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आई लव मुहम्मद (स.), आई लव महादेव!

03:11 AM Oct 02, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

‘आई लव मुहम्मद’ (स.) को लेकर विवाद अच्छा खास बढ़ गया, जिसका कारण है कि कुछ राजनेताओं और मौलानाओं ने इसको लेकर कई अति विवादास्पद बयान दिए हैं। जहां बरेली के मौलाना तौकीर रजा खान ने अपने धमकीले बयानों से वातावरण को गर्मा दिया है, वहीं भारत के चीफ इमाम उमैर अहमद इलियासी ने इस विवाद के सुलझे हुए समाधान की ओर जोर देते हुए कहा है, ‘की तू ने वफ़ा मुहम्मद से तो हम तेरे हैं/ यह जहां तो क्या, लौहो कलम तेरे हैं ! सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस में कोई शक नहीं कि हर मुस्लिम को हजरत मुहम्मद (स.) से बेतहाशा लगाव होता है, मगर इसका यह अर्थ हरगिज़ नहीं है कि हम इस मुहब्बत की नुमाइश सड़कों पर आकर पोस्टरबाजी द्वारा करें, क्योंकि हजरत मुहम्मद (स.) तो हम सब के दिलों में हैं और उनके जन्मदिवस पर सबसे बड़ी श्रद्धांजलि ये होगी कि हम उनके बताए रास्ते पर चल कर दीन-ओ-दुनिया में सफल हों। मुहम्मद साहब (स.) अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीते थे और उनका उसूल था कि अगर कोई मुस्लिम किसी ग़ैर मुस्लिम के साथ नाइंसाफी करे, उसका हक मारे और गलत सुलूक करे तो कहते हैं कि कयामत के दिन उसके वकील बन कर उसके साथ खड़े होंगे।
'आई लव मुहम्मद' कहना केवल शब्दों का इज़हार नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है उनके बताए हुए मार्ग पर चलना-सच बोलना, अमानतदारी निभाना, दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना और पूरी इंसानियत से मोहब्बत करना। पैग़म्बर मुहम्मद (स.) मानवता के लिए दया, करुणा और सदाचार का सर्वोत्तम प्रतीक हैं। उनका जीवन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और मानवीय मूल्यों के लिए भी मार्गदर्शन देता है।
'आई लव मुहम्मद' (स.), के तोड़ में कुछ लोग, 'आई लव महादेव' ले आए, जिस में कोई बुराई नहीं, क्योंकि ये सभी नाम, इनको मानने वाले किसी न किसी भगवान के जी हैं और यह तो दुनिया जानती है कि सभी अनुयायी अपने परम भगवान के लिए जान भी देने को तैयार हैं। हां, अपने धर्म पर कसम देने सिर लेने का तरीका वह नहीं होना चाहिए जो अब से कुछ पहले "सर तन से जुदा" के वीभत्स पूर्ण कांड में देखा गया, जिस में कई मासूम लोगों की निर्मम हत्या हुई। है। यदि पैग़म्बर मुहम्मद जीवित होते तो (स.) स्वयं कभी भी इस बात को नहीं मानते कि इनके प्रेम में अपनी जान दें या किसी की लें। हालांकि लोग इस्लाम के नाम में यह पाप करते हैं, मगर, धर्म का इससे कोई लेना-देना नहीं। हजरत मुहम्मद (स.) तो मुस्लिमों को सख्ती के साथ मना कर देते कि उनके नाम में ईद-ए-मिलादुन्नबी के जलसे जुलूस निकाले जाएं। यह अलग बात है कि बहुत से लोग ये जुलूस निकालते हैं और संयोग से 'आई लव मुहम्मद' (स.) का झगड़ा भी इसी प्रकार के एक जुलूस से शुरू हुआ। पैग़म्बर मुहम्मद (स. ) मानवता के लिए दया, करुणा और सदाचार का सर्वोत्तम प्रतीक हैं। उनका जीवन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और मानवीय मूल्यों के लिए भी मार्गदर्शन देता है। हजरत मुहहम्मद (स.) ने हमें सिखाया कि इंसान की असली पहचान उसके चरित्र, ईमानदारी और व्यवहार में होती है।
इस मामले में विवाद 4 सितंबर को कानपुर के रावतपुर में बारावफात (ईद-ए-मिलादुन्नबी) के जुलूस के दौरान शुरू हुआ। यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक बैनर लगाया था जिस पर लिखा था ‘आई लव मुहम्मद’। हिंदू संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि बारावफात के जुलूस में यह नई परंपरा शुरू की जा रही है। इस मामले में तमाम राजनेताओं के बयान आने और सोशल मीडिया पर हो रही बयानबाजी की वजह से भी मामला गर्म हो गया। पुलिस और प्रशासन के सामने चुनौती है कि उपद्रवी तत्व माहौल न बिगाड़ सकें। उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के कई राज्यों में ‘आई लव मुहम्मद’ का विवाद काफी तूल पकड़ गया है। न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि उत्तराखंड, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ‘आई लव मुहम्मद’ के पोस्टर लेकर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया है।
विशेषकर उत्तर प्रदेश के कई शहरों जैसे,उन्नाव, बरेली, कौशांबी, लखनऊ, महाराजगंज में इस मामले में प्रदर्शन हो चुके हैं। बरेली में तो शुक्रवार को हालत काफी विस्फोटक हो गए और मुस्लिम समुदाय के लोगों और पुलिस के बीच जबरदस्त झड़प हुई। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव कर दिया और इसके जवाब में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इस संदर्भ में मौलाना तौक़ीर रज़ा खान ने एक भड़कीला बयान दिया, जिसके नतीजे में लोगों ने दंगा किया, जिसमें पत्थरबजी हुई और पुलिस से भी लोगों की भिड़ंत हुई, जिन में कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए। इधर पुलिस ने भी आंसू गैस के गोले उद्दंड भीड़ पर छोड़े। कुछ लोगों का मानना है कि हिंदू-मुस्लिम विवाद से देश को बहुत हानि पहुंच रही है और इस प्रकट की घटनाएं स्पीड ब्रेकर हैं, भारत को जगत गुरु बनाने में। जब-जब हिंदू व मुस्लिम मिल कर चले हैं, देश आगे बढ़ा है।

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