मैं न दबाव देता हूं, न दबाव में काम करता हूं, राजनीतिक विरोधी, दुश्मन नहीं होते : धनखड़
जयपुर : भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जयपुर में एक स्नेह मिलन समारोह में हिस्सा लेते हुए राजनीति, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रहित जैसे अहम मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि राजनीति में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और संवाद की ज़रूरत है, न कि कटुता और टकराव की।
मैं न दबाव देता हूं, न दबाव में काम करता हूं
उपराष्ट्रपति ने यह बात उस समय कही जब उनसे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक बयान को लेकर सवाल पूछा गया। गहलोत ने दावा किया था कि उपराष्ट्रपति धनखड़ दबाव में काम कर रहे हैं। इसके जवाब में उपराष्ट्रपति ने कहा, "मैं न किसी के दबाव में काम करता हूं, न किसी पर दबाव डालता हूं। मुझे अपने स्वास्थ्य की नहीं, बल्कि अपने उस मित्र की चिंता है जो मुझे दबाव में बता रहे हैं। मैं उन्हें आश्वस्त करता हूं कि मैं स्वतंत्र और निष्पक्ष हूं।"
राजनीतिक विरोधी, दुश्मन नहीं होते
धनखड़ ने राजनीति में बढ़ती कटुता और तीखे बयानों पर चिंता जताते हुए कहा, "राजनीति में सत्ता और विपक्ष का स्थान बदलता रहता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम एक-दूसरे को दुश्मन समझें। हमारे दुश्मन सीमा पार हो सकते हैं, लेकिन देश के अंदर नहीं।" उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेताओं को राष्ट्रहित को प्राथमिकता देनी चाहिए, खासकर तब जब वे देश से बाहर हों। उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब किसी राज्य की सरकार केंद्र से अलग पार्टी की होती है, तो राज्यपालों को बेवजह निशाना बनाया जाता है। उन्होंने कहा, "राज्यपालों को 'पंचिंग बैग' बनाना ठीक नहीं। अब तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भी विवादों में घसीटा जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।"
अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र की जान है
धनखड़ ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है, चाहे वह सत्ता में हो या विपक्ष में। उन्होंने कहा, "अगर हम दूसरों की बात नहीं सुनेंगे, तो लोकतंत्र कमजोर होगा। बहस और बातचीत से ही सही फैसले निकलते हैं। हो सकता है किसी और की बात हमारे विचार से बेहतर हो।" उपराष्ट्रपति ने भारत की संविधान सभा की चर्चा करते हुए कहा कि आज के नेताओं को उनसे सीख लेनी चाहिए।
किसानों को सीधे खाते में मिले सब्सिडी
धनखड़ ने किसानों के हित में सुझाव दिया कि सरकार अगर उर्वरक और अन्य सब्सिडी सीधे किसानों के बैंक खातों में डाले, तो उन्हें हर साल ₹30,000 तक की मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा, "किसान खुद तय कर सकेगा कि वह जैविक खेती करे या परंपरागत। इससे व्यवस्था में पारदर्शिता भी आएगी।" उपराष्ट्रपति ने गर्व से बताया कि आज भारत दुनिया की शीर्ष चार अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उन्होंने कहा, "एक समय था जब हमें 'फ्रैजाइल फाइव' यानी कमजोर देशों में गिना जाता था। लेकिन अब हमने यूके, जापान और जर्मनी जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है। यह पूरे देश की मेहनत और गर्व की बात है, किसी एक पार्टी की नहीं।"