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भारत की मजबूती में आईएमडी की भूमिका

भारत के लिए मानसून केवल बारिश नहीं है। यह एक ऐसी बहुआयामी घटना…

10:20 AM Jan 09, 2025 IST | Editorial

भारत के लिए मानसून केवल बारिश नहीं है। यह एक ऐसी बहुआयामी घटना…

भारत की मजबूती में आईएमडी की भूमिका

भारत के लिए मानसून केवल बारिश नहीं है। यह एक ऐसी बहुआयामी घटना है जो देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को अत्यधिक प्रभावित करती है। भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था दक्षिण-पश्चिम मानसून की परिवर्तनशीलता से काफी हद तक जुड़ी हुई है। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी योजना बनाने के क्रम में विभिन्न समय-सीमाओं में सटीक पूर्वानुमान लगाना महत्वपूर्ण होता है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी। अपनी स्थापना के बाद से आईएमडी मानसून की निगरानी और पूर्वानुमान लगाने में सबसे आगे रहा है। अपनी 150 साल की यात्रा में आईएमडी एक मामूली वेधशाला नेटवर्क से व्यापक मौसम और जलवायु सेवाएं प्रदान करने वाले अत्याधुनिक वैज्ञानिक संस्थान के रूप में बदल गया है। आज आईएमडी सतही वेधशालाओं, लगभग 6,000 वर्षा गेज, ऊपरी हवा के रेडियोसॉन्ड, डॉपलर मौसम रडार, कृषि-मौसम विज्ञान स्टेशनों और अत्याधुनिक उपग्रह प्रणालियों से युक्त एक व्यापक नेटवर्क संचालित करता है। पिछले दशक में मानसून के पूर्वानुमान की सटीकता में काफी सुधार हुआ है। इससे कई व्यावहारिक इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मानसून मिशन, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक पहल है। इस पहल ने आईएमडी की पूर्वानुमान क्षमताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह महत्वपूर्ण प्रगति डेटा के समावेशन में सुव्यवस्थित प्रगति और भौतिकी के परिष्कृत मॉडल के साथ उच्च-रिजॉल्यूशन भविष्यवाणी मॉडल के विकास से उपजी है। आज आईएमडी लघु, मध्यम, विस्तारित-सीमा और मौसमी भविष्यवाणियों के लिए उन्नत समूह पूर्वानुमान प्रणालियों का इस्तेमाल करता है और खुद को मौसम तथा जलवायु पूर्वानुमान में वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।

ऐतिहासिक रूप से शार्ट-रेंज पूर्वानुमान (2-3 दिन) सिनॉप्टिक विधियों पर निर्भर थे। इनकी सटीकता सीमित थी। 1988 में संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (एनडब्यूपी) की शुरुआत के साथ इसमें एक व्यापक बदलाव हुआ। इसे राष्ट्रीय मीडियम रेंज मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्यूएफ) और भारत के प्रथम सुपर कंप्यूटर की स्थापना द्वारा चिह्नित किया गया। इस मील के पत्थर ने एनडब्यूपी के दायरे और महत्व का विस्तार किया। इसने एक सशक्त मॉडल पर आधारित पूर्वानुमानों के लिए धरातल तैयार किया।

वर्तमान में आईएमडी दो उन्नत समूह-आधारित परिचालन एनडब्ल्यूपी प्रणालियों का संचालन करता है जो पांच दिनों तक विश्वसनीय कौशल के साथ मीडियम रेंज के पूर्वानुमान का उत्पादन करते हैं। यह पहले की पूर्वानुमान प्रणालियों की तुलना में दो दिन के सुधार का सूचक है। इसके अलावा, संभाव्य पूर्वानुमान, जैसे कि चरम पूर्वानुमान सूचकांक (ईएफआई) का उपयोग करने वाले मौसम की चरम घटनाओं के लिए 4-5 दिनों का लीड टाइम प्रदान करते हैं। ये मध्यम-अवधि के पूर्वानुमान भारतीय किसानों के लिए अमूल्य साबित हुए हैं जो उन्हें कृषि संबंधी महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

स्वदेशी रूप से विकसित एक्स टेंडेर्ड रेंज पूर्वानुमान (ईआरएफ) प्रणालियां 10 से 30 दिन पहले मानसून की स्थिति का अनुमान लगा सकती हैं। ये प्रणालियां 2 से 3 सप्ताह पहले ही पूर्वानुमान लगाने में कारगर साबित हुई हैं। इन पूर्वानुमानों में मानसून के सक्रिय और विराम चरणों के बीच बदलाव और मानसून के जल्दी या देर से आने का समय शामिल है। इन पूर्वानुमानों के आधार पर आईएमडी ने कृषि, जल संसाधन, ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए लंबे समय तक तैयारी और निर्णय लेने में सुधार के क्रम में अनेक तरीके विकसित किए हैं।

वर्ष 1877 के व्याापक अकाल के बाद आईएमडी ने मौसमी मानसून पूर्वानुमान शुरू किया। इसने 4 जून 1886 को अपना पहला पूर्वानुमान जारी किया। सांख्यिकीय तरीकों पर आधारित शुरुआती मानसून मौसमी पूर्वानुमान अक्सर गलत पाए जाते थे लेकिन आर्थिक और सार्वजनिक मांग से प्रेरित निरंतर प्रयासों के बल पर आईएमडी को मौसमी मानसून भविष्यवाणियां जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। वर्ष 1988 में आईएमडी ने 16-पैरामीटर पावर रिग्रेशन मॉडल पेश किया, जिसने वर्ष 1988 और वर्ष 2006 के बीच कमजोर निष्पादन किया। हालांकि, वर्ष 2007 में एक स्वदेशी रूप से विकसित सांख्यकीय समूह पूर्वानुमान प्रणाली को अपनाने के साथ एक सफलता मिली। इस पूर्वानुमान प्रणाली ने पूर्वानुमान की सटीकता में महत्वैपूर्ण सुधार किया।

स्थानीय मौसम पूर्वानुमान, विशेष रूप से प्रमुख शहरों के लिए और अधिक परिशोधन की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त किसानों द्वारा बेहतर इस्तेमाल के लिए विश्वसनीय तीसरे सप्ताह के पूर्वानुमान सुनिश्चित करने के लिए ईआरएफ प्रणाली में सुधार आवश्यक है। मौसमी पूर्वानुमान भी बेहतर हुए हैं, फिर भी उनके संभावित पूर्वानुमान से अपेक्षाकृत कम हैं। इसके लिए त्रुटियों का सुव्यवस्थित समाधान करने और भूमध्यरेखीय प्रशांत, अटलांटिक और भारतीय महासागरों के साथ मानसून संबंधी दूरसंचार प्रणाली के बेहतर सामंजस्य के लिए मॉडल की आवश्यकता होती है।

उपयोगकर्ता की अपेक्षाएं बढ़ने के साथ ही आईएमडी को लगातार नवाचार करते रहना चाहिए और इन मांगों को सक्रियतापूर्वक पूरा करना चाहिए। हाल ही में शुरू किया गया मौसम मिशन देश में मानसून के पूर्वानुमान की क्षमताओं को बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण पहल है। अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाकर और पूर्वानुमान प्रणालियों में लगातार सुधार करके आईएमडी मौसम और जलवायु संबंधी सेवाओं में वैश्विक अग्रणी के रूप में अपनी विरासत को कायम रख सकता है और भारत को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी मदद कर सकता है।

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