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सुरक्षा है तो खुशियां ही खुशियां

त्यौहारों का सीजन खुशी लेकर आता है लेकिन खुशियों के सीजन में हमने खुद को सुरक्षित अगर रखना है तो वह हम पर ही निर्भर है। अक्सर त्यौहारों के मौके पर असावधानी या चूक हो जाती है।

12:49 AM Oct 09, 2022 IST | Kiran Chopra

त्यौहारों का सीजन खुशी लेकर आता है लेकिन खुशियों के सीजन में हमने खुद को सुरक्षित अगर रखना है तो वह हम पर ही निर्भर है। अक्सर त्यौहारों के मौके पर असावधानी या चूक हो जाती है।

त्यौहारों का सीजन खुशी लेकर आता है लेकिन खुशियों के सीजन में हमने खुद को सुरक्षित अगर रखना है तो वह हम पर ही निर्भर है। अक्सर त्यौहारों के मौके पर असावधानी या चूक हो जाती है, जो आगे चलकर परेशानी का कारण बन जाती है। छोटे बड़े हर किसी ने 2019 में आई महामारी कोरोना के असर को देखा है। पूरे ढाई वर्ष हो चले है। कोरोना ने पूरी दुनिया को परेशान करके रखा और भारत जैसा देश भी लॉकडाउन को मजबूर हो गया। अब पिछले दिनों अष्टमी, नवमी यानि कन्या पूजन हो चुका है, दशहरा बीत चुका है और त्यौहारों की सबसे बड़ी शृंखला शुरू हो चुकी है। कुछ दिन बाद दिवाली भी मनायी जायेगी। जीवन का हर क्षेत्र सामान्य हो रहा है और कोरोना की विदाई हो रही है। यह बात सच है कि हमने कोरोना का मजबूती से सामना किया। बहुत कुछ गंवाया भी। हमारे कई अपने संबंधी एक-दूसरे से बिछड़ गये। कारण कोरोना ने उन्हें लपेट लिया। लेकिन आज भी यह सच है कि मानवीय भूल-चूक और असावधानी किसी भी बड़े हादसे का कारण बन जाती है। 
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अब त्यौहारों के दिनों में बाजारों में भीड़ उमड़ रही है। पूरी दुनिया में लोग पिछले दो साल की कैद जैसे हालात से मुक्त होकर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन भारत में हालात दुनिया से अलग हैं। परीक्षाओं से लेकर मंदिरों तक आना-जाना प्रतिबंधित हो गया था। अब हम उससे बाहर आ रहे हैं तो सावधानी अब भी बहुत जरूरी है। मैं उस दिन डाक्टरों की राय सुन रही थी। वैश्विक स्तर पर जैसा मौसम हमने पिछले दिनों देखा वैसा कईयों ने जीवन में पहली बार देखा होगा कि जब पितृ पक्ष के दौरान बरसात हुई  हो और आजकल भी अश्विन महीने में बारिश हो रही है। यह कोई  अच्छा संकेत नहीं है। हमें सावधान रहना होगा। खुद डब्ल्यूएचओ के बड़े-बड़े वैज्ञानिक और कर्ताधर्ता यही कह रहे हैं कि अब कोरोना की विदाई हो रही है। देश-दुनिया में इसके केस कम हो रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली में दो साल बाद रामलीला का दीदार किया और हर छोटी-बड़ी रामलीला में दर्शक उमड़ पड़े। भीड़-भाड़ भरे इलाकों में इतनी ज्यादा लोगों की उपस्थिति बराबर एक खतरे  का प्रतीक है। हमें बचना होगा। उस दिन डाक्टरों के एक पैनल में सबका एक ही मत था कि साफ-सफाई, स्वच्छता और हाथ धोने की परंपरा छूटनी नहीं चाहिए। अपना-अपना सैनेटाइजर सबके पास होना चाहिए क्योंकि कई बार वैश्विक स्तर पर जब महामारी फूटती है तो वह रह-रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। मैं इस मामले में फिर से कोरोना की एक के बाद एक आई लहरों का उल्लेख करना चाहती हूं जिसमें अनेक लोग इसकी लपेट में आ गए थे। सर्दी शुरू हो रही है। दिल्ली में डेंगू असर दिखा रहा है। हालांकि अनेक अस्पतालों में कोविड देखभाल केंद्र बंद हो रहे हैं। इसका स्वागत किया जाना चाहिए और माना जा रहा है कि कोरोना खत्म हो रहा है। लेकिन डाक्टरों का कहना है कि सावधानी से चलने में ही बचाव है। 
शिक्षा के क्षेत्र में या फिर रोजगार हो या फिर अन्य कामकाजी गतिविधियां हो अब सबकुछ सामान्य हो रहा है लेकिन चौंकाने वाली बात वायुमंडल की शुद्धता को लेकर है। हर साल पटाखे और पंजाब, हरियाणा में पराली के जलने से जो दिल्ली तक विषैली हवाओं का दबाव बनता है वह मानवीय हैल्थ के लिए बहुत खराब है। नासा तक भारत जैसे द्वीप में विशेष रूप से उत्तर भारत में पराली के जलने की घटनाओं को वायुमंडल के खराब होने से जोड़कर फ्लैश करता है। इंसान को खुद ही पराली जलाने से बचना होगा हालांकि सरकारें बहुत कुछ कर रही हैं लेकिन सामान्य हो रहे हालातों के बीच त्यौहारों का शौंक कई बार परेशानी भरा सबब हो सकता है। मर्यादित तरीके से त्यौहार मनाये जाने चाहिए और खेत खलिहानों में पराली जलाने से परहेज किया जाना चाहिए। वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि दिल्ली में अक्तूबर-नवंबर में तो धुएं की विषैली चादर बनती है, वह पराली जलाये जाने से बनती है इसलिए इससे बचना चाहिए। प्रदूषण नहीं होना चाहिए। देश में हर तरफ हरियाली हो, हर तरफ खुशहाली हो तो सचमुच त्यौहार मनाने का मजा आ जाता है। लेकिन यह सब तभी संभव है जब सावधानी और सतर्कता बरती जाये।
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