Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

काश ! बापू आप फिर हमें मिल जाएं...

05:15 AM Oct 01, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat

आप गांधी जी से मिले नहीं और मैं भी बापू से मिला नहीं लेकिन बापू को मैंने अपने बाबूजी वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवाहर लाल दर्डा से समझा और जाना यदि आपको बापू को समझना है तो निश्चित रूप से सेवाग्राम ही जाना होगा। बापू आज भी सेवाग्राम में ही बसते हैं, पूरी दुनिया में जिन धारणाओं को आज स्वीकार किया जा रहा है उससे संबंधित सारे प्रयोग बापू ने सेवाग्राम की पुण्य भूमि में ही किए थे, वे अप्रतिम थे। दो-तीन सौ साल बाद बापू यानी हमारे गांधीजी को निश्चय ही लोग भगवान ही मानेंगे। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा भी था कि आने वाली पीढ़ियां शायद इस बात पर विश्वास ही नहीं करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति कभी इस धरती पर चला था। जरा सोचिए कि अपने जमाने का अत्यंत पढ़ा-लिखा एक व्यक्ति अहिंसा को अस्त्र बना कर उस ब्रिटिश साम्राज्य के सामने खड़ा हो जाता है जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था, जिसके पास अथाह शक्ति और बेशुमार दौलत थी। सूट-बूट पहनने वाला व्यक्ति आजादी के आंदोलन की अलख जगाने के लिए एक दिन तय करता है कि वह केवल धोती में जिंदगी गुजारेगा तो क्या वह सामान्य घटना थी?

गांधी जी ने यह प्रण इसलिए लिया ताकि उनके देशवासियों को भरोसा हो सके कि यह व्यक्ति भी उन्हीं में से एक है। गांधी जी ने चरखे के माध्यम से ब्रिटिश सरकार की आर्थिक रीढ़ पर हमला बोला। अंग्रेजों ने हमारी कपड़ा मिलों को तबाह कर दिया था और भारतीय कपास से ब्रिटेन में कपड़ा बना कर हमें लूट रहे थे। मैंने गांधीजी के जीवन के हर पहलू का विश्लेषण किया है और मुझे लगता है कि गांधी जी जैसा कोई नेतृत्वकर्ता शायद कभी हो भी नहीं लेकिन मेरी तो चाहत ऐसी है कि काश, बापू हमें फिर मिल जाएं। कुछ नेता और आज की पीढ़ी के कुछ लोग गांधी जी की आलोचना करने से नहीं चूकते। वे अनर्गल बातें करते हैं, मुझे लगता है कि वे गांधी जी को नहीं जानते। ऐसे लोगों से मैं एक सवाल करता हूं कि देश का आम आदमी यदि आजादी के आंदोलन में पूरी तरह सहभागी नहीं बनता तो क्या अंग्रेज देश छोड़ कर भागते? अंग्रेजों को आम आदमी के उद्वेलन ने भागने पर मजबूर किया। यह उद्वेलन गांधी जी ने पैदा किया था। गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रति पूरे देश में अवज्ञा का भाव भर दिया। आजादी की ऐसी ललक पैदा कर दी कि छोटे-छोटे बच्चे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। अपने बाबूजी वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवाहर लाल दर्डा से मैंने उस दौर के बहुत से किस्से सुने।

एक प्रसंग ने मुझे बहुत प्रभावित किया, प्रसंग यह है कि इंग्लैंड में गांधी जी को तत्कालीन सम्राट जॉर्ज पंचम से मिलना था। गांधी जी की वेशभूषा को लेकर अंग्रेज अधिकारी असहज थे लेकिन गांधी जी उसी धोती में सम्राट से मिलने पहुंचे। जब वापस लौटे तो किसी पत्रकार ने पूछ लिया कि इस वेशभूषा में सम्राट से मिलना क्या ठीक था? गांधी जी ने कहा कि हमारे हिस्से के कपड़े भी राजा ने पहन रखे थे, जरा सोचिए, ये कितना बड़ा प्रहार था। गांधी जी का रहन-सहन ऐसा था, विचार ऐसे थे कि देश ने प्यार से उन्हें महात्मा कहना शुरू कर दिया लेकिन महात्मा शब्द से संत का अर्थ बिल्कुल मत समझिएगा। लोगों ने जब कहा कि ‘बापू तो राजनेता बनने की कोशिश कर रहे संत’ हैं तो गांधी जी ने आपत्ति जताई और कहा कि वे ‘संत बनने की कोशिश कर रहे राजनेता’ बनना पसंद करेंगे। गांधी जी ने यह भी कहा था कि उन्होंने जिस सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया वह पहाड़ों जितनी पुरानी है। वे जानते थे कि हिंसा किसी भी सूरत में समस्या का समाधान नहीं निकाल सकती है। यही कारण है कि दुनियाभर में लोग गांधी जी से प्रभावित हुए।

अमेरिका में नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले मार्टिन लूथर किंग ने तो उन्हीं की राह अपनाई। दर्जनों देशों ने बापू के मार्ग पर चल कर स्वाधीनता अर्जित की। नई पीढ़ी के लिए यह भी जानना जरूरी है कि महात्मा गांधी ने न केवल आजादी हासिल करने के लिए काम किया बल्कि आजादी के बाद देश की प्रगति कैसे होगी, इसका मार्ग भी प्रशस्त किया। उन्होंने कहा कि जब तक गांव विकसित नहीं होंगे तब तक देश का वास्तविक विकास नहीं होगा। ग्राम विकास की अवधारणा उन्हीं से आई। सफाई की जरूरतों को जन-जन तक उन्होंने ही पहुंचाया। उन्होंने यह राह दिखाई कि महिलाएं शिक्षा की राह पर आगे बढ़ें और आत्मनिर्भर बनें। गांधी जी ने इतने सारे सूत्र दिए हैं, उनके जीवन प्रसंग में प्रेरणा की इतनी रश्मियां छिपी हैं कि हमारे युवा निश्चय ही बड़ी प्रेरणा पा सकते हैं।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आज हमारे युवाओं को गांधी जी के बारे में ज्यादा कुछ पता क्यों नहीं है? क्या यह हमारी व्यवस्था का दायित्व नहीं है कि ऐसे महान व्यक्ति के बारे में व्यवस्थित और विश्लेषणात्मक तरीके से युवाओं को जानकारी दी जाए? गांधी जी भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी 110 से ज्यादा प्रतिमाएं/स्मारक दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में मौजूद हैं और विदेशी विश्वविद्यालयों में गांधी जी के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि सेवाग्राम उपेक्षित है और हमारी शिक्षा से बापू गायब हैं। जाति, धर्म, नस्ल और रंग को लेकर जहर भरा जा रहा है। ऐसा करने वाले बापू को पढ़ लें, जान लें, समझ लें तो उन्हें भी एहसास हो जाएगा कि वे समाज में कैसा जहर घोल रहे हैं। आज हर किसी की चाहत है कि सरकार सेवाग्राम को न केवल घरेलू बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करे और गांधी फिल्म को शिक्षा में शामिल करे क्योंकि इस देश की समस्याओं का सही जवाब और समाधान बापू का मार्ग ही है।

Advertisement
Advertisement
Next Article