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असम में अवैध ‘बंगलादेशी’

भारत के असम राज्य में विदेशी बंगलादेशियों की पहचान वास्तव में एक जटिल समस्या रही…

04:31 AM Jun 11, 2025 IST | Aditya Chopra

भारत के असम राज्य में विदेशी बंगलादेशियों की पहचान वास्तव में एक जटिल समस्या रही…

भारत के असम राज्य में विदेशी बंगलादेशियों की पहचान वास्तव में एक जटिल समस्या रही है। इस क्रम में राज्य में कई आन्दोलन भी हुए जिन्होंने हिंसक स्वरूप तक लिया। मगर यह समस्या अभी तक खड़ी हुई है और राज्य के भाजपा मुख्यमन्त्री श्री हिमन्ता बिस्व सरमा इसका जड़ से उन्मूलन चाहते हैं जिसके चलते उन्होंने 1950 का वह कानून लागू करने का फैसला किया है जिसमे किसी भी जिले के जिलाधीश को अधिकार है कि वह किसी विदेशी नागरिक की पहचान कर उसका बंगलादेश में प्रत्यर्पण कर दें। इस कानून को लागू करने के लिए श्री सरमा ने राज्य विधानसभा का विशेष एक दिवसीय सत्र बुलाया और उसमें 1950 के कानून को लागू करने की घोषणा की जिसका विपक्षी दलों के विधायकों ने विरोध भी किया परन्तु श्री सरमा ने स्पष्ट कर दिया कि 1950 के कानून के तहत विदेशियों के प्रत्यर्पण करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता क्योंकि इसका फैसला देश का सर्वोच्च न्यायालय अक्तूबर 2024 में ही कर चुका है। इस कानून के तहत यदि जिलाधीश यह पाते हैं कि प्राथमिक तौर पर किसी नागरिक के विदेशी होने का उन्हें प्रमाण है तो वह उसे बंगलादेश भेज सकते हैं और इस मार्ग में कोई अन्य कानून बाधा नहीं बनता है चाहे नागिक का नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में ही क्यों न दर्ज हो।

अवैध बंगलादेशियों की समस्या कई आयाम लिये हुए है। दिसम्बर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अधिकृत तौर पर बंगलादेश घोषित हो जाने के बाद भारत व नवोदित बंगलादेश के बीच 1972 में इस मामले में एक सन्धि भी हुई जिसे इन्दिरा-मुजीब समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत जो बंगलादेशी शरणार्थी 24 मार्च, 1971 तक असम में आ चुके थे उन्हें यह छूट होगी कि वे भारत या बंगलादेश में से किसी भी देश की नागरिकता ले सकते हैं मगर जो शरणार्थी इस तारीख के बाद भारत में आये हैं उन्हें वापस बंगलादेश जाना होगा। 23 मार्च, 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में तब मुक्ति संग्राम चल रहा था और वहां की शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग पार्टी ने स्वतन्त्र बंगलादेश की निर्वासित सरकार भी गठित कर ली थी। यह सरकार दिसम्बर महीने तक चलती रही जब स्वतन्त्र बंगलादेश का गठन हुआ। इसके बाद शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में ढाका में पूरी तरकार बनी। इस वजह से अक्तूबर 2024 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि 24 मार्च के बाद जो भी बंगलादेशी भारत में आया है उसे वापस अपने देश लौटना होगा। मगर अब असम के मुख्यमन्त्री श्री सरमा ने भी साफ कर दिया है कि सभी तथ्यों का ध्यान रखते हुए यदि किसी जिले का जिलाधीश किसी नागरिक को संदिग्ध पाता है तो उसे वापस बंगलादेश भेज दिया जायेगा। इसमें कोई और प्रक्रिया बीच में नहीं आयेगी।

राज्य में 1964 में इसी अवैध नागरिक समस्या को देखते हुए ‘विदेशी नागरिक ट्रिब्यूनल’ का गठन किया गया था। परन्तु यह 1971 से पहले की व्यवस्था थी। इसके तहत संदिग्ध नागरिकता वाले व्यक्ति को अपने को मूल रूप से असमी सिद्ध करने का अधिकार था। परन्तु इस व्यवस्था में भी कई खामियां थीं। जिसके चलते 70-80 के दशक में असम में विद्यार्थियों का बहुत तीव्र हिंसक आन्दोलन चला था। इस पूरे मामले में श्री सरमा का नजरिया पूरी तरह साफ है कि वह एक भी अवैध बंगलादेशी को अपने राज्य में रखने के लिए राजी नहीं हैं और इसी वजह से 1950 का कानून लागू कर रहे हैं। अक्तूबर 2024 में सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 4-1 से फैसला दिया था कि 24 मार्च के बाद असम में प्रवेश करने वाले किसी भी बंगलादेशी को नागरिकता नहीं दी जा सकती और इस मामले में 1950 का कानून पूरी तरह वैध है और इसे लागू करने में कहीं कोई कठिनाई नहीं है। इस संविधान पीठ की अध्यक्षता अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश श्री डी.वाई. चन्द्रचूड ने की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा था कि 24 मार्च के बाद आये हुए बंगलादेशी को वापस 1950 के कानून के तहत भेजा जा सकता है। अतः राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने इस बाबत पूरे अधिकार दे दिये थे। अतः श्री सरमा ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को लागू करने के लिए विधानसभा का एक दिवसीय सत्र बुलाया था। श्री सरमा ने कहा कि राज्य विधानसभा को देश के कानून को लागू करने का पूरा अधिकार है। असम राज्य में कानून-व्यवस्था को सुचारू रखने का राज्य सरकार को पूरा अधिकार है । इस हिसाब से भी मुख्यमन्त्री का फैसला महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अभी तक असम में विदेशियों की पहचान विदेशी ट्रिब्यूनल के माध्यम से ही होती रही है। ट्रिब्यूनल के पास कुछ न्यायिक अधिकार भी हैं जिनके चलते वह किसी नागरिक की नागरिकता की जांच करता है।

अब बदलाव यह आयेगा कि राज्य के किसी भी जिलाधीश को अपने जिले में नागरिकता को जांचने का अधिकार मिल जायेगा जिसके चलते अवैध बंगलादेशियों की पहचान बहुत आसान हो जायेगी। राज्य सरकार द्वारा पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान ही 330 अवैध नागरिक बंगलादेश भेजे जा चुके हैं। मगर बंगलादेश में विगत 5 अगस्त को वहां की चुनी हुई शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट होने के बाद से इस देश में इस्लामी कट्टरपंथी सक्रिय हो गये हैं और इस देश की अस्थायी मोहम्मद यूनुस सरकार पर इन्हीं तत्वों का कब्जा जैसा हो गया है जिसकी वजह से असम में अवैध नागरिकों की घुसपैठ ने नया आयाम ले लिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह बहुत जरूरी है कि असम में एक भी संदिग्ध बंगलादेशी न रहे क्योंकि पाक परस्त बंगलादेश के कट्टरपंथी अवैध रूप से प्रवेश कर सकते हैं।

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