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नीरव मोदी मामले में ब्रिटेन कोर्ट ने कहा - भारत के आश्वासनों में खामियां नहीं ढूंढनी चाहिए

लंदन उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारत एक मित्र देश है और ब्रिटेन को भारत सरकार के इन आश्वासनों में खामियां नहीं ढूंढनी चाहिए कि धोखाधड़ी और धनशोधन से संबंधित मुकदमे के दौरान हीरा कारोबारी नीरव मोदी को मुंबई की आर्थर रोड जेल में पर्याप्त चिकित्सा देखभाल प्रदान की जाएगी।

11:17 PM Oct 12, 2022 IST | Shera Rajput

लंदन उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारत एक मित्र देश है और ब्रिटेन को भारत सरकार के इन आश्वासनों में खामियां नहीं ढूंढनी चाहिए कि धोखाधड़ी और धनशोधन से संबंधित मुकदमे के दौरान हीरा कारोबारी नीरव मोदी को मुंबई की आर्थर रोड जेल में पर्याप्त चिकित्सा देखभाल प्रदान की जाएगी।

लंदन उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारत एक मित्र देश है और ब्रिटेन को भारत सरकार के इन आश्वासनों में खामियां नहीं ढूंढनी चाहिए कि धोखाधड़ी और धनशोधन से संबंधित मुकदमे के दौरान हीरा कारोबारी नीरव मोदी को मुंबई की आर्थर रोड जेल में पर्याप्त चिकित्सा देखभाल प्रदान की जाएगी।
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नीरव मोदी (51) ने दो अरब अमेरिकी डॉलर के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) कर्ज घोटाला मामले में खुद को भारत प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ अपील दाखिल की है, जिसपर सुनवाई के दूसरे दिन दो न्यायाधीशों की पीठ ने इन दलीलों पर गौर किया कि इस बात का बहुत अंदेशा है कि नीरव अपनी अवसादग्रस्त हालत के चलते आत्महत्या कर सकता है।
अदालत ने नीरव मोदी की अपील पर दो दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत ने कहा कि फैसला जल्द से जल्द सुनाया जाएगा।
सुनवाई के दौरान नीरव के बचाव पक्ष ने दावा किया कि यदि उसे भारत के “प्रतिकूल वातावरण” में भेजा जाता है तो उसकी अवसाद की स्थिति बदतर हो जाएगी। बचाव पक्ष ने कहा कि भारत में राजनीतिक नेताओं ने नीरव को पहले ही अपराधी घोषित करके “बुरे व्यक्ति” रूप में पेश किया है। साथ ही प्रेस ने उसके प्रति “कटुतापूर्ण” रवैया दिखाया है और लोगों ने “उसके पुतले जलाए” हैं।
न्यायाधीश जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ ने बचाव पक्ष के वकील एडवर्ड फिट्जगेराल्ड से कहा, “भारत सरकार के आश्वासनों को यथोचित रूप से सही तरीके से देखा चाहिए और उनमें से खामियां नहीं निकाली जानी चाहिए।”
उन्होंने कहा, “आपके मुवक्किल को लग सकता है कि आश्वासन पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन हमें एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।”
न्यायाधीश रॉबर्ट जे. ने कहा कि 1992 में हस्ताक्षरित भारत-यूके प्रत्यर्पण संधि के संदर्भ में भारत एक “मित्र देश” है और ‘‘हमें संधि से संबंधित अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए।”
फिट्जगेराल्ड ने कहा कि उन्होंने आश्वासनों पर गंभीरता से गौर किया और पाया कि भारत में न्यायपालिका तो स्वतंत्र है, लेकिन कार्यपालिका हमेशा कानून के शासन का पालन नहीं करती।
उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि पूर्ण सहयोग का लंबा इतिहास रहा हो… ऐसे कई मामले भी आए हैं जिनमें अदालत ने पाया कि प्रतिवादी को भारत प्रत्यर्पित नहीं किया जाना चाहिए।”
भारत सरकार की ओर से पेश अभियोजन वकील हेलेन मैल्कम ने कहा, “यह भारत में एक बेहद चर्चित मामला है और भारत सरकार, नीरव मोदी की देखभाल पर बहुत लोगों की निगाहें होंगी।”
भाषा नोमान मनीषा
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