्रेस ने महाराष्ट्र को गंवा दिया है। राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा। झारखंड में पार्टी ने हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा के अधीन दूसरी भूमिका निभाई। उपचुनाव में पार्टी ने वाव विधानसभा सीट पर अपनी पकड़ खो दी। केरल में कांग्रेस पार्टी ने चेलक्करा सीट सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के हाथों गंवा दी।
विधानसभा उपचुनाव 9 सीटों पर उत्तर प्रदेश में 7 सीटों पर, राजस्थान में 6 सीटों पर, पश्चिम बंगाल में 5 सीटों पर, असम में 4 सीटों पर, पंजाब और बिहार में 3 सीटों पर, कर्नाटक में 2 सीटों पर, मध्य प्रदेश और केरल में हुए। साथ ही 1-1 सीट छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड और मेघालय में भी चुनाव हुए।
भारतीय जनता पार्टी के पास खुश होने के पर्याप्त कारण हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में उल्लेखनीय प्रदर्शन के साथ कई सीटें जीतीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 9 में से 6 सीटें जीतीं जबकि उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल ने एक सीट पर कब्जा जमाया। असम में उसे 3 सीटें मिलीं। बिहार में 2 सीटें मिलीं और छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तराखंड में भी एक-एक सीट पर जीत हासिल की।
महाराष्ट्र की कहानी तो भाजपा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिखी जाएगी। इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने पहुंचे तो उनका उत्साह स्पष्ट झलक रहा था। लोकसभा चुनाव के बाद की उदासी के विपरीत इस बार उन्होंने जोश भरे अंदाज में बात की। हालांकि मोदी समेत सभी जानते थे कि उनकी सरकार सहयोगी दलों के सहारे टिकी हुई है। भाजपा अकेले बहुमत हासिल करने में विफल रही जिससे उसका ‘इस बार 400 पार’ का नारा हकीकत से दूर रह गया। 2024 के लोकसभा चुनाव अब पुरानी बातें हैं। इसके बाद जो हुआ वह भाजपा का पुनरुत्थान था। आम चुनावों में बहुमत के निशान से नीचे रहने के बावजूद, पार्टी ने हरियाणा में जीत हासिल की और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में असंभव को संभव कर दिखाया। यहां तक कि जम्मू और कश्मीर में भी पार्टी ने जम्मू क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रखी। उसने 29 सीटें जीतीं, जो 2014 के मुकाबले चार अधिक थीं। इस प्रदर्शन के साथ भाजपा क्षेत्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
प्रधानमंत्री ने उस शाम अपने संबोधन में कहा-भाजपा ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार जीत का रिकॉर्ड बनाया है और जम्मू-कश्मीर में भी जीत हासिल की है लेकिन भाजपा ने वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर एक नई मिसाल कायम की है।
एक महीने बाद मोदी महाराष्ट्र में एनडीए की ‘बड़ी जीत’ का जश्न मनाने में व्यस्त थे। उन्होंने कहा-इस बार महाराष्ट्र ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह पिछले 50 वर्षों में किसी भी पार्टी या पूर्व चुनाव गठबंधन की सबसे बड़ी जीत है। लगातार तीसरी बार महाराष्ट्र ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को आशीर्वाद दिया है। तीसरी बार भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। महाराष्ट्र में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया, जहां उसने 149 सीटों में से 133 पर बढ़त बनाई या जीत हासिल की। शिवसेना (एकनाथ शिंदे) ने 56 सीटें जीतीं और अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटें। इसके विपरीत कांग्रेस सिर्फ 16 सीटों पर, शिवसेना (यूबीटी) 21 सीटों पर और एनसीपी (एसपी) 10 सीटों पर सिमट गई।
तो महाराष्ट्र की कहानी हमें क्या सिखाती है? दोनों दलों से अलग-अलग संदेश मिलते हैं, जिनमें सबसे अहम यह है कि चुनाव कैसे लड़ा जाए और कैसे नहीं। पहले मामले में मुख्य भूमिका भाजपा की है ः एक ऐसी पार्टी जो दुनिया को यह सिखाती है कि हार से सीखें और दुखी होने के बजाय वापसी कैसे करें। हल्के शब्दों में कहें तो लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए और उससे भी अधिक प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक झटका थे, जिनका ब्रांड उस समय अपनी चमक खोता हुआ नजर आ रहा था।
भाजपा ने अपनी प्रकृति के अनुरूप तेज़ी से काम शुरू किया और लोकसभा में हुए नुक्सान की भरपाई करने का निश्चय किया। हरियाणा से शुरुआत करते हुए इसने महाराष्ट्र में पूरी तरह से अंजाम तक पहुंचा दिया। इस दौरान पार्टी ने मोदी ब्रांड को फिर से चमकाया और साथ ही मतदाताओं की स्थानीय चिंताओं का समाधान किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसने अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाकर काम किया।
जीत के शोर-शराबे में जो बात कहीं छूट रही है, वह है आरएसएस की भूमिका। यह कोई रहस्य नहीं है कि भाजपा अपनी संगठनात्मक ताकत आरएसएस के कार्यकर्ताओं से प्राप्त करती है। इस बार रणनीति में भी बदलाव हुआ था, सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को सामने लाने के बजाय स्थानीय मतदाता की चिंताओं को भी संबोधित किया गया। झारखंड में हालांकि कहानी अलग थी क्योंकि भाजपा सरकार द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डालने के कारण सहानुभूति एक बड़ा कारक था।
रही बात कांग्रेस की, तो उसने पूरी तरह से अपनी राह खो दी। न सिर्फ उसका प्रचार नीरस था, बल्कि गठबंधन सहयोगियों के बीच तालमेल की भी कमी थी। इसके अलावा राहुल गांधी का गौतम अडाणी के मामले पर बार-बार ज़ोर देना प्रभावी नहीं हो सका। अगर उनकी बहन प्रियंका गांधी की जीत ने दिन न बचाया होता तो कांग्रेस के पास दिखाने के लिए कुछ भी नहीं होता।