आरएसएस प्रचारक बैठक में मणिपुर से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीर चर्चा
नई दिल्ली, 7 जुलाई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रचारक बैठक 4 जुलाई को दिल्ली के केशव कुंज में शुरू हुई और 6 जुलाई को संपन्न हुई। यह बैठक आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह की रूपरेखा तय करने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी, लेकिन इसके दायरे में संगठन से जुड़े मुद्दों से आगे बढ़कर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर भी गहन चर्चा हुई।
सूत्रों के अनुसार, बैठक में आरएसएस की शताब्दी वर्ष योजनाओं के अलावा, कनाडा और अमेरिका में हिंदू मंदिरों पर हो रहे हमलों और बांग्लादेश में हिंदू एवं अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे उत्पीड़न पर चिंता जताई गई। इसके साथ ही बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ और धार्मिक रूपांतरण के मामलों पर भी चर्चा की गई।
मणिपुर में जारी अशांति और वहां शांति बहाली में संघ के प्रयासों की समी
बैठक में मणिपुर में जारी अशांति और वहां शांति बहाली में संघ के प्रयासों की समीक्षा की गई। साथ ही, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सीमावर्ती राज्यों की स्थिति पर भी विचार किया गया। इन क्षेत्रों में कार्य कर रहे प्रचारकों ने अपनी रिपोर्ट साझा की और भारत-पाक तनाव के हालात में संघ स्वयंसेवकों की भूमिका को लेकर संभावनाएं तलाशने पर विचार हुआ। राजनीतिक वातावरण और सामाजिक समरसता भी इस बैठक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे। देश में जातीय और भाषाई विभाजन की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर चिंता जताई गई और राजनीतिक ध्रुवीकरण के प्रभाव को कम करने तथा सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने के उपायों पर विचार किया गया।
46 प्रांतों के प्रचारकों ने भाग लिया
बैठक में आरएसएस के 11 क्षेत्रों और 46 प्रांतों के प्रचारकों ने भाग लिया। इस महत्वपूर्ण बैठक का नेतृत्व स्वयं सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने किया। यह बैठक संघ के लिए केवल संगठनात्मक समीक्षा का मंच नहीं थी, बल्कि इसमें उन जमीनी मुद्दों पर भी मंथन हुआ जो देश की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को प्रभावित कर रहे हैं। आरएसएस के लिए यह संकेत है कि शताब्दी वर्ष केवल उत्सव नहीं बल्कि भविष्य के भारत के लिए एक मजबूत सामाजिक दिशा तय करने का भी अवसर होगा।