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हुर्रियत गाथा : हो रहा है नागों का मर्दन

अपने आप को कुल जमाती कहलाने वाली हुर्रियत कांफ्रैंस का अब जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व ही नहीं बचा। हुर्रियत कांफ्रैंस के नागों ने राज्य में बहुत जहर फैलाया।

12:04 AM May 21, 2020 IST | Aditya Chopra

अपने आप को कुल जमाती कहलाने वाली हुर्रियत कांफ्रैंस का अब जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व ही नहीं बचा। हुर्रियत कांफ्रैंस के नागों ने राज्य में बहुत जहर फैलाया।

हुर्रियत गाथा   हो रहा है नागों का मर्दन
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अपने आप को कुल जमाती कहलाने वाली हुर्रियत कांफ्रैंस का अब जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व ही नहीं बचा। हुर्रियत कांफ्रैंस  के नागों ने राज्य में बहुत जहर फैलाया। अब इसके कई नाग पिटारे में बंद है यानी कई जेलों में हैं, जो बाहर हैं उनकी कोई जमात ही नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्ववर्ती सरकारों ने हुर्रियत के नागों को बहुत दूध पिलाया। इन्हें धन भी दिया और सुरक्षा कवच भी दिया। नागों को सिर्फ नागपंचमी के दिन ही दूध पिलाया जाता है लेकिन हुर्रियत के नागों ने बरसों तक सरकारी दूध पिया और उगला सिर्फ विष। जिन लोगों के हृदय में भगवान शंकर द्वारा धारण किए गए नागों के प्रति श्रद्धा है, मैं उनसे क्षमा  प्रार्थी हूं। परन्तु साथ में मैं यह भी कहना चाहता हूं कि भगवान कृष्ण के जीवन में भी एक नाग का जिक्र है। उस नाग का नाम है-कालिया। इस नाग के साथ क्या व्यवहार हुआ उसे तो पाठक जानते होंगे। यह वास्तव में हुर्रियत वालों का पूर्वज रहा होगा इसके कई फन थे। इसीलिए कालिया मर्दन हुआ। काश! हमने कश्मीर में कालिया मर्दन बहुत पहले कर दिया होता। हुर्रियत वालों ने हमेशा मानवाधिकार उल्लंघन का ढोल पीटा लेकिन खुद इनका कोई चरित्र नहीं रहा। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई की मदद से इन्होंने युवाओं के हाथों में बंदूकें थमाईं और स्कूली बच्चों और बेरोजगारों को पत्थरबाज बना डाला।
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इनके बच्चे खुद विदेशों में रहते हैं लेकिन कश्मीरी बच्चों को मौत के मुंह में धकेला। पाकिस्तान और अन्य अरब जगत से मिल रही फंडिंग से अपनी अथाह सम्पत्तियां खड़ी कर लीं। किसी ने देशभर में आलीशान बंगले बना लिए किसी ने होटल  बना लिए। अधिकांश अलगाववादी नेताओं ने विदेशी युवतियों से ही शादी की और उन्हें विदेश में ही बसा दिया। इनकी सियासत की दुकानें जम्मू-कश्मीर में चलती रहीं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सत्ता सम्भालने के बाद से हुर्रियत कांफ्रैंस पर शिकंजा कसा और टैरर फंडिंग की जांच कर इन्हें पूरे देश में नग्न कर डाला। इनकी असलियत सामने आ गई।
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श्रीनगर के नवाकदल में हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने हुर्रियत कांफ्रैंस के चेयरमैन मोहम्मद अशरफ सेहरई के बेटे जुनैद को साथी समेत मार ​गिराया। घाटी के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी अलगाववादी नेता के बेटे ने आतंक की राह चुनी हो और मारा गया हो। जुनैद ने भी कश्मीर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद दो साल पहले आतंक की राह चुन ली थी। कई वर्ष पहले जुनैद का नाम पत्थरबाजों की सूची में भी था। जुनैद कश्मीरी युवाओं को आतंकवाद की राह पर चलने के लिए बहकाता था, बाद में वह हिजबुल मुजाहिदीन के लिए सैंट्रल कश्मीर का डिविजनल  कमांडर बन गया था।
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एक एमबीए छात्र का आतंकवाद की राह पर चलना न तो कश्मीर के अवाम के लिए अच्छा है और न ही परिवार के लिए। विचारधारा कितनी भी कट्टरपंथी क्यों न हो आखिर वह भी ​किसी की मां का बेटा और किसी बहन का भाई था। हैरानी की बात तो यह है कि जब जुनैद ने आतंक की राह पकड़ी तब जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डीजीपी एमपी वैद्य ने उसके पिता अशरफ सेहराई से अपील की थी कि वह अपने बेटे को बंदूक छोड़ने को कहें लेकिन अशरफ ने साफ इंकार कर दिया था और कहा था कि आज की पीढ़ी पढ़ी-लिखी है और अपना रास्ता खुद चुन सकती है। यह कैसी विषाक्त विचारधारा है। जिसमें एक पिता अपने बेटे को हथियार उठाने से नहीं रोकता, जबकि सबको पता है कि उसका अंजाम सिर्फ मौत है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बल लगातार आतंकी सरगनाओं का सफाया कर रहे हैं। कुछ दिन पहले शीर्ष आतंकवादी रियाज नायकू को मार गिराया था उसके बाद किश्तवाड़ में आरएसएस नेता चन्द्रकांत शर्मा और उनके सुरक्षा कर्मी की हत्या करने वाले हिज्बुल आतंकी ताहिर को मार गिराया। अब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की उम्र कोई ज्यादा लम्बी नहीं होती। 6 माह से लेकर एक वर्ष के भीतर ही उसे ढेर कर दिया जाता है। आजादी के बाद से ही हुर्रियत ने जो विष फैलाया उसका असर आज तक है। कश्मीर का अवाम समझ क्यों नहीं पा रहा कि कश्मीरी अलगाववादियों के रिश्तेदार कई देश में हैं। अलगाववादियों के 112 बच्चे विदेशों में हैं, जिनमें से 14 बड़े नेताओं के बच्चे हैं, इनमें सैयद अली शाह गिलानी, मीरवायज उमर फारूक, यासिन मलिक, बिलाल लोन, आसिया अंद्राबी, हाशिम कुरैशी आदि शामिल हैं। फिर उनके बच्चों को मौत के कुएं में क्यों धकेला जा रहा है। आतंकियों के जनाजे में बंदूकें लहराने वालों में से शायद अब कोई नहीं बचा। जुनैद के मारे जाने के बाद उसके पिता को कोई दुख हुआ होगा, इसका अनुमान तो कोई लगा नहीं सकता लेकिन उसकी मौत कश्मीर के अवाम के लिए एक चेतावनी जरूर है कि वे अपनी पीढ़ी को सम्भाले। कश्मीरी युवा जीवित रहेंगे तो कश्मीरियत जिंदा रहेगी। कश्मीर में बचे-खुचे अलगाववादी आखिर किस प्रकार की आजादी की परिकल्पना कर रहे हैं। क्या वह पाकिस्तान की हालत को नहीं देख रहे। वह केवल कश्मीरी युवाओं को धर्म के नाम पर उकसा और बरगला रहे हैं। न जाने कश्मीर के अभागे लोग कब नींद से जागेंगे।
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